एक कहावत है कि -‘‘मोती कभी भी किनारे पर स्वयं नहीं आते, उन्हें पाने के लिए समंदर में उतरना ही पड़ता है।’’ यानी यहां हम ऐसे भी कह सकते हैं कि दृढ़ निश्चय करने वाले कभी हार नहीं मानते और हर मंजिल को किसी भी परिस्थति में पाकर ही दम लेते हैं। यानी मंजिल एक न एक दिन मिल ही जाती है। इतिहास में भी इस प्रकार के सैकड़ों उदाहरण भरे पड़े हैं।
इसमें अगर हम सबसे पहला उदाहण देखें तो हमारे सामने आता है कि किस प्रकार से आचार्य चाणक्य ने अपने दृढ़ निश्चय और जिद को हथियार बनाकर नंद वंश का सर्वनाश कर उसके स्थान पर चंद्रगुप्त को अखण्ड भारत का राजा बना दिया था।
कहने के लिए तो आचार्य चाणक्य एक साधारण से ब्राहमण थे। लेकिन, उन्होंने मगध पर होने वाले विदेशी आक्रमणों और नंद वंश के कारण मगध की जनता की दूर्दशा के विषय में जब वहां के क्रुर सम्राट से इसकी शिकायत की तो उस सम्राट धनानंद ने आचार्य चाणक्य का घोर अपमान किया और राज्य से बाहर निकलवा दिया।
आचार्य चाणक्य ने उस अपमान के बाद अपने दृढ़ निश्चय के बल पर सम्राट धनानंद को न सिर्फ अपने शिष्य चंद्रगुप्त के हाथों मृत्युदंड दिलवाया, बल्कि चंद्रगुप्त को अखण्ड भारत का अजैय सम्राट बनाकर यह भी दिखा दिया कि जो तुफानों में ढलते हैं, वही दुनिया बदलते हैं।
इसी प्रकार से एक अन्य कहावत है कि- ‘‘हार तो वो सबक है जो आपको बेहतर करने का मौका देगी।’’ यानी इस कहावत को चरितार्थ करने वाली कुछ घटनाओं पर नजर डालें तो सामने जो सबसे खास उदाहरण आते हैं उनमें सबसे पहला तो ये कि वर्ष 493 ई.पू. एक युद्ध में यूनान और फारस के बीच युद्ध हुआ।
उस युद्ध में फारस बुरी तरह से हार गया। उस हार के बाद फारस के सम्राट डेरियस ने अपने नौकरों को कहा कि वे लोग प्रतिदिन जब भी आकर मुझसे पहली बार मिलेंगे तो यही कहेंगे कि- ‘मालिक आप यूनान वालों को भूलना मत, क्योंकि उससे आपकी हार हुई है।
यानी प्रतिदिन फारस के सम्राट डेरियस को उनके नौकर यही याद दिलाते रहते थे कि वे एक हारे हुए राजा हैं। धीरे-धीरे फारस के सम्राट डेरियस ने सेना को फिर से इकट्ठा किया और उस हार का बदला लेने के लिए यूनान पर चढ़ाई कर दी और बहुत ही आसानी से जीत भी मिल गई।
– अमृति देवी