राजधानी दिल्ली में स्थित प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों में से एक “सफदरजंग का मकबरा” (Safdarjung Tomb historical monument at Delhi India) दिल्ली की प्रसिद्ध एतिहासिक इमारत पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है। यह मकबरा दक्षिण दिल्ली में श्री औरोबिंदो मार्ग पर लोधी मार्ग के पश्चिमी छोर के ठीक सामने स्थित है।
पी- एन- ओक ने अपनी पुस्तक “भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें” में दिल्ली में स्थित “सफ़दरजंग मक़बरा” (Safdarjung Tomb historical monument at Delhi India) के ऐतिहासिक तथ्यों के विषय में लिखा है — ऐसा विचार किया जाता है कि अवध के नवाब के प्रधानमन्त्री की स्मृति में यह मकबरा बनाया गया है। यह दावा भी सूक्ष्म परीक्षण करने पर निरस्त सिद्ध होता है। प्रथम बात यह है कि इतिहासकारों में इस मकबरे के सम्बन्ध में कालगत मतभेद हैं; कोई कहता है कि यह सन् 1759 में बना, और कोई कहता है कि इसका निर्माण सन् 1754 में हुआ। यह तीव्र मतभेद इस तथ्य के कारण है कि दोनों ही वर्ग गलत आधार पर स्थित हैं। वास्तव में यह भवन सफदरजंग की मृत्यु से अनेक शताब्दियों पूर्व भी विद्यमान था। साथ ही, यह भवन ऐसा नहीं है जिसका निर्माण एक वर्ष में हो सका हो।
भवन के प्रवेश द्वार के ठीक ऊपर संकुचित अलंकृत छज्जा युक्त एक सुन्दर राजपूत-शैली की खिड़की है। इस तरह की खिड़कियाँ राजस्थान के महलों और राजप्रासादों में सैकड़ों की संख्या में देखी जा सकती हैं। भवन का वर्गीय प्राकार पूर्णरूप में राजपूती नमूना है। यह इमारत एक सुरक्षा प्राचीर से घिरी हुई है, जिसके किनारों पर बुर्ज और बीच-बीच में पहरे की मीनारें है। ये सभी संयोज्य वस्तुएँ सिद्ध करती हैं कि यह एक ऐसा भवन था जो आवास के लिए प्रयुक्त होता था।
विचारणीय दूसरी बात यह है कि मृत्यु से पूर्व ही सफदरजंग को अत्यन्त अपमानित किया गया था और फिर नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। बेरोजगार सरदार के लिए कौन भव्य मकबरा बनवाएगा? जबकि वह अवध का प्रधानमन्त्री था तो सभी स्थानों में से केवल दिल्ली का भव्य मकबरा ही उसकी यादगार के लिए क्यों बच रहा है? यदि उसके मृतपिंड (dead body) के विश्रामस्थल के रूप में इतना भव्य स्थान मिल सका, तो जीवन-काल में उसका अपना राजमहल तो न जाने कितना ऐश्वर्यपूर्ण रहा होगा! कहाँ है वह राजमहल ? कोई दिखा नहीं सकता।
स्वाभाविक रूप में यह कल्पना करनी पड़ती है कि सफदरजंग के उत्तराधिकारी ने मृतक के लिए यह भव्य मकबरा बनवाया होगा। यदि ऐसा है, पुत्र तो वह परवर्ती अत्यन्त समृद्ध व्यक्ति रहा होगा। मृतक के लिए एक अत्यन्त भव्य मकबरा बनवाने की स्थिति में होने के लिए तो दिल्ली में ही उसके दसियों विशाल राजमहल होने ही चाहिए। किन्तु हमें तो सफदरजंग का या उसके पुत्र का कोई भी महल कहीं भी दिखाई नहीं पड़ता। फिर, यह क्या बात है कि जीवित रहने पर जिसको रहने के लिए एक भी राजमहल उपलब्ध नहीं था, उसी को मृत्यु के पश्चात् मानो जादू से, एक भव्य राजप्रासाद मिल गया। अतः यह विचारना गलत है कि सफदरजंग का मकबरा मूल-स्मारक है।
युक्तियुक्त स्पष्टीकरण यह है कि वर्तमान इमारत सफदरजंग द्वारा विजित सम्पत्ति का एक अंश मात्र थी। अवध से बर्खास्त होने के पश्चात् अपनी मृत्यु के समय वह इसी इमारत में रह रहा था, और अपनी मृत्यु के बाद उसे इसी स्थान पर दफना दिया गया जहाँ उसके प्राण निकले। इसीलिए हमें इन भव्य मकबरों के कोई रेखाचित्र-प्रारूप, निर्माणादेश, देयक या व्यय-पत्रक लेख आदि नहीं मिलते हैं। न ही उनका मूल स्पष्ट रूप में उपलब्ध हो पाता है। इन स्मारकों के किसी भी पक्ष की जाँच-पड़ताल करने पर सन्देह, परस्पर विरोधी बातें और असंगतियाँ सम्मुख उपस्थित हो मार्ग अवरुद्ध कर देती हैं।