अजय सिंह चौहान || दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित लोनी (Loni & Ghaziabad history in Hindi) नामक कस्बा आज कस्बा नहीं बल्कि एक बहुत घनी आबादी वाला शहर बन चुका है। यह शहर गाजियाबाद जिले की एक तहसील के रूप में जाना जाता है जो गाजियाबाद से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर दिल्ली से सहारनपुर जाने वाले रास्ते पर उत्तर की ओर पड़ता है। कई प्रकार के छोटे-बड़े अपराधों और आपराधियों के कारण यह इलाका आये दिन देश और दुनिया की सूर्खियों में बना रहता है। यह क्षेत्र मात्र आज से ही नहीं बल्कि यूगों-युगों से इसी प्रकार की सूर्खियां बटोरता चला आ रहा है।
गाजियाबाद (Loni & Ghaziabad history in Hindi) से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर आज के लोनी कहे जाने वाले इस पौराणिक युग के क्षेत्र का इतिहास बताता है कि इसका पौराणिक नाम लवणम् हुआ करता था। लेकिन आज यह लोनी के नाम से जाना जाता है। दरअसल लवणम् शब्द संस्कृत का एक शब्द है जो नमक के लिए प्रयोग किया जाता है। संस्कृत भाषा के लवणम् से ही यह धीरे-धीर यह उच्चारण की सुविधा के अनुसार लावन बना और लावन से लोण और फिर लोनी में बदल गया।
इस क्षेत्र के पौराणिक नाम लवणम् से लेकर आज के लोनी होने तक के विषय में दरअसल तथ्य यह है कि इस क्षेत्र की भूमि में नमक की मात्रा अन्य क्षेत्रों के मुकाबले बहुत अधिक बताई जाती है। इसलिए यह क्षेत्र प्राचिन काल से ही लवणम या आज भी लोनी के नाम से ही पुकारा जाता है। और इसका सीधा-सीधा मतलब है नमकीन स्थान या क्षेत्र।
इसके अलावा यह भी माना जाता है कि त्रेता युग के समय में यहां लवणासुर नामक एक शक्तिशाली राक्षस का राज चलता था और उसके आतंक और भय के कारण यहां किसी भी प्रकार के वैदिक कर्मकांडों और अनुष्ठानों पर रोक थी। उसका मानना था कि उससे बड़ा भगवान इस संसार में और कोई नहीं है। उसने यहां के राजा लोकर्कण, जो राजा सुबकरन के नाम से भी प्रसिद्ध था को परास्त करके उसके महल पर कब्जा कर लिया था।
लवणासुर नामक वह राक्षस विशेष रूप से ब्राह्मणों और ऋषि-मुनियों के लिए अत्यधिक क्रूर माना जाता था। किंवदंतियां हैं कि भगवान राम ने अपने सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न को इसी लोनी के उस लवणासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए भेजकर इस क्षेत्र को उसके आतंक से मुक्त करवाया।
द्वापर युग के इतिहास के विषय में माना जाता है कि लाक्षागृह से बच निकलने के बाद पांडवों ने यहां के घने जंगलों में कुछ समय बिताया था और गाजियाद (Loni & Ghaziabad history in Hindi) के डासना में स्थित डासना देवी मंदिर में भी कुछ समय के लिए शरण ली थी। उस समय तक भी यह नगर लवणम् के नाम से ही जाना जाता था।
मध्य युगिन इतिहास के अनुसार चैथी शताब्दी के दौरान सम्राट समुद्रगुप्त ने इस क्षेत्र पर विजय पाकर यहां के कोट कुलजम को यानी कोट वंश के राजा को एक भयंकर युद्ध में हराकर यहां कब्जा कर लिया था। इतिहास में आज भी उस युद्ध को कोट का युद्ध के नाम से जाना जाता है। अपनी उस विजय के बाद समुद्रगुप्त द्वारा यहां अश्वमेध यज्ञ भी किया गया था।
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12वीं शताब्दी के दौरान चैहान राजवंश के महान राजा, पृथ्वीराज चैहान के शासन काल के दौरान यह क्षेत्र उनके शासन का एक प्रमुख हिस्सा रहा। अपने शासन के दौरान पृथ्वीराज चैहान ने लोनी (Loni & Ghaziabad history in Hindi) में बने सम्राट समुद्रगुप्त काल के कीले और गाजियाबाद के कोट वंशीय कीले का भी जिर्णोद्धार करवाया। पृथ्वीराज चैहान के शासन काल के उस कीले के अवशेष आज भी लोनी में देखे जा सकते हैं।
हालांकि, पृथ्वीराज चैहान की मृत्यु के बाद यहां का शासन मुगलों के कब्जे मे आ गया और लोनी और गाजियाबाद (Loni & Ghaziabad history in Hindi) की उन ऐतिहासिक इमारतों को ध्वस्त करवा कर उनका इतिहास ही समप्त करवा दिया गया है। आज लोनी का वह किला नाम मात्र का ही रह गया है और उसके खंडहरों के कुछ हिस्से अब लोनी में पर्यटकों का आकर्षण बना हुअ है, जबकि कोट के कीले का तो अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है।
भारतीय इतिहास के कुख्यात अफगानी क्रुर लुटेरे तैमूर ने भी भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्से में जबरन प्रवेश करके इसी क्षेत्र से आते हुए दिल्ली सल्तनत पर हमला किया था। उसने भारत में अपनी लड़ाई शुरू करते हुए लोनी के उस ऐतिहासिक किले में भारी उत्पात मचाते हुए सभी कीमती वस्तुओं को लुट लिया और कीले के मुख्य हिस्सों को ध्वस्त करवा दिया था।
सन 1789 में लोनी पर शासन करने वाले एक अन्य अफगानी शासक महमूद शाह दुर्रानी ने इस कीले में कई तरह के बदलाव करये। उसने इस कीले में एक पिछवाड़े और एक जलाशय का निर्माण करवा कर इसके मूल इतिहास को ही नष्ट करवा दिया और किले की ईटों और अन्य समानों का प्रयोग यहां तीन अलग-अलग बागीचे और तालाब बनवाने के लिए करवा लिया।
19 वीं सदी में 1857 के विद्रोह के साक्षी के रूप में लोनी के इस कीले में अंग्रेजी शासन के दौरान क्रांतिकारियों ने भी इस कीले में कई बार योजनाएं बनाईं और उनको अंजाम तक पहुंचाया था। बाद में अंग्रेजों ने इन बागों को हथिया लिया और इन्हें मेरठ के एक शेख इलाही बख्श को बेच दिया।
भारत में मुगल शासन के दौरान, लोनी और गाजियाबाद का पूरा क्षेत्र, मुस्लिम शासकों के लिए अवकाश यात्रा, अय्याशी और शिकार के लिए पसंदीदा स्थान के रूप में बहुत लोकप्रियता बन चुका था। मात्र इतना ही नहीं, दिल्ली के नजदीक होने के कारण किसी भी युद्ध के समय यह क्षेत्र रणभूमि के रूप में तब्दील हो जाया करता था।
गाजियाबाद के मोहन नगर से लगभग दो किमी उत्तर में हिंडन नदी के तट पर भारतीय पुरातत्व विभाग के द्वारा कासेरी नामक टीले पर किए गए उत्खनन से लोनी, गाजियाबाद और इस क्षेत्र के विभिन्न पौराणिक तथ्यों के आधार पर जो प्रमाण मिले हैं उनके आधार पर जो साक्ष्य मिले हैं उनमें हमारी पौराणिक युग की वह सभ्यता यहां 2500 ईसा पूर्व तक भी यहां मौजूद थी।
भारतीय पुरातत्व विभाग को मिले साक्ष्यों के आधार पर यह साबित हुआ है कि पौराणिक रूप से, अहार क्षेत्र, गढ़मुक्तेश्वर पूठ गाँव सहित यहां के कुछ अन्य इलाके भी महाभारत युग से जुड़े हैं और लोनी का वह किला रामायण काल के लावनसुर की कथा पर मुहर लगाते हैं। इसके अलावा ऐतिहासिक दस्तावेजों में सबसे बड़े सबूत के तौर पर गाजियाबाद के गजेटियर में भी लोनी के कीले का नाम लवणासुर के नाम पर ही बताया गया है।
Note: मेरे इस लेख के बाद हर अधिकतर वेबसाइट और यूट्यूब चैनल वालों ने लगभग इसी कंटेंट को कॉपी कर अपने अपने ब्लॉग, वेबसाइट आदि पर मामूली बदलाव के बाद प्रकाशित किया है।