एक बार जब किसी ने स्वामी दयानन्द सरस्वती जी से पूछा कि वेदों और पुराणों में हमें जिस विमान के बारे में पढ़ने को मिलता है उस विमान का प्रथम आविष्कारक कौन रहा होगा? तो स्वामी दयानन्द सरस्वती जी का उत्तर था कि वेदों का पूर्ण ज्ञान रखने वाला और कला-कौशल की व्यवस्था करने वाला विश्कर्मा नामक एक दिव्य पुरुष जो कि परमेश्वर का भी एक नाम है, वह न सिर्फ एक शिल्पकार था बल्कि विज्ञान के अविष्कारों का भी जनक था। और उसी विश्कर्मा ने वेदों से प्राप्त ज्ञान के आधार पर सर्वप्रथम विमानों का अविष्कार और निर्माण किया था।
यानी स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के उस उत्तर से हमें इस बात की जानकारी मिलती है कि वेदों को पढ़कर ही विश्कर्मा ने आज से करोड़ों वर्ष पूर्व सर्वप्रथम विमान का आविष्कार किया था।
आधुनिक युग की बात करें तो हमारे सामने हर बार यही उत्तर आता है कि आजकल हम जिन विमानों को देखते हैं, उनका अविष्कार अमरीका के दो भाईयों ने यानी कि राइट ब्रदर्स ने मिलकर 17 दिसंबर 1903 में किया था और उन्हीं ने संसार की सबसे पहली सफल मानवीय हवाई उड़ान भी भरी थी। इसलिए इन्हीं को विमानों का प्रथम आविष्कारक माना जाता है।
अगर यहां हम स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के उस उत्तर में छूपे उन वैदिक रहस्यों को आधार मानें तो हमारे सामने एक चैंकाने वाला तथ्य सामने आता है कि आधुनिक विमान का आविष्कार सबसे पहले राइट ब्रदर्स ने नहीं बल्कि एक भारतीय वैदिक विद्वान और वैज्ञानिक ‘शिवकर बापूजी तलपड़े’ ने पूर्ण रूप से वेदों के आधार पर ही वर्ष 1895 में यानी राइट ब्रदर्स से भी आठ वर्ष पहले कर लिया था और मुंबई की चैपाटी के पास सफलता पूर्वक उसका परिक्षण भी कर लिया था।
लेकिन, दूर्भाग्य यह रहा कि जब इस बात की जानकारी अंग्रेजों को मिली कि शिवकर बापूजी तलपड़े नामक एक भारतीय वैदिक वैज्ञानिक ने विज्ञान के आधार पर नहीं बल्कि ‘वैदिक विज्ञान’ के आधार पर एक विमान का न सिर्फ आविष्कार किया बल्कि उसका सफल परिक्षण भी कर लिया है तो, अंग्रेजी हुकुमत सकते में आ गई। क्योंकि उन दिनों भारत में अंग्रेजों का पूरी तरह से कब्जा हो चुका था इसलिए उन्होंने उन सबूतों को न सिर्फ नष्ट कर दिया बल्कि आविष्कार से जुड़े उस शोध के सारे सबूतों को अपने साथ ले गये।
और इस तरह भारत का गौरव एक बार फिर से अंधकारमय हो गया। इसी के बाद से अंग्रेजों ने हमारे वेदों और पुराणों का अनुवाद अंग्रेजी और हिंदी भाषा में अपने अनुसार करवाया, ताकि उन गं्रथों के अंदर छूपा वो दैवीय ज्ञान और विज्ञान का खजाना भारतीय लोगों से दूर हो जाये और हम उस पर कब्जा कर सकें।
– ज्योति सोलंकी