भारतीय उच्चतम न्यायालय अनुच्छेद 21 के अंतर्गत भारतीय जनता को गरिमा के साथ जीवित रहने का अधिकार दिलाता है। जीवन को अधिक सार्थक और रहने योग्य बनाने के लिए अनुच्छेद 21 में जल के अधिकार को जोड़ा गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के जल मानवाधिकार विषय पर 2002 में जारी आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक समिति ने अपने जनरल कमेंट संख्या 15 में साफ लिखा है कि जल का मानवाधिकार प्रत्येक व्यक्ति को उसके निजी और घरेलू उपयोग हेतु पर्याप्त सुरक्षित स्वीकार्यता, भौतिक रूप से और कम कीमत पर उपलब्ध पानी का अधिकार प्रदान करता है।
डिहाइड्रेशन से होने वाली मृत्यु को रोकने के लिए रोगों के खतरे को कम करने और उपभोग, खाना पकाने, निजी और घरेलू स्वच्छता की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सुरक्षित जल की उपयुक्त मात्रा प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है। यदि संयुक्त राष्ट्र संघ के जनरल कमेंट संख्या 15 को हम ध्यान से देखें तो वह कहता है कि मानव के अस्तित्व के लिए जल एक मौलिक शर्त है और इसका होना समुचित जीवन स्तर के लिए अपरिहार्य है। जल पर्याप्त मात्रा में उपस्थित होना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार यह मात्रा लगभग 50 लीटर प्रतिदिन की है और किसी भी हालत में 20 लीटर प्रतिदिन न्यूनतम से नीचे नहीं होनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति के उपयोग के लिए जल समुचित होना चाहिए और उसकी गुणवत्ता भी सुनिश्चित होनी चाहिए। पेयजल रंगहीन और गंधहीन हो और स्वाद के हिसाब से स्वीकार्य होना चाहिए। पानी की उपलब्धता प्रत्येक व्यक्ति तक होना चाहिए और अगर नहीं है तो लोगों की सहज पहुंच में होना तो चाहिए ही अर्थात घर के अंदर या फिर घर के आस-पास उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। जल के मानवाधिकार में स्वच्छता या अधिकार ही नहीं थे राज्यों और सरकारों का यह दायित्व है कि पानी विशेषकर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सुरक्षित महिलाओं और उनके बच्चों की जरूरतों को ध्यान में रखकर प्रदान किया जाना चाहिए।
विश्व स्वास्थ संगठन का मानना है विश्व में लगभग 80% बीमारियां अशुद्ध जल के कारण होती हैं। भारत के लगभग 600 जिलों में से एक तिहाई जिलों में भूजल पीने के योग्य नहीं है। इस दूषित जल में फ्लोराइड, आयरन, नमक और आरसेनिक खतरनाक स्तर पर उपलब्ध है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आयरन पानी में पाया जाने वाला प्रमुख संदूषक है, जिससे 18,000 से अधिक ग्रामीण बस्तियां प्रभावित हैं। इसके बाद खारापन (लवणता) है, जिससे लगभग 13,000 ग्रामीण बस्तियां के लोग प्रभावित हैं। वहीं, आर्सेनिक (12,000 बस्तियां), फ्लोराइड (लगभग 8000 बस्तियां) और अन्य भारी धातुओं से भी कई ग्रामीण बस्तियों के लोग प्रभावित हैं। लगभग 65 मिलियन लोग फ्लोरोसिस से पीड़ित है जो अतिरिक्त फ्लोराइड के कारण होने वाली एक बीमारी है जो विकलांगता को बढ़ाती है, यह बीमारी अधिकतर राजस्थान राज्य में देखी गई है। भारत की 70% जलापूर्ति को प्रदूषित बताया गया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत की जल की गुणवत्ता को 122 देशों में से 120 में स्थान पर रखा है। यदि हम देखें तो दूषित जल से प्रोटोजोआ और वायरस जनित रोगों के साथ-साथ बैक्टीरिया से होने वाले रोग भी पनपते हैं। इनमें हेपिटाइटिस ए, डायरिया, दस्त, पेचिश, पोलियो और मेनिनजाइटिस, ट्रेकोमा आदि गंभीर बीमारियां भी शामिल हैं। पीने योग्य जल के हालात भारत में इतने खराब हो चुके हैं कि देखा जाए तो चेन्नई में पानी बिल्कुल खत्म हो चुका है उसके बाद आशंका जताई जा रही है कि अब दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और हैदराबाद की बारी है। नीति आयोग ने भी कहा है कि अगर आज चेन्नई जीरो ग्राउंड लेवल पानी की हालत से गुजर रहा है तो एक-दो सालों में ही बेंगलुरु और मुंबई के यही हालात होने वाले हैं। इसके बाद दो-तीन सालों ठीक यही हालत दिल्ली और हैदराबाद समेत देश के कई बड़े शहरों की होने वाली है।
पूरा देश अब पानी के लिहाज से ऐसे मुहाने पर बैठा है जो खतरे की घंटी है। कम से कम आधे देश में अगले एक दशक या उससे पहले ही पानी के ना होने की खतरे की घंटी बजने लगेगी। देखा जाए तो चेन्नई देश का छठा बड़ा शहर है, चेन्नई में एक पानी का टैंकर 6000 से ज्यादा में बिक गया। आबादी में हम चीन को पीछे थोड़ी चुके हैं जबकि यह उम्मीद हमें 2027 तक थी। इसके साथ ही अब जो पानी के साथ ज्वलंत समस्या उभर रही है वह है माइक्रोप्लास्टिक की।
जर्नल ऑफ हजार्डस मटेरियल्स में प्रकाशित यूनिवर्सिटी ऑफ हेल की रिसर्च के अनुसार, अधिक मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक का सेवन करने से हमारी कोशिका को नुकसान पहुंचता है, जिससे भविष्य में कई घातक बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। कोशिका को नुकसान पहुंचने की वजह से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो सकती है। साथ ही, इससे न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर, थाइराइड और कैंसर जैसी बीमारियां होने की संभावना भी है।सी साल्ट, रॉक साल्ट, लेक साल्ट और वेल साल्ट जैसे नमक में भी माइक्रोप्लास्टिक होता है। हालांकि, इनमें प्लास्टिक के कणों की मात्रा कितनी होती है, ये उसके स्रोत पर निर्भर करता है। नल और बोतल दोनों के ही पानी में माइक्रोप्लास्टिक होता है।
हम जितना प्रदूषित पानी पीते हैं, हमारे शरीर में उतना ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक जाता है।लेकिन यह केवल अभी खतरे की घंटी है। ऐसा नहीं है कि हम बहुत कुछ पीछे छोड़ चुके हैं। पेयजल को संक्रमण से बचाने का सबसे सुलभ निजी तरीका है कि आप स्वयं को उसे विषाणु व बैक्टीरिया रहित बनायें। इसके लिए फिल्टर का उपयोग बहुत जरूरी हो जाता है। 10 से 15 मिनट तक पानी उबालकर ठंडा करने के बाद पीना भी उपयोगी रहता है। पानी साफ करने हेतु रसायनिक उपाय भी है-जैसे कि ब्लीचिंग पाउडर, एचटीएफ क्लोरीन टैबलेट या आयोडीन का थोड़े-थोड़े दिन बाद नियमित इस्तेमाल करना। सरकार के साथ-साथ प्रत्येक व्यक्ति को पानी की समस्या को एक आंदोलन की तरह अपने जीवन में उतारना पड़ेगा।
सरकार और देशवासियों को अपने अपने स्तर पर इस समस्या से लड़ना पड़ेगा। यदि हम ध्यान दें तो सामान्य 4 सदस्य परिवार प्रतिदिन 450 लीटर पानी का उपयोग करता है। यदि हम इस आंकड़े को ध्यान में रखें इसी सीमा के अंदर पानी का उपयोग करें तो हम लगभग आधी जंग जीत लेंगे। उसके अलावा जल संरक्षण को पाठ्यक्रम का भाग भी बनाया जाना चाहिए तथा सामाजिक संगठनों को भी प्रत्येक विद्यालय में जाकर बच्चों को आम नागरिकों को जल संरक्षण के प्रति जागरूक बनाना चाहिए।
– डॉ. स्वप्निल यादव
विभागाध्यक्ष, बायोटेक्नोलॉजी विभाग,
गाँधी फैज़-ए-आम महाविद्यालय, शाहजहाँपुर