कभी आपने किसी घर में जाते ही वहाँ एक अजीब सी नकारात्मकता और घुटन महसूस की है? या फिर किसी के घर में जाते ही एकदम से सुकून औऱ सकारात्मकता महसूस की है? मैं कुछ ऐसे घरों में जाता हूँ जहां जाते ही तुरंत वापस आने का मन होने लगता है। एक अलग तरह का खोखलापन और नेगेटिविटी उन घरों में महसूस होती है। साफ समझ जाता हूँ कि उन घरों में रोज-रोज की कलह और लड़ाई- झगड़े और चुगली, निंदा आदि की जाती है। परिवार में सामंजस्य और प्रेम की कमी है। वहाँ कुछ पलों में ही मुझे अजीब सी बेचैनी होने लगती है और मैं जल्दी ही वहाँ से वापस आ जाता हूँ।
वहीं कुछ घर इतने खिलखिलाते और प्रफुल्लित महसूस होते हैं कि वहाँ घंटों बैठकर भी मुझे वक़्त का पता नहीं चलता ।
ध्यान रखिये….आपके घर की दीवारें सब सुनती हैं और सब सोखती हैं। घर की दीवारें युगों तक समेट कर रखती हैं सारी सकारात्मकता और नकारात्मकता भी।
“कोपभवन” का नाम अक्सर हमारी पुरानी कथा-कहानियों में सुनाई देता है । दरअसल कोपभवन पौराणिक कथाओं में बताया गया घर का वो हिस्सा होता था जहां बैठकर लड़ाई-झगड़े और कलह-विवाद आदि सुलझाए जाते थे। उस वक़्त भी हमारे पुरखे सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को अलग-अलग रखने का प्रयास करते थे इसलिए “कोपभवन” जैसी व्यवस्था की जाती थी ताकि सारे घर को नकारात्मक होने से बचाया जाए । इसलिए आप भी कोशिश कीजिए कि आपका घर “कलह-गृह” या “कोपभवन” बनने से बचा रहे।
घर पर सुंदर तस्वीरें, फूल-पौधे, बागीचे, सुंदर कलात्मक वस्तुएँ आदि आपके घर का श्रृंगार बेशक़ होती हैं पर आपका घर सांस लेता है आपकी हंसी-ठिठोली से, मस्ती-मज़े से, खिलखिलाहट से और बच्चों की शरारतों से, बुजुर्गों की संतुष्टि से, घर की स्त्रियों के सम्मान से और पुरुषों के सामर्थ्य से, तो इन्हें भी सहेजकर-सजाकर अपने घर की दीवारों को स्वस्थ रखिये।
आपका घर सब सुनता है और सब कहता भी है। इसलिए यदि आप अपने घर को सदा दीवाली सा रोशन बनाये रखना चाहते हैं तो ग्रह कलह और, निंदा, विवादों आदि को टालिये। यदि आपके घर का वातावरण स्वस्थ्य और प्रफुल्लित होगा तो उसमें रहने वाले लोग भी स्वस्थ और प्रफुल्लित रहेंगे।
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