अजय सिंह चौहान || राजस्थान के डूंगरपुर जिले में सोम नदी के तट पर भगवान शिव को समर्पित देव सोमनाथ का मंदिर अपनी वास्तुकला की विशेष शैली के लिए आज दुनियाभर में प्रसिद्ध है। ऐतिहासिक धरोहर के रूप में मंदिर की यह संरचना डूंगरपुर शहर से लगभग 20 किमी की दूरी पर है। यहां तक आने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुजन की कोई बहुत बड़ी संख्या तो नहीं होती, लेकिन जितने भी पर्यटक यहां आते हैं, वे इसकी वास्तुकला और निर्माण शैली को निहारते ही रहते हैं।
इस मंदिर को देव सोमनाथ का मंदिर कहे जाने के पीछे जो रहस्य है उसको लेकर यहां के लोगों का मानना है कि यह गुजरात के वास्तविक सोमनाथ मंदिर से लगभग 600 किलोमीटर की दूरी पर है। और मुगल काल के दौरान सौराष्ट्र के उसी मंदिर का प्रतिनिधित्व करता था। क्योंकि उन दिनों सौराष्ट्र के सोमनाथ मंदिर पर बार-बार विदेशी आक्रमणकारियों के हमलों के कारण उसमें पूजा-पाठ बाधित होता था, जिसके कारण शिव भक्तों ने सौराष्ट्र में स्थित सोमनाथ मंदिर के विकल्प के रूप में वहां से लगभग 600 किलोमीटर दूर राजस्थान के डूंगरपुर में इस मंदिर का निर्माण करवाया दिया। यह धरोहर भारतीय कला और संस्कृति के लिए यह अमूल्य मंदिर संरचनाओं में से एक कही जा सकती है।
हालांकि, इसके आलवा यहां यह भी कहा जाता है कि यह शिवलिंग पांडवों के द्वारा ही स्थापित किया गया था और जिस स्थान पर या जिस गांव में देव सोमनाथ का यह मंदिर बना हुआ है वह गांव द्वापर युग का है और उस गांव का नाम है देव। पांडवों के हाथ से स्थापित हुए इस शिवलिंग पर समय-समय पर कई राजाओं के द्वारा मंदिर का निर्माण और जिर्णोद्वार करवाया गया। और क्योंकि इस गांव का नाम देव है और यह सोम नदी के तट पर बसा हआ है, इसलिए इस मंदिर को देव सोमनाथ नाम दिया गया।
देव सोमनाथ मंदिर की दीवारों पर लगे कुछ पुराने शिलालेखों को देखकर ज्ञात होता है कि इसे स्थानीय राजपूत शासकों द्वारा बनवाया गया था। मालवा शैली में निर्मित यह वर्तमान विशाल शिव मंदिर संरचना 12वीं शताब्दी की है। यह मंदिर संरचना प्राचीन स्थापत्य कला और तकनीकी की दृष्टि से न केवल भारत में बल्कि संपूर्ण विश्व में बेजोड़ और आश्चर्य चकित कर देने वाली इमारत है। इसकी देखरेख अब भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है।
इस देव सोमनाथ मंदिर की तीन मंजिला संपूर्ण संरचना में संगमरमर के बड़े-बड़े शिलाखंडों को बहुत ही बारिकी से तरासकर प्रयोग किया गया है। इसके सभामंडप की तीन अलग-अलग दिशाओं में, यानी पश्चिम, पूर्व और दक्षिण में, तीन द्वार बने हुए हैं। देव सोमनाथ मंदिर का मुख्य भाग लगभग 225 वर्ग फिट में बना हुआ है। जबकि इसका सभामंडप तीन मंजिला है। सभा मंडप से सवा नौ फिट की गहराई में स्थित गर्भ गृह में दो शिवलिंग स्थापित हैं।
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इस देव सोमनाथ मंदिर के गर्भ गृह में दो शिवलिंग क्यों है इस बात का स्पष्ट उल्लेख संभवतः कहीं नहीं मिलता। लेकिन, जानकारों का मानना है कि यहां पास ही में एक और अति प्राचीन शिव मंदिर हुआ करता था। वह मंदिर भी इसी मंदिर की भांति भव्य और आकर्षक था। लेकिन, मुगलकाल के शुरूआती दौर में वह मंदिर नष्ट कर दिया गया था। और समय के साथ-साथ उसके अवशेष भी पूरी तरह से नष्ट हो गये। लेकिन, उसमें से शिवलिंग को निकालकर यहां स्थापित करवा दिया गया था। इसीलिए आज यहां दो शिवलिंग हैं। यह शिवलिंग स्फटीक शिवलिंग है और इसे भगवान गोपीनाथ शिवलिंग के नाम से पूजा जाता है।
स्थानीय लोगों के अनुसार देव सोमनाथ मंदिर के गर्भ गृह में देवी पार्वती, भगवान कृष्ण, भगवान विष्णु, भगवान गणेश और नाग देवता और जो अन्य अनेकों मूर्तियां देखने को मिलती हैं वे सभी यहां के आसपास के क्षेत्रों से मुगल काल में ध्वस्त किये गये मंदिरों से और विभिन्न प्रकार की खुदाइयों में प्राप्त की गई मूर्तियां हैं। लोगों का कहना है कि प्राचीनकाल में इस मंदिर के आसपास के क्षेत्र में अनेकों छोटे-बड़े मंदिर हुआ करते थे। इसीलिए इस क्षेत्र में पौराणिक और ऐतिहासिक काल की अनेकों वस्तुएं प्राप्त होती रहतीं हैं।
मंदिर के गर्भ गृह में जालीदार झरोखे बहुत ही आकर्षक लगते हैं। इसके अलावा, नर्तकियों की आकर्षक प्रतिमाएं, अनेकों प्रकार की मूर्तियां, सुंदर मेहराब और तोरण देखने लायक हैं। गर्भ गृह का प्रवेश द्वार शिल्प एवं सूक्ष्म मूर्तिकला का अप्रतिम उदाहरण है। देव सोमनाथ मंदिर के पिछे एक कुंड भी है जिसे पत्थरों की एक नाली के द्वारा गर्भ गृह से जोड़ा गया है। इस कुंड के पास हनुमान जी की एक अति प्राचीन काल की सुन्दर प्रतिमा भी स्थापित है। इस देव सोमनाथ मंदिर संरचना की विशेषता यह है कि दूर से देखने पर यह तीन मंजिला इमारत किसी विशाल आकार वाले रथ के समान दिखाई देती है।
देव सोमनाथ मंदिर की निर्माण शैली मालवा क्षेत्र की वास्तु शैली से मिलती-जुलती है। यह मंदिर किसी आश्चर्य से कम नहीं है। इसमें प्रयोग किये गये सभी भारी-भरकम पत्थरों को अलग-अलग अकार और डिजाइन में काटकर एक दूसरे में कुछ इस प्रकार से फंसाया गया है कि वे हिलते तक नहीं है।
12वीं शताब्दी में स्थानीय राजपूत शासक राजा अमृतपाल देव के शासन काल के दौरान बनवायी गयी इस देव सोमनाथ मंदिर की यह तीन मंजिला संरचना 150 विशालकाय और नक्काशीदार पत्थरों के स्तंभों पर टिकी है। जबकि इसके शिखर के निर्माण में 75 विशालकाय और अति सुंदर नक्काशीदार शिलाखंडों को लगाया गया है। इस तरह कुल मिलाकर इन सभी 225 विशालकाय शिलाखंडों को कुछ इस तरह से जोड़कर, मिलाकर या फंसा कर रखा गया है कि इस तीन मंजिला इमारत में कहीं भी किसी दूसरे विकल्प या सामग्री की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। यहां खास तौर पर विदेशों से आने वाले पर्यटक यह देखकर दंग रह जाते हैं कि आखिर कैसे इतनी विशाल और ऊंची इमारत एक पत्थर के ऊपर दूसरा पत्थर रख कर टिकी हुई है?
डूंगरपुर जिले में स्थित इस देव सोमनाथ मंदिर में एक ऐसा शिलालेख भी देखने को मिलता है जिस पर लिखा है कि 14वीं शताब्दी के राजा महारावल गोपीनाथ, जिनका शासनकाल 1427 से 1447 ईसवी तक रहा और उनके बाद महारावल शेषमल जी, जिनका शासनकाल 1586 से 1606 ईसवी तक रहा, उन्होंने अपने-अपने समय में इस मंदिर का जिर्णोद्वार करवाया था।
डूंगरपुर जिले के इस देव सोमनाथ मंदिर के सभा मंडप में तीन दिशाओं से प्रवेश किया जा सकता है। हर प्रवेश द्वार को आकर्षक नक्काशीदार तोरण से सजाया गया है। इसमें सबसे आकर्षक है इसके सभामंडप के गुंबज का सटीक और नक्काशीदार ऊपरी भाग। इसके अलावा सभा मंडर के हर स्तंभ पर विभिन्न प्रकार की कलाकृतियों और मूर्तियों को उकेर कर बड़े ही सुंदर ढंग से सजाया गया है। जबकि इसके ऊपरी दोनों तल रथों के आकार वाली बनावट के दिखते हैं। इस मंदिर की नक्काशी और वास्तु कला रणकपुर स्थित जैन मंदिर से मिलती-जुलती है।
जहां एक ओर मुगल काल के दौरान हर प्रकार की धार्मिक इमारतों पर आक्रमण हो रहे थे और उनको नष्ट किया जा रहा था वहीं उस दौर में डूंगरपुर जिले में स्थित इस देव सोमनाथ मंदिर संरचना का यूं ही सलामत रहना कई लोगों को एक आश्यर्च सा लगता है और कई सारे सवाल भी उठते हैं। तो इस विषय पर यहां के स्थानिय लोगों का कहना है कि जब औरंगजेब इस मंदिर में लूटपाट मचाने और इसको ध्वस्त करने के लिए यहां आया और उसने अपने सैनिकों को इस मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया तो मंदिर के अंदर से चमत्कारिक रूप से निकली लाखों मधुमक्खियों ने उसके उन सैनिकों पर ऐसा हमला बोला कि कई सैनिक हताहत हो गये और दौबारा लौट कर नहीं आये।
जबकि औरंगजेब से पहले मोहम्मद गौरी ने भी इस मंदिर पर आक्रमण किया था और आज जो इस मंदिर के शिखर पर कलश का स्थान खाली दिखता है उसके बारे में ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि जब मोहम्मद गौरी डूंगरपुर जिले में स्थित इस देव सोमनाथ मंदिर की तरफ आ रहा था तो उसे बहुत दूर से ही इसके शिखर पर चमकता हुआ स्वर्ण कलश दिख गया था। मंदिर के पास आकर उसने सबसे पहले उस कलश को ही उतरवाया और उसके बाद मंदिर के अंदर मौजूद तमाम कीमती आभूषणों और रत्नों को अपने कब्जे में ले लिया था। स्थानीय लोगों का कहना है कि उसके बाद से इस मंदिर के शिखर पर ना तो कलश ही स्थापित किया गया और ना ही धर्म ध्वजा को लगाया गया।
डूंगरपुर जिले में स्थित इस देव सोमनाथ मंदिर की यह संरचना आज के दौर में भी धर्म, आध्यात्म और पर्यटन के लिहाज से जितनी विशाल, आकर्षक और महत्वपूर्ण है उससे भी कहीं ज्यादा यह उपेक्षा का शिकार दिखती है। किसी आश्चर्य से कम नहीं आंके जाने वाली इस संरचना को देखकर लगता है मानो अब यह मंदिर मात्र पत्थरों का एक ढांचा ही बन कर रह गया है।
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हालांकि देव सोमनाथ मंदिर की यह संरचना अब पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। लेकिन, विभाग की लापरवाही इतनी अधिक है कि कोर्ट के आर्डर के बाद भी यहां जिर्णोद्वार के काम को न के बराबर किया जा रहा है। इसके प्रांगण में बिखरे अन्य अनेकों प्रकार के पौराणिक और ऐतिहासिक काल के बेशकीमती अवशेषों को संवारने और उनकी सुरक्षा करने की अत्यंत आवश्यकता है।
26 जनवरी सन 2001 में गुजरात के भुज में आये भूकंप के बाद इस मंदिर में वैसे तो कोई खास नुकसान नहीं हुआ। लेकिन इसके कुछ पत्थर हिल कर गिर गये थे, जिसके बाद से तीन मंजिला इस मंदिर में अब केवल प्रथम तल ही आम पर्यटकों और दर्शनार्थियों के लिए खुला रहता है। जबकि बाकी के दोनों मंजिलों पर किसी को भी प्रवेश की अनुमति नहीं है। स्थानीय लोगों के अनुसार ऊपर की दोनों मंजिलों के स्तंभों पर भी कई सारी आकर्षक और नक्काशीदार दूर्लभ मूर्तियां हैं।
पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए सदैव खुला रहने वला डूंगरपुर जिले में स्थित यह देव सोमनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इसलिए सनातन संस्कृति से संबंधित हर प्रकार के तीज-त्योहार और अनुष्ठानों के अवसर पर डूंगरपुर वासियों और आसपास के अन्य क्षेत्रों के लोगों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र बन जाता है।
शिवरात्री और वैशाख पूर्णिमा के अवसर पर देव सोमनाथ मंदिर के पास आयोजित होने वाले यहां के विशाल मेले में राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश की परंपरागत लोकसंस्कृति और कला के रंग में सराबोर नजर आता है। खास कर राजस्थान की ऐतिहासिक धरोहरों को देखने और उनके बारे विशेष प्रकार की जानकारियां जुटाने के लिए यहां कई देशी और विदेशी पर्यटकों की यहां भी अच्छी खासी संख्या देखने को मिल जाती है। कुछ विशेष कार्यक्रमों और अवसरों पर यहां आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए स्थानिय प्रशासन द्वारा यातायात से संबंधित कुछ विशेष सुविधाओं का बंदोबस्त किया जाता है।
अगर आप भी डूंगरपुर जिले में स्थित इस देव सोमनाथ मंदिर में एक श्रद्धालु और पर्यटक के रूप में जाना चाहते हैं तो उसके लिए अक्टूबर से फरवरी के बीच का समय ही सबसे अच्छा समय कहा जा सकता है।
डुंगरपुर शहर और इसके आसपास के अन्य कई सारे पर्यटन और दर्शनीय स्थलों में देव सोमनाथ का यह मंदिर, जूना महल, संग्रहालय और गैब सागर झील सबसे प्रमुख हैं। वैसेे तो यहां की स्थानीय बोली वागडी है लेकिन, अगर भाषा की बात करें तो यह गुजराती और हिंदी भाषा से मिलती-जुलती है, इसलिए दूर-दूर से आने वाले सैलानियों के लिए यहां भाषा की समस्या भी न के बराबर ही होती है।
देव सोमनाथ मंदिर राजस्थान राज्य के दक्षिणी जिले डुंगरपुर से लगभग 20 किमी उत्तर पूर्व में है। डुंगरपुर शहर से यहां तक पहुंचने के लिए आसानी से बस, टैक्सी या आॅटो रिक्शा मिल जाता है। अगर आप रेल मार्ग से यहां तक आना चाहते हैं तो उसके लिए सबसे नजदीकी और स्थानिय स्टेशन डुंगरपुर रेलवे स्टेशन है। जबकि उदयपुर के रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे से इसकी दूरी लगभग 100 किलोमीटर है।