क्या आपने कभी एक होकर PK, पठान या इसके जैसी हिंदुत्व विरोधी फिल्मों का विरोध किया है?
क्या आपने वर्षों से चलते आ रहे टेलीविज़न सीरिअल्स का विरोध किया? जिसमें हर दिन यही दिखाया जाता है कि हिंन्दू घरों की महिलाएं कैसे घर के अन्दर झगड़ा करती हैं।
क्या आपने कभी एक होकर पूछा कि हर वेब सीरीज में हिंन्दुओं के रिश्तों को गन्दे रूप में क्यूँ दिखाया जाता है? जैसे कि भाभी देवर का चक्कर, भाभी नौकर का चक्कर, ससुर बहू का रिश्ता… वगैरह-वगैरह।
कुछ बातों पर गौर करना –
– कभी मुस्लिम या क्रिश्चियन आदि का मजाक बनाने की हिम्मत बॉलीवुड क्यों नहीं करता ?
– हवस का पुजारी ही क्यों होता है? हवस का मौलाना या मौलवी क्यों नहीं ?
– हर फ़िल्म में सुहागरात हिन्दुओं की ही क्यों बताई जाती है? मुसलमान की क्यों नहीं ?
– हर फिल्म में अपराध मंदिर में ही क्यों होता है? मज्जिद में क्यों नहीं ?
– धर्म के नाम पर लूटने वाला पंडित ही दिखाया जाता है? कभी मौलवी नहीं?
– फ़िल्म का मुख्य खलनायक अक्सर गले में रुद्राक्ष की माला या बड़ा सा तिलक लगाए हुए ही क्यों होता है? मुस्लिम टोपी नहीं?
– पुरानी फिल्मों के अधिकतर बलात्कारी अक्सर पूरी फ़िल्म में राम-राम या शिव शिव बोलते हैं? कभी पीर-पैगंबर या गॉड क्यों नहीं?
– शुद्ध हिंदी भाषा अधिकतर खलनायक भूमिका के लिए ही क्यों होती है? नायक अक्सर उर्दू या अंग्रेजी मिली हिंदी क्यों बोलता है?
– इतिहास गवाह है भारतीय सिनेमा के इतिहास से आज तक एक भी फ़िल्म ऐसी बनी हो जिसमें किसी चर्च के फादर को किसी ग़लत कामो में लिप्त या धर्मान्तरण को बढ़ावा देते हुए बताया हो।
– हिन्दू देवी-देवताओं में आस्था रखने वाले हर चरित्र की पुरी फ़िल्म के दौरान हँसी उड़ाई जाती है।
– न्याय के देवता श्री यमराज को मुर्ख तो वहीं कर्म के देवता श्री चित्रगुप्त को चरित्रहीन रसिया के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
हिंदुत्व आज अचानक खतरे में नहीं आया है। बल्कि ये तो उस विशाल बरगद के समान है जिसे खत्म करना आसान नहीं होता इसीलिए कई वर्षों से धीरे-धीरे इसकी जड़ों को काटा जा रहा है।
विचार करो जिस दिन ये पेड़ कट गया। उस दिन घुट-घुट के मर जाओगे। इसलिए समय आ गया है कि हिन्दुओं में ऐसे घिनौने और चरित्रहीन बॉलीवुड को त्यागने की क्षमता उत्पन्न होनी ही चाहिए।
– साभार