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संस्कारों से ही बचेंगे टूटते परिवार

admin 6 April 2022
Family Court and Parents
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आज परिवार का स्वरुप छोटा होता जा रहा है और आधुनिकता के युग के नाम पर बच्चों में इंटरनेट का अनावश्यक उपयोग, दौड़ती हुई जिंदगी आदि के कारण बच्चों पर नियंत्रण के माध्यम कम होता जा रहा है| संसार की समस्त सभ्यताओं में भारतीय संस्कार ही सबसे उत्तम मन गया है| क्योंकि इसी संस्कार ने बड़े-बड़े बुद्धजीवीयों, देशभक्तों, महान समाज सुधारकों को जन्म दिया है, परन्तु आज यही भारतीय परिवार लगभग हर तरफ तेजी से टूटता हुआ नज़र आता जा रहा है| टूटते हुए परिवारों की संख्या तो बढ़ रही है परन्तु इन परिवारों के सदस्यों में आपसी प्रेमभाव की कमी और सामंजस्यता का नहीं होना आपराधिक प्रवित्तियों को पैदा करता जा रहा है |

भारतीय शाकाहारी भोजन स्वास्थ्य के लिए सबसे उत्तम है और कहा गया है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क होता है और जब मानव मस्तिष्क शांत और स्वस्थ होगा, तब वह मानव की तमाम आपराधिक प्रवृत्तियां स्वतः समाप्त हो जाएगी और तब होगा विश्व में शांति |

विश्व में शांति हो, विश्व का कल्याण हो, यह मनोकामना ऐसे ही नहीं आएगी हमें अपने घर से प्रारंभ करना होगा, जब हमारा एक परिवार शांत और और सुखी रहेगा तब समाज, देश और विश्व में शांति होगी परंतु आज लगभग हर हर पड़ोसी में किसी न किसी बात से अशांति है| आज के लगभग हर परिवार में शराब, गुटका, मांसाहार और वाणी में अपशब्द और गाली गलौज है|

हम जितने सम्मान पूर्वक और प्रेम से बाहर वालों से बात करते हैं उतने प्रेम से घर वालों से बात नहीं करते बल्कि घर वालों से बात करने या माता-पिता भाई-बहन से कुछ पूछे जाने पर चिड़चिड़ाहट युक्त आवाज मुंह से निकलती है| हम जितना समय और अपने काम और बाहर को देते हैं घर परिवार को नहीं देते|

Indian Youth : आधुनिकता के कारण अतीत से विमुख होता युवा वर्ग…

आज की पीढ़ी अपने घर में माता-पिता का नहीं सुनते तो बाहर वालों की बात का अनुसरण हो जाने की कल्पना नहीं की जा सकती| आज भोजन के हर निवाले में विशेष प्रकार के रसायन हैं, केमिकल कीटनाशक है, एक बेफिजूल खर्चा भी है कि हम अधिक पैदावार के लिए फसलों में नई-नई रसायन का उपयोग कर रहे हैं| यह रसायन मानव शरीर को रोगी बनाने के साथ-साथ मिट्टी, पानी, हवा, भोजन सबको प्रभावित या बीमार कर रहा है और बीमार मस्तिष्क में ही अपराध प्रवित्ति पैदा होता है तो इस रसायनों पर खर्च करके हमें क्या मिला? रोग, कमजोरी और फिर अशांति |

आज आवश्यक हो गया है कि हम नैतिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक कृषि या प्राकृतिक कृषि की ओर बढ़े, जिसमें किसी भी रसायन का उपयोग ना हो, और शिक्षा, कृषि, व्यवहार आदि में नैतिकता युक्त संस्कार को शामिल करके ही विश्व में शांति लाई जा सकती है |

मानव जीवन में शिक्षा का उद्देश्य केवल बड़ी बड़ी मशीन तैयार करना नहीं है| रोबोट शेयर बाजार और अंधाधुन चकाचौंध में नहीं है बल्कि शिक्षा का उद्देश्य लोगों के बीच आपसी भाईचारा, समझ, प्रेम और शांति निश्चित करना है कोई देश कितना भी बड़ा अर्थव्यवस्था बन जाए, यदि वहां के लोगों में चैन और सुकून की नींद नहीं है और सुकून भरा जीवन नहीं है तो तमाम वैज्ञानिक विकास बेकार है इसलिए जीवन के हर क्षेत्र में माननीय संस्कार की आवश्यकता है यदि हम मानव हैं तो मानव होने का लक्षण विकसित करना जरूरी है एक सभ्य समाज में असभ्यता का आ जाना एक बहुत बड़ा दाग है वह दाग हमें अपने भोजन और जीवन और विश्व के प्रति गंभीर नहीं होने का प्रमाण देता है |

– उमराव सिंह
ग्राम- सेमरिया (जिला- बेमेतरा) छत्तीसगढ़

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