भारत के आध्यात्मिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक इतिहास में शक्ति पीठों का बहुत महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जहां-जहां भी माता सती की देह के अंग, उनके धारण किए वस्त्र और आभूषण गिरे थे उन सभी स्थानों पर शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। देवी पुराण एवं अन्य पुराणों के अनुसार संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में फैले ये सभी 51 शक्तिपीठ अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये।
विभाजित हिस्सों में शक्तिपीठ –
अखण्ड भारत के दौर में माता सती के सभी 51 शक्तिपीठ हमारी पहुँच में थे। लेकिन, भारत विभाजन के बाद इनमें से 9 पीठ उन विभाजित हिस्सों में चले गए और इस समय भारत में कुल 42 पीठ ही शेष रह गये हैं। जो 9 पीठ उन विभाजित हिस्से में चले गये हैं उनमें से 1 पीठ पाकिस्तान में और 4 बांग्लादेश में चले गये। जबकि शेष 4 पीठों में से 1 श्रीलंका में, 1 तिब्बत में और 2 पीठ नेपाल में है।
असंभव को कर दिखाया संभव –
ऐसे में आज यदि कोई श्रद्धालु उन सभी 51 शक्तिपीठों के दर्शन करना चाहे तो लगभग असंभव ही है। लेकिन, उन सभी शक्तिपीठों की प्रतिकृति के तौर पर यदि कोई एक ही बार में और एक ही दिन में एक ही स्थान पर दर्शन करना चाहे तो अब उनके लिए यह बहुत ही आसान हो चुका है। क्योंकि गुजरात के श्री आरासुरी अंबाजी माता देवस्थान ट्रस्ट ने उस असंभव को संभव कर दिखाया है।
अंबाजी मंदिर ट्रस्ट का योगदान –
अंबाजी मंदिर का संचालन श्री आरासुरी अंबाजी माता देवस्थान ट्रस्ट की देखरेख में होता है। मंदिर ट्रस्ट के द्वारा यहां पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए विशेष निवास स्थान, सुरक्षा, स्वच्छता तथा सात्विक भोजन जैसी हर प्रकार से विश्वस्तरीय उत्तम व्यवस्था की जाती है।
माता अंबाजी का यह शक्तिपीठ तीर्थ स्थल इसलिए भी खास है क्योंकि यहां इसी गब्बर तीर्थ पर्वत के लगभग 3 किलोमीटर के परिक्रमा पथ के दायरे में उन सभी 51 शक्तिपाठों के प्रतीकात्मक मंदिरों का निर्माण करवा कर उनमें उन्हीं 51 देवियों की प्राण प्रतिष्ठा करवाकर उनके मंदिरों का भी निर्माण करवाया गया है।
वास्तविक शक्तिपीठों की प्रतिकृति –
एक ही स्थान पर स्थापित ये सभी 51 शक्तिपीठ मंदिर देश और दुनिया के उन सभी वास्तविक शक्तिपीठों को उनके नाम और स्थानों के आधार पर ही प्रतिकृति के रूप में स्थापित किया गया है। श्रद्धालु चाहें तो इनमें से किसी भी मंदिर में उसके अपने स्थानीय विधि विधान और पूजा पद्धति के अनुसार हवन, पूजन या अन्य सभी प्रकार की स्थानिय पूजा-पद्धतियां उसी मंदिर के विशेष प्रशिक्षित पूजारी के द्वारा करवा सकते हैं।
अब कीजिए सभी 51 शक्तिपीठों के दर्शन एक ही दिन में | Darshan of 51 Shaktipeeths in a single day
अपनी-अपनी शैली में होती है पूजा विधि –
दरअसल, एक ही स्थान पर 51 शक्तिपीठों की यह परियोजना श्री आरासुरी अंबाजी माता देवस्थान ट्रस्ट ने कार्यान्वित की है। ट्रस्ट के अनुसार यहां स्थापित इन सभी 51 शक्तिपीठों में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त पूजारियों की व्यवस्था भी की गई है। इन पूजारियों को उन सभी अलग-अलग शक्तिपीठों पर भेजकर वहां की स्थानिय पूजा विधि तथा नियम और मान्यताओं के अनुसार प्रशिक्षण दिलवाया गया। ताकि यहां के प्रत्येक शक्तिपीठ की पूजा पाठ उसकी स्थानिय शैली, विधि विधान और नियमों के अनुसार ही की जा सके।
यह सबसे बड़ा प्रयोग है –
हिन्दू धर्म के किसी भी तीर्थ स्थलों में यह अपनी तरह का पहला और सबसे बड़ा प्रयोग माना जाता है। इस प्रयोग के माध्यम से श्री आरासुरी अंबाजी माता देवस्थान ट्रस्ट की इस परियोजना का उद्देश्य उन सभी श्रद्धालुओं की मनोकामना को भी पूर्ण करना है जो देश और दुनिया के अलग-अलग स्थानों पर स्थित अन्य शक्तिपीठ मंदिरों में दर्शन करने के लिए जाने में समर्थ नहीं होते हैं।
इसके अलावा अंबाजी मंदिर ट्रस्ट ने मंदिर के पास ही में स्थित चाचर चैक के पश्चिमी दक्षिणी भाग में आम श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए एक बड़ी हवन शाला का निर्माण भी करवा दिया है जिसमें एक मुख्य हवन कुंड और आठ अन्य छोटे हवन कुंड हैं। इस हवन शाला में होने वाले यज्ञ इन सभी शक्तिपीठों के लिए समान रूप से किया जाता है।
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