कबूतर को लगभग हर एक संस्कृृति में शांति और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। कबूतर प्रजाति के पक्षी अंटार्कटिका को छोड़कर प्रायः सभी महाद्वीपों पर पाए जाते हैं। भारत में इनकी 24 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें से अधिकतर को हम खासतौर पर शहरों, कस्बों और ग्रामीण इलाकों की मानव बस्तियों में सबसे अधिक देख सकते हैं। कबूतर एक फ्रेंच भाषा का शब्द है, जबकि संस्कृत में इसको कपोत कहा जाता है। कबूतरों से जुड़े मिथक भी हैं जिनके अनुसार कुछ संस्कृतियों में कबूतर मृत आत्माओं के संदेशवाहक होते हैं इसलिए इनको घरों में पालना या पनाह देना अशुभ माना जता है इसीलिए हमारे पुराणों में उल्लेख मिलता है कि कपोत यानी कबूतर को घरों में नहीं पाला जाना चाहिए और न ही इससे नजदीकी रखनी चाहिए। यदि हम कबूतरों के विषय में प्राप्त अन्य प्रकार की जानकारियों को देखें तो पता चलता है कि कबूतर मुख्य रूप से बीज, जड़ी-बूटी और फल आदि खाते हैं।
पिछले करीब 25 वर्षों के आंकड़ों के अनुसार भारत में जंगली कबूतरों की संख्या में लगभग 100 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और इनकी ये संख्या मानव बस्तियों के आस-पास ही पाई जाती है जो कि स्वास्थ्य की दृष्टि से चिंता का विषय है क्योंकि कबूतर का अपशिष्ट हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक हानिकारक होता है। आंकड़ों के अनुसार, एक कबूतर साल भर में 12 से 15 किलो मल त्याग कर सकता है। कई क्षेत्रों में इनके मल अर्थात बीट का इस्तेमाल अच्छा उर्वरक तैयार करने में भी किया जाता है।
कबूतरों की लगभग 250 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से दो तिहाई आॅस्ट्रेलिया, उष्णकटिबंधीय दक्षिण पूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशांत द्वीपों में पाई जाती हैं। इसके अलावा यह पक्षी करीब-करीब दुनिया के हर कोने में पाया जाता है और सभी की औसत आयु लगभग छः वर्ष की होती है। घरेलू कबूतर करीब 1600 किलोमीटर तक भी रास्ता भटके बिना उड़ान भरने के बाद अपने घोंसले में लौट सकते हैं। माना जाता है कि संदेशवाहक कबूतर एक दिन में 800 से 1,000 किलोमीटर. की दूरी तय कर सकता है। कबूतरों की खासियत होती है कि ये कम आवृत्ति वाली ध्वनियों को भी आसानी से सुन सकते हैं, इसीलिए इनको आने वाले तूफान या भूकंप आदि की आहट को भांपने वाले पक्षियों में माना जाता है।
कबूतर आमतौर पर साल भर में दो या तीन बार प्रजनन कर सकते हैं। मादा कबूतर आमतौर पर एक बार में दो अंडे देती है और उन्हें ढाई सप्ताह तक सेना पड़ता है। दो या तीन सप्ताह में चूजे घोंसला छोड़ उड़ने में सक्षम हो जाते हैं। कबूतरों की एक और खासियत होती है कि ये करीब 6,000 फीट से अधिक ऊंचाई तक उड़ान भर सकते हैं। एक शोध के अनुसार कबूतर की स्मरण शक्ति बहुत अच्छी होती है इसीलिए ये उन लोगों के चेहरे को कभी नहीं भूलते जो उन्हें दाना खिलाते हैं।
हालांकि, कबूतर की कुछ प्रजातियां ऐसी भी हैं जो विभिन्न प्रकार के कीटों और बीजों को खाकर पर्यावरण को साफ रखने में भी योगदान देती हैं लेकिन अधिकतर इनको मानव बस्तियों, शहरों और कस्बों में देखा जा सकता है। शोधकर्ताओं के अनुसार शहरी वातावरण में रहने के लिए ये अच्छी तरह से अनुकूलित हो गए हैं और मनुष्यों द्वारा छोड़े गए भोजन के टुकड़ों को खाकर अपना जीवन यापन करते हैं।
एक शोध के अनुसार वैज्ञानिकों का मानना है कि कबूतरों में एक विशेष अंग होता है जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को महसूस कर सकता है और यही अंग उन्हें लंबी दूरी की यात्राओं में दिशा निर्धारित करने में सहायता करता है। कबूतर न केवल चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग करते हैं, बल्कि सूर्य और तारों की स्थिति के आधार पर भी वे दिशा निर्धारित करने में सक्षम हैं। कबूतरों की आंखें बेहद तेज होती हैं इसलिए वे एक साथ कई छवियों को देख सकते हैं और तेज गति की वस्तुओं को भी आसानी से पहचान सकती हैं। हालांकि, इनकी सूंघने की शक्ति अपेक्षाकृत कमजोर होती है। इनमें एक और खासियत है कि इनकी प्रतिरक्षा प्रणाली विभिन्न रोगाणुओं और बैक्टीरिया से उनके शरीर की रक्षा करती है। यही कारण है कि कई तरह के रोगों से लड़ने के लिए भी यह पक्षी प्राकृतिक रूप से सक्षम होते हैं।
कबूतर की कुछ प्रजातियां मोनोगैमस स्वभाव की होती हैं, जिसके अनुसार वे जीवन भर एक ही साथी के साथ रहती हैं और वे अपने साथी के प्रति सदैव वफादार होती हैं और संतान पालन में भी साथ मिलकर काम करते हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जो कबूतर को मार कर इसका मांस भी खाते हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार, कबूतरों की ध्वनियों को मात्र सरल गुटरगु समझने की गलती न करें। उनकी संवाद प्रणाली काफी जटिल है और इसमें विभिन्न प्रकार संकेत और शरीर की हरकतें भी शामिल होती हैं। ये ध्वनियां विभिन्न सूचनाओं का आदान-प्रदान करती हैं, जैसे खतरे की चेतावनी देना, भोजन का पता लगाना और साथी को आकर्षित करना आदि। इसके अलावा, कबूतरों को एक बुद्धिमान पक्षी माना जाता है, यही कारण है कि विभिन्न कार्यों के लिए इसे प्रशिक्षित किया जा सकता है। प्राचीन काल से ही, इन्हें संदेश ले जाने, खोज तथा बचाव कार्यों में सहायता करने या सहायता लेने के लिए प्रशिक्षित किया जाता रहा है।
पौराणिक तथ्यों के अनुसार, अमरनाथ जी गुफा में जिन दो कबूतरों का एक जोड़ा है वह अमर है और अनादिकाल से यहां रहता आ रहा है। यात्रा के दौरान कबूतर के इस जोड़े के दर्शन करने से साधक अपने आपको भाग्यवान मानते हैं लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इस बात को नहीं मानते कि यह जोड़ा अमर है और यहां अनादिकाल से रहता आ रहा है। वे तो इसे महज एक इत्फाक ही मानते हैं।
तथ्यों के अनुसार, अमरनाथ गुफा की ऊंचाई समुद्र तल से 12,756 फीट है और गुफा तक पहुचने के दो ही रास्ते जिनमें से एक रास्ता बालटाल से होकर पहुंचता है और दूसरा पहलगांव से। इनमें से पहलगांव की ऊंचाई समुद्र तल से 8,990 फीट है जबकि बालटाल गांव की ऊंचाई 8,999 फीट है यानी दोनों तरफ से करीब-करीब एक जैसी ऊंचाई पर चढ़ते हुए गुफा तक पहुंचना होता है और यह ऊंचाई 3,757 फिट अधिक है जो इन मानव बस्तियों से अधिक है जबकि श्री अमरनाथ जी की गुफा एक प्राकृतिक गुफा है और इतनी अधिक ऊंचाई पर न तो कोई मानव बस्ती है, न कोई पशु-पक्षी, पेड़-पौधे या अन्य प्रकार की ऐसी वनस्पति है जो भोजन के काम आती हो।
आश्चर्य तो इस बात का भी है कि बालटाल नामक गांव पवित्र गुफा से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर है जबकि पहलगांव की मानव बस्ती भी पवित्र गुफा से करीब 47 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा एक सवाल यह भी है कि यदि कबूतर 6,000 फीट से अधिक ऊंचाई तक ही उड़ने में सक्षम है तो फिर अमरनाथ जी की गुफा जो कि 12,756 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, वहां भला दो कबूतरों का यह जोड़ा कैसे पहुंच जाता है और कैसे अनादिकाल से जीवित है? इसके अलावा एक सवाल यह भी उठता है कि यदि वे किसी प्रकार से आस-पास की किसी मानव बस्ती से उड़कर यहां आते-जाते रहते हैं तो जो पक्षी मानव बस्तियों में रहते हैं। वे भला यहां इतनी दूर और सुनसान स्थान को ही स्थायी निवास के तौर पर चुना होगा। ऐसे में यहां यह मानना और विश्वास करना आवश्यक हो जाता है कि भगवान शिव द्वारा देवी पार्वती को अमरत्व के रहस्य का ज्ञान देने और उस ज्ञान को इन कबूतरों द्वारा सुनने और अमर होने की कथा कोई काल्पनिक नहीं बल्कि एक पौराणिक सत्य साबित होती है तथा अन्य कोई ऐसा कारण या तथ्य भी तो नजर नहीं आता जिसके आधार पर कहा जा सके कि इस प्रत्यक्ष घटने वाली घटना पर विश्वास न किया जाये।
– अजय सिंह चौहान