संपूर्ण देश में ऐसी तमााम बातें आये दिन देखने-सुनने को मिलती रहती हैं जिससे लोगों का मन व्यथित और आक्रोशित होता है। शासन-प्रशासन की लटकाऊ, टरकाऊ, भटकाऊ और ऊबाऊ कार्यप्रणाली से लोगों का मन दुखी है। दिल्ली सहित हिन्दुस्तान के तमाम बड़े महानगरों की महज एक-दो घंटे की बरसात से ऐसी स्थिति बन जाती है कि लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो जाता है। विकट स्थिति होने पर लोग शोर-शराबा करते हैं तो कोई भी विभाग अपनी नाकामी मानने के बजाय उस नाकामी का आरोप दूसरे विभाग पर मढ़ देता है यानी किसी भी समस्या के समाधान के लिए अनेक विभागों में समन्वय बहुत जरूरी होता है।
अब सवाल यह उठता है कि शासन-प्रशासन में जिन लोगों की जिम्मेदारी सभी विभागों में समन्वय बनाने की होती है, वे अपनी मर्जी या सुविधा के अनुसार कार्य करते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि किसी भी नाकामी की स्थिति में आरोप किसी अन्य व्यक्ति या विभाग पर मढ़कर बचा जा सकता है। आम जनता की बात की जाये तो उसमें एक आम राय यह है कि ऊपर से लेकर नीचे तक सभी लोग आपस में मिले हुए हैं। हर कोई एक दूसरे को बचाने में लगा रहता है। कोई भी सड़क उद्घाटन से पहले ही यदि धंस जाये या पुल टूट जाये तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?
अतः ऐसी स्थिति में अब यह आवश्यक हो गया है कि किसी भी नाकामी की स्थिति में नीचे से लेकर ऊपर तक जिम्मेदारी एवं जवाबदेही का निर्धारण जरूरी है। यदि जिम्मेदारी एवं जवाबदेही का निर्धारण नहीं होगा तो उद्घाटन से पहले सड़कें धंसती रहेंगी और पुल टूटते रहेंगे।
मुफ्तखोरी का वाइरस राष्ट्र एवं समाज के लिए घातक है
कुछ महीनों पहले गाजियाबाद में शमशान घाट की छत गिरने से कई लोगों की अकाल मौत हो गयी। उस मामले में कई आला अधिकारियों को तत्काल गिरफ्तार कर लिया गया, इससे समाज में एक सकारात्मक संदेश गया अन्यथा किसी भी दुर्घटना की जांच के लिए समिति बना दी जाती है और आरोपी जांच पूरी होने तक बिना किसी डर एवं खौफ के घूमते रहते हैं और लूट-खसोट के कार्य में लगे रहते हैं। जांच के लिए बनी समिति धीरे-धीरे कैसे और कब शांत हो जाती है, आम जनता को इसकी भनक तक नहीं लग पाती है।
इस समाज में तमाम ऐसे लोग हैं जिनका मानना है कि हराम की कमाई से जो भी संपत्ति बनाई जाये, वह अपने नाम के बजाय परिवार के सदस्यों या अन्य किसी नाम से बनाई जाये, क्योंकि पकड़े जाने की स्थिति में यदि जेल भी जाना पड़े तो संपत्ति तो बची ही रहेगी। इस प्रकार की मानसिकता पर प्रहार करने की नितांत आवश्यकता है और किसी भी प्रकार की नाकामी की स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी और जवाबदेही का निर्धारण अति आवश्यक हो गया है।
– जगदम्बा सिंह