कहा जाता है कि- ‘आप जैसा विचार करेंगे, जैसा बोलेंगे वैसा ही आपके साथ हो जाता है।’’ इस कहावत में कितनी सच्चाई है हमें इस एक ऐतिहासिक घटना से पता चलता है और सबक भी मिलता है कि कोशिश हमेशा परिणाम मिलने तक जारी रखना चाहिए। क्योंकि, दुनिया सिर्फ आपके उन परिणामों को ही जानती है, आपकी उन कोशिशों को नहीं जिनमें आपने कई वर्ष लगा दिये।
यहां हम इन उदाहरणों को चरितार्थ करती हुई एक घटना के रूप में देखें तो पता चलता है कि उस ऐतिहासिक घटना के अनुसार कहा जाता है कि आज से लगभग 1700 वर्ष पूर्व तक यहूदियों पर पहले तो ईसाईयों ने और फिर मुस्लिमों ने खुब अत्याचार किये थे। दुखी होकर यहूदियों को अपनी जन्मभूमि और पवित्र स्थान यरुशलम को छोड़कर दर-दर भटकना पड़ा था। उनमें से कई यहूदी तो भारत में भी आकर शरणार्थी बने थे। शरणार्थियों की जिंदगी जीने वाले उन यहूदियों की जब भी कभी, कहीं भी मुलाकात होती थी तो वे आपस में यही शब्द दोहराते थे कि- ‘अगले वर्ष यरुशलम में मिलेंगे,’ या फिर ‘जल्द मिलते हैं यरुशलम में।’
यहूदियों के उस अटल विश्वास और दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण ही वर्ष 1948 में वे फिर से अपनी मात्रभूमि इजराइल और इसकी राजधानी यरुशलम में फिर से कब्जा कर पाने में सफल हो सके हैं। यहूदियों के लिए ऐसा इसलिए संभव हो पाया क्योंकि वे अपने उस सत्य को न तो भूल पाये और न ही अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से कभी पीछे हटने को तैयार हुए और न ही अपने अन्य साथियों को भूलने दिया।
यहां हम यह भी कह सकते हैं कि यदि आप अपने इतिहास को स्मरण रखते हैं तो इतिहास भी आपको स्मरण रखता है। अर्थात जिन्होंने भी अपने इतिहास को स्मरण रखा उन्होंने अपना खोया गौरव, अधिकार और ताकत को फिर से प्राप्त कर लिया।
लेकिन, भारत की वर्तमान परिस्थितियों और घटनाओं को देखते हुए हम भारतीयों के साथ समस्या ये है कि हम इतिहास को न सिर्फ पढ़ना भूल गये हैं बल्कि इतिहास की उन घटनाओं और तथ्यों से बचने भी लगे हें। ऐसे में तो यही कहा जा सकता है कि किसी सोये हुए व्यक्ति को तो उठाया जा सकता है लेकिन, जिसने सोने का नाटक कर रखा है उसको कौन उठाये?
– मनिषा ठाकुर, भोपाल