अजय सिंह चौहान || बात सन 1310 की है। अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली से एक बड़ी सेना लेकर जालौर के लिए रवाना हुआ था, लेकिन रास्ते में सिवाना भी पड़ता था जहां के राजा थे सातलदेव जी। अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर से पहले सिवाना के दुर्ग को घेर कर अपने किसी विश्वासघाती के जरिये उस दुर्ग के भीतर सुरक्षित जल भंडार में गौ मांस और गौ रक्त डलवा दिया जिससे दुर्ग के लिए इस्तमाल होने वाला सारा जल दूषित हो चुका था।
सिवाना के शासक सातलदेव जी के पास अब कोई विकल्प नहीं बचा था, क्योंकि गौ मांस और गौ रक्त युक्त जल को वे पी नहीं सकते थे। इसलिए उन्होंने इसे अन्तिम युद्ध की घोषणा मानकर अपने समस्त सैनिकों के साथ “केसरिया बाना” पहन लिया। “केसरिया बाना” एक प्रकार के ऐसे पवित्र वस्त्र होते हैं जिन्हें युद्ध में जाने से पहले हर राजपूत योद्धा पहना करते हैं।
पुरुषों के द्वारा “केसरिया बाना” पहन लेने के बाद दुर्ग में रहने वाली समस्त क्षत्राणियों और अन्य दासियों के पास भी अब कोई विकल्प नहीं बचा था, इसलिए उन सभी स्त्रियों ने केसरिया बाना पहने अपने रक्षकों के सामने ही “जौहर” कर लिया, ताकि उनका शरीर अलाउद्दीन खिलजी या उसके अन्य किसी भी सैनिक के हाथ अपवित्र न हो सके। यानी उन क्षात्राणियों ने स्वयं को आग के हवाले कर लिया। उधर सातलदेव आदि भी धर्म की रक्षा के खातिर खिलजी की विशाल सेना के सामने जा पहुंचे।
अलाउद्दीन खिलजी जानता था की सातलदेव जी के पास मात्र कुछ ही सैनिक हैं लेकिन फिर भी उसकी विशाल सेना उनका सामना नहीं कर सकती। इसलिए उसने युद्ध के मैदान में अपनी सेना के आगे गायों को खड़ा कर दिया और उनके सहारे सातलदेव जी की सेना को असहाय कर दिया। और क्योंकि सातलदेव जी की सेना ने “केसरिया बाना” पहन लिया था इस लिए इसे ही अपना अंतिम धर्म युद्ध माना और “वीर शाका” करके वीरगति को प्राप्त हो गए।
गाय की रक्षा और उसके सम्मान के लिए जहां पहले कभी हिन्दू समाज “केसरिया बाना” पहन लिया करते थे और महिलायें ख़ुशी-ख़ुशी “जौहर” कर लिया करती थीं, वहीं आज का यह आधुनिक भारत गोमांस निर्यात के पायदान पर विश्व में कभी नंबर एक तो कभी नंबर दो के स्थान पर रह कर विश्व कीर्तिमान बना रहा है और डालरों में धन अर्जित कर अपने विदेशी मुद्रा भंडार को भरता जा रहा है। गोमांस निर्यात से अर्जित उसी धन से चुनावों में मुफ्त की रेवड़ियां बांटी जा रही है और उसी खिलजी के वंशजों को मुफ्त वज़ीफ़े भी बांटे जा रहे हैं।
उधर सातलदेव जी की सेना का “वीर शाका” होते ही अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने सिवाना के उस दुर्ग में प्रवेश किया और लूटपाट मचा दी, दुर्ग में बने मंदिरों को खंडित कर उसमें से विशाल खजाने को अपने कब्जे में ले लिया। सिवाना पर कब्जे के बाद खिलजी ने अपनी सेना को जालौर पर आक्रमण के लिए भेज दिया, लेकिन खुद उस बेशकीमती खजाने को लेकर दिल्ली आ गया।
अगर हम वर्तमान स्थिति को देखें तो मांस निर्यात पर सरकारी रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014 के बाद से मांस का निर्यात और भी अधिक बढ़ा है। एक आरटीआई के जवाब में मिली जानकारी से सामने आया है कि सन् 2017 में मांस निर्यात को लेकर लोकसभा में सरकार की ओर से कहा गया था कि मांस निर्यात में 17,000 टन की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। यही नहीं, केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 2014-2017 के बीच तीन सालों में बूचड़खानों के लिए लगभग 68 करोड़ रुपये की सब्सिडी भी दी थी।
सन 2006 के समय से भारत की और से मांस के निर्यात में बढ़ोत्तरी आने का जो सिलसिला आरंभ हुआ था, आज वह भारत को नं-1 बीफ निर्यातक तक पहुंचा चुका है। फरवरी, 2018 की ‘वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाईजेशन’ रिपोर्ट के अनुसार बीफ निर्यात के क्षेत्र में वर्ष 2006 से 2016 के बीच भारत में एक जबरदस्त बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। वर्ष 2006 में जहां बीफ के विश्व व्यापार में भारत का योगदान मात्र 2 प्रतिशत तक ही हुआ करता था, सन 2016 में यह आंकड़ा एकाएक 20 प्रतिशत से अधिक हो गया! सन 2022-23 में तो यह आंकड़ा और भी अधिक बढ़ गया है।
#dharmwani