अजय सिंह चौहान || बिहार के औरंगाबाद जिले की दक्षिण पूर्व दिशा में करीब 10 किमी दूर स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर, यानी देव मंदिर (Dev Sun Temple, Aurangabad, Bihar) की स्थापनाकाल के संबंध में उसके बाहर ब्रह्म लिपि में लिखित और संस्कृत में अनुवादित एक ऐसा श्लोक मिलता है, जिसके माध्यम से हमें ज्ञात होता है कि यह देव सूर्य मंदिर त्रेता युग के 12 लाख 16 हजार वर्ष बीत जाने के बाद उस समय के एक महान राजा इलापुत्र यानी इला के पुत्र ‘पुरुरवा ऐल’ ने यहां पहली बार स्थापित करवा कर उसका शिलान्यास भी करवाया था। उसके बाद से अब तक न जाने कितनी ही बार इस मंदिर स्थल पर पुनर्निमाण और जिर्णोद्धार हो चुका होगा।
लेकिन, अधिकतर लोग यहां इस मंदिर की सर्वप्रथम स्थापना के बजाय इसकी वर्तमान संरचना को, जिसको की आज हम और आप देख पा रहे हैं उसी को, एक लाख पचास हजार इक्कीस वर्ष पुराना मान कर चलते हैं। लेकिन, सच तो ये है कि मंदिर में लगे इस शिलालेख से हमको साफ-साफ पता चलता है कि वर्ष 2021 तक इस पौराणिक मंदिर की स्थापना को लगभग एक लाख पचास हजार इक्कीस वर्ष पूरे हो गये हैं, ना कि इसकी वर्तमान संरचना के निर्माण को।
अगर हम पौराणिक देव सूर्य मंदिर की इस वर्तमान संरचना के निर्माणकाल की बात करें तो इतिहासकारों के अनुसार यह संरचना आठवीं से नवीं सदी के मध्य की बताई जाती है। और जो लोग देव सूर्य मंदिर की इस इमारत को एक लाख पचास हजार इक्कीस वर्ष पुरानी मानते हैं उनके लिए यहां ये जान लेना भी जरूरी है कि इस धरती पर इतनी प्राचीन मानव निर्मित किसी भी संरचना या अन्य किसी वस्तु के अवशेष आजतक कहीं भी ना तो देखे गये हैं और ना ही संभव है।
इसलिए यहां बजाय यह कहने के कि इस मंदिर की वर्तमान इमारत यानी संरचना एक लाख पचास हजार इक्कीस वर्ष पुरानी हो गई है, यहां ये कहा जाना चाहिए कि इस स्थान पर भगवान देव सूर्य की स्थापना को लगभग एक लाख पचास हजार इक्कीस वर्ष पुरे हो गये हैं। उसके बाद से न जाने कितनी ही बार इस स्थान पर मंदिर का पुनर्निमाण हो चुका होगा।
इस समय यहां हमें जो देव सूर्य मंदिर की वर्तमान संरचना देखने को मिलती है उसके निर्माणकाल को लेकर इतिहासकार इसे आठवीं से नवीं सदी के मध्य की होने का अनुमान लगाते हैं। उस हिसाब से यह इमारत आज से लगभग 12 सौ वर्ष पुरानी हो सकती है।
जबकि, बिहार सरकार की वेबसाइट की मानें तो इस देव सूर्य मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी के अंतिम दशक में इसी उमगा क्षेत्र के चन्द्रवंसी राजा भैरेन्द्र सिंह द्वारा करवाया गया था। ऐसे में तो यह संरचना लगभग 700 वर्ष पुरानी ही है।
अब अगर हम इसी उमगा क्षेत्र यानी कि बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित इस प्राचीन सूर्य मंदिर की वर्तमान संरचना की अन्य विशेषताओं के बारे में बात करें तो करीब एक सौ फीट ऊंचाई वाले इस देव सूर्य मंदिर की खासियत है कि इसका प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा की ओर है, यानी यह अन्य सूर्य मंदिरों की तरह पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है।
इस मंदिर की वर्तमान संरचना को लेकर भी क्षेत्रीय स्तर पर जो मान्यताएं और किंवदंतियां प्रचलीत हैं उनके अनुसार कहा जाता है कि इस वर्तमान मंदिर की संरचना कई मामलों में सबसे अलग और अनोखी इसलिए है क्योंकि इसका निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथों से किया था और वो भी एक ही रात में।
जबकि यहां ये भी जान लेना चाहिए कि इस संरचना को भगवान विश्वकर्मा ने नहीं बल्कि उस समय के कुछ विशेष प्रशिक्षित कारीगरों ने ही इसे तैयार किया है। और क्योंकि आज के दौर में इस प्रकार की अद्भूत नक्काशी या निर्माण शैली और वास्तुकला ना ही बन पाती है और ना ही इतना सुंदर मंदिर आजकल के कोई इंजीनियर या कोई भी शिल्पी बना सकता है इसीलिए शायद इसकी इतनी अद्भूत नक्काशी, स्थापत्य और मनमोहक वास्तुकला के कारण ही ऐसा कहा जाता है।
देव सूर्य मंदिर के निर्माण की शैली अति प्राचीन है जिसमें चूना और गारा प्रयोग किया गया है। इसके अलावा इसमें लगे अलग-अलग प्रकार के आकारों वाले पत्थर, जैसे कि वर्गाकार, आयताकार, गोलाकार और त्रिभुजाकार में काटे गये तमाम आकार वाले पत्थरों को जोड़ने के लिए भी चूना और गारे का ही प्रयोग किया गया है इसीलिए यह निर्माण की शैली किसी विशेष आकर्षण का केन्द्र है।
शिल्प कला और निर्माण शैली के अनुसार इतिहासकारों ने इसका निर्माणकाल छठी से आठवीं सदी के बीच का माना है। नागर वास्तु शैली और निर्माण शैली में बने इस देव सूर्य मंदिर की शिल्पकला में उड़िया शैली और वेसर शैली का भी मिश्रित प्रभाव देखने को मिलता है इसीलिए इसकी शिल्पकला कोणार्क सूर्य मंदिर से काफी मिलती-जुलती है।
राज्य की धरोहर सूची में शामिल यह मंदिर उमगा नामक पहाड़ी पर स्थित है इसलिए दूर से देखने पर यह और भी आकर्षक नजर आता है।
दो भागों में बने इस देव सूर्य मंदिर का पहला भाग गर्भगृह है जिसके ऊपर कमल के आकार का शिखर है। मंदिर का दूसरा भाग मुख्य सभा मंडप है जिसके ऊपर पिरामिडनुमा छत है, और नक्काशीदार पत्थरों के बने आकर्षक स्तम्भ हैं। इसके प्रांगण में अद्भुत शिल्पकला वाली दर्जनों प्रतिमाएं हैं। मंदिर में शिव-पार्वती की प्रतिमा भी आकर्षक है।
इस मंदिर को लेकर कुछ ऐसी ऐतिहासिक किंवदंतियां भी प्रचलीत हैं जिनके आधार पर कुछ लोग इसे शिव मंदिर भी मानते हैं। हालांकि, वर्तमान में इसे सूर्य मंदिर के रूप में ही पहचाना जाता है।
काले और भूरे पत्थरों की अद्भूत शिल्पकारी से बना यह देव सूर्य मंदिर पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ जी के मंदिर से मिलती-जुलती निर्माण शैली में बना हुआ है और इसके पत्थरों में विजय चिन्ह व कलश भी अंकित हैं।
राज्य की धरोहर सूची में शामिल इस मंदिर में स्थापित भगवान सूर्य की मूर्तियां अपने तीन अलग-अलग रूपों को दर्शातीं हैं जिनमें सूर्योदय यानी उदयाचल के समय का सूर्य, मध्य सूर्य यानी जिसे हम दोपहर का समय कहते हैं और अस्ताचल यानी जिसे हम शाम के समय का सूर्य कहते हैं।
इसके अलावा मंदिर के परिसर में जो तमाम खंडित मूर्तियां देखने को मिलती हैं, उनके बारे में इतिहासकार बताते हैं कि ये मूर्तियां उस दौर की हैं जब 16वीं शताब्दी के मुगल शासनकाल के दौरान बंगाल के ‘काला पहाड़’ नामक एक क्रुर और अत्याचारी शासक ने यहां धावा बोल कर लूटपाट की थी और मंदिर से कीमती आभूषण और हीरे-जवाहरात आदि को लूटकर ले गया था। हालांकि, बाद में औरंगजेब ने भी यहां अपनी क्रुरता की हदें पार करते हुए तमाम हिंदू धर्मस्थलों को रोंद डाला था। लेकिन, इतिहासकार मानते हैं कि संभवतः वे लोग इस मंदिर को इसलिए नष्ट नहीं कर पाये थे क्योंकि इसके लिए उसके सैनिकों को बहुत अधिक श्रम करना पड़ता और समय भी अधिक लग जाता। इसलिए उन क्रुर शासकों ने इसको ढहाने की बजाय इसमें की तमाम मूर्तियों को खंडित करवा दिया और विरोध करने वालों की हत्या करवा दी थी।
भगवान सूर्य का यह ऐतिहासिक एवं प्राचीन मंदिर आज न सिर्फ उपेक्षित दिख रहा है बल्कि उचित प्रकार से संरक्षण न हो पाने के कारण नष्ट होने के कगार पर भी पहुंचता जा रहा है। आजादी के बाद से जो सम्मान और देखभाल इस मंदिर का होना चाहिए था उसके हिसाब से किसी भी राज्य सरकारों के द्वारा इसके लिए बहुत ही कम काम किया गया है, जिसके चलते प्राचीन मंदिर की दिवारों पर कई जगह न सिर्फ जंगली घास उग आई है बल्कि इसकी दिवारों में कुछ खतरनाक दरारें भी देखने को मिल रही है।
लेकिन, बावजूद इसकी दयनीय दशा के स्थानीय ही नहीं बल्कि देश-विदेश से यहां आने वाले तमाम लोगों के लिए यह मंदिर किसी आश्चर्य से कम नहीं है। त्रेतायुग में स्थापित इस ऐतिहासिक और पौराणिक देव सूर्य मंदिर की कलात्मक भव्यता सदियों से देशी-विदेशी पर्यटकों और श्रद्धालुओं की अटूट आस्था और आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
उमगा नामक पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर के पास ही में एक छोटे आकार का चमत्कारी कुंड भी है, जिसे देव कुंड या अमर कुंड के नाम से पहचाना जाता है। इस कुंड में स्नान करने की परम्परा का विशेष महत्व है। देखने में तो यह कुंड साधारण दिखाई देता है, लेकिन, इस कुंड की खास विशेषता यह है कि पहाड़ी की काफी ऊंचाई पर होते हुए भी इसका पानी कभी कम नहीं होता। कुछ लोग इसे ईश्वरीय चमत्कार भी मानते हैं। इसलिए यहां आने श्रद्धालुओं की संख्या प्रतिदिन हजारों में होती है। जबकि रविवार के दिन यहां हवन-पूजन करने हेतु श्रद्धालुओं की खासतौर पर भीड़ देखी जा सकती है।
हर वर्ष, छठ के अवसर पर सूर्य देवता की पूजा करने के लिए हजारों तीर्थयात्री मंदिर के परिसर में एकत्र होते हैं। और क्योंकि यह मंदिर यहां युगों पहले से यहां स्थापित था इसलिए इसके साथ तमाम प्रकार के पौराणिक साक्ष्यों के साथ-साथ कई मान्यताएं और किंवदंतियां भी जुड़ी हुई हैं। इस समय मंदिर की देखभाल का दायित्व ‘देव सूर्य मंदिर न्यास समिति’ के पास है।
अगर आप लोग भी बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले में स्थित इस प्राचीन, पौराणिक और ऐतिहासिक सूर्य मंदिर, यानी देव मंदिर के दर्शनों के लिए जाना चाहते हैं तो यहां का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन अनुग्रह नारायण रोड पर यहां से लगभग 20 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा सड़क मार्ग से जाने के लिए यह दूरी पटना से 160 किमी है। और अगर आप यहां हवाई जहाज से पहुंचना चाहते हैं तो उसके लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा पटना में लोक नायक जयप्रकाश हवाई अड्डा है जहां से इसकी दूरी करीब 160 किमी है।