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विकास की रफ्तार में दिल्ली कल आज और कल | Developments in Delhi

admin 2 February 2022
Drinking water in Delhi and problems
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किसी भी राज्य को विकास की कसौटी पर जब कसा जाता है तो सर्वप्रथम यह विचार किया जाता है कि वहां की स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, पानी, सीवर, सड़क, परिवहन एवं अन्य बुनियादी सुविधाएं कैसी हैं? इसके अतिरिक्त इस बात पर भी विचार किया जाता है कि लोगों को जो सुविधाएं मिल रही हैं, कहीं उनमें ऋण लेकर घी पीने की स्थिति तो नहीं है। इस दृष्टि से यदि राजधानी दिल्ली की बात की जाये तो निःसंदेह यह कहा जा सकता है कि यहां की स्थिति संतोषजनक नहीं है। इस संबंध में मैं दिल्ली के बहुत अतीत में तो नहीं जाना चाहती हूं किन्तु विगत कुछ वर्षों की बात की जाये तो साफ तौर पर देखने में आता है कि दिल्ली विकास की रफ्तार में निरंतर पिछड़ती जा रही है।

पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी अकसर कहा करते थे कि गाड़ी का पहिया जितना तेज भागेगा, विकास की रफ्तार उतनी ही तेज होगी यानी सड़कें एवं परिवहन व्यवस्था जितनी अच्छी होगी, विकास उतना ही तेज होगा। इस दृष्टि से यदि दिल्ली की बात की जाये तो राजधानी में सड़कों की स्थिति निरंतर खराब होती जा रही है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने सड़कों के विकास एवं रख-रखाव पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। परिवहन व्यवस्था की तो हालत यह है कि जैसे सरकार इस तरफ कोई ध्यान ही नहीं देना चाहती है।

दिल्ली में जब केजरीवाल सरकार आई थी तो उस समय डीटीसी बसों की संख्या 6118 थी जबकि केजरीवाल सरकार ने 11 हजार बसों को खरीदने का वादा 2015 में एवं 2020 के घोषणापत्र में किया था किन्तु इन सात वर्षों में बसें खरीदने के मामले में दिल्ली सरकार की क्या स्थिति है? यह किसी से छिपा नहीं है। पर्याप्त बसें उपलब्ध न होने के कारण लोगों को निजी वाहनों से यात्रा करना मजबूरी बन जाती है, इससे सड़कों पर जाम लगता है, धुएं से प्रदूषण बढ़ता है और साथ ही ईंधन की भी खपत अधिक होती है।

विचित्र बात यह है कि दिल्ली सरकार ने 2015 में ही इलेक्ट्रिक बसें खरीदने की योजना शुरू की थी किन्तु अभी तक बहुत मुश्किल से एक इलेक्ट्रिक बस आ पाई है, वह भी मात्र ट्रायल के लिए। ताज्जुब तो इस बात का है कि आज दिल्ली में जितनी भी बसें डीटीसी की बची हैं, उनमें से अधिकांश की उम्र पार हो चुकी है यानी कि इन बसों को जनता और डीटीसी कर्मियों की सुरक्षा को ताक पर रखकर चलाया जा रहा है। राजधानी दिल्ली की आबादी निरंतर बढ़ती जा रही है किन्तु उस अनुपात में पानी की जितनी जरूरत है उसका इंतजाम नहीं हो पा रहा है। दिल्ली में प्रतिदिन 1300 एमजीडी पानी की जरूरत है किन्तु दिल्ली के पास 800 एमजीडी भी पानी नहीं है।

दिल्ली के अधिकतर इलाकों में पानी इतना गंदा आता है कि उसे पीकर लोग बीमार पड़ रहे हैं। 2015 से पहले पानी के टैंकर माफियाओं को खत्म करने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री ने बड़ी-बड़ी बातें की थी किन्तु उस समस्या को अभी तक दूर नहीं कर पाये हैं। आज स्थिति यह है कि सरकार टैंकरों से पानी की सप्लाई पर तीन गुना अधिक खर्च कर रही है। दिल्ली जल बोर्ड की बात की जाये तो जल बोर्ड का घाटा निरंतर बढ़ता जा रहा है। दिल्ली जल बोर्ड में अराजकता का ऐसा माहौल है कि उसने दिल्ली सरकार से 58 हजार करोड़ रुपये का लोन लिया है, उसे हर साल 2 हजार करोड़ रुपयों का घाटा हो रहा है।

दिल्ली सरकार की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वह अपनी कमियां छिपाने के लिए दूसरों पर दोषारोपण करने में जरा भी देरी नहीं लगाती है। प्रदूषण के मुद्दे पर वह दूसरे राज्यों पर दोष मढ़कर अपना दोष कम करना चाहती है जबकि दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के लिए 20 करोड़ रुपये की लागत से स्माग टावर लगाया गया, किन्तु वह भी ठीक से काम नहीं कर रहा है। प्रदूषण के मामले में सुप्रीम कोर्ट दिल्ली सरकार को लताड़ भी लगा चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ यह भी कहा है कि दिल्ली में प्रदूषण के लिए शोर मचाना गलत है।

हर मोर्चे पर नाकाम होती दिल्ली सरकार | Panic & Blaming Game of Delhi Government

दिल्ली के प्रदूषण में पराली का हिस्सा मात्र 10 फीसदी ही है। दिल्ली के प्रदूषण के लिए दिल्ली का ट्रांसपोर्ट, इंडस्ट्री, डस्ट और कंस्ट्रक्सन जिम्मेदार है। दिल्ली की नई शराब नीति की बात की जाये तो वह दिल्ली के युवाओं को बर्बाद करने का कार्य करेगी। दिल्ली सरकार जिस प्रकार राजधानी दिल्ली में शराब को बढ़ावा देने में लगी है, उससे तो यही साबित होता है कि शराब ही दिल्ली सरकार के लिए सबसे कमाऊ पूत है।

अपने आप में यह कितनी बड़ी विडंबना है कि स्वयं दिल्ली सरकार ही दिल्ली के युवाओं को अधिक से अधिक शराब पिलाकर बर्बाद करना चाहती है। शराब अर्थव्यवस्था के लिए चाहे जितना भी अपयोगी हो किन्तु एक बात तो निश्चित रूप से कही जा सकती है कि आने वाला समय दिल्ली के लिए अच्छा साबित नहीं होगा।

शिक्षा के मामले में सरकार लगातार इस बात का ढोल पीट रही है कि उसने दिल्ली में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति ला दी है किन्तु वास्तविकता दावों से अलग ही है। पीजीआई द्वारा की गई ग्रेडिंग में पूरे देश में दिल्ली 32वें स्थान पर रही है। दिल्ली इस मामले में कई छोटे राज्यों से भी पिछड़ गई है। आज दिल्ली के 1200 सरकारी स्कूलों में से 750 स्कूलों में तो प्रिंसिपल ही नहीं हैं, 418 स्कूलों में वाइस प्रिंसिपल नहीं हैं और कुल 24,500 शिक्षकों की कमी है। सरकार सिर्फ स्कूलों में कमरे बनवाने पर जोर दे रही है। कमरों के साथ-साथ योग्य शिक्षकों एवं अन्य सुविधाओं की भी जरूरत है, जिसमें सरकार नाकाम साबित हुई है।

रिहायशी इलाकों में शराब की दुकान खोलना कितना उचित

शिक्षा के साथ-साथ सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था में भी क्रांतिकारी सुधार की बात करती है किन्तु वास्तविक स्थिति वैसी नहीं है जैसा दिल्ली सरकार बताती है। दिल्ली सरकार ने एक हजार मोहल्ला क्लीनिक खोलने का वादा किया था किन्तु अभी तक सिर्फ 450 ही खुल पाये हैं, उनमें से भी मुश्किल से 150 ही काम कर रहे हैं। दिल्ली सरकार सात वर्षों में एक भी नया अस्पताल नहीं खोल पाई। दिल्ली सरकार ने 2019 में बाईक एंबुलेंस सेवा बहुत धूमधाम से लांच की थी किन्तु वह योजना भी दम तोड़ चुकी है।

दिल्ली सरकार के बारे में एक बात और भी बहुत जोर-शोर से कही जा रही है कि विकास के लिए सरकार के पास पैसा भले ही न हो किन्तु प्रचार के लिए उसके पास भरपूर पैसा है। दिल्ली नगर निगमों के 13 हजार करोड़ रुपये की राशि का अब तक भुगतान नहीं किया गया। दिल्ली सरकार ने बजट में घोषणा के बावजूद ग्रामीण विकास बोर्ड की राशि जारी नहीं की। और तो और, यमुना पार विकास बोर्ड को भी पूरी तरह निर्जीव बना दिया गया और उसके लिए फंड भी जारी नहीं किया गया।

मुफ्त बिजली की बात की जाये तो आज दिल्ली में कमर्शियल बिजली औसतन 20 रुपये प्रति यूनिट और घरेलू बिजली औसतन 8.90 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से सप्लाई की जाती है जो कि देश में सबसे ज्यादा है। दिल्ली में फिक्स्ड चार्ज के रूप में देश में सबसे ज्यादा 270 रुपये प्रति किलोवाट की दर से राशि वसूली जाती है। पिछले सात सालों में दिल्ली की जनता से केजरीवाल सरकार फिक्स्ड चार्ज के नाम पर 14,257 करोड़ रुपये वसूल चुकी है।

इस प्रकार यदि समग्र दृष्टि से विश्लेषण किया जाये तो स्पष्ट रूप से नजर आ रहा है कि सिर्फ खोखली बातों से दिल्ली का विकास होने वाला नहीं है। दिल्ली के विकास के लिए कम से कम आगामी 50 वर्षों की चुनौतियों को ध्यान में रखकर योजनाएं बनाने की आवश्यकता है। सतही तौर पर किये जा रहे उपायों से चुनाव तो जीता जा सकता है किन्तु दिल्ली को सजाया एवं संवारा नहीं जा सकता है।

– हिमानी जैन, मंत्री- भारतीय जनता पार्टी, दरियागंज मंडल, दिल्ली प्रदेश

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