Skip to content
28 June 2025
  • Facebook
  • Twitter
  • Youtube
  • Instagram

DHARMWANI.COM

Religion, History & Social Concern in Hindi

Categories

  • Uncategorized
  • अध्यात्म
  • अपराध
  • अवसरवाद
  • आधुनिक इतिहास
  • इतिहास
  • ऐतिहासिक नगर
  • कला-संस्कृति
  • कृषि जगत
  • टेक्नोलॉजी
  • टेलीविज़न
  • तीर्थ यात्रा
  • देश
  • धर्म
  • धर्मस्थल
  • नारी जगत
  • पर्यटन
  • पर्यावरण
  • प्रिंट मीडिया
  • फिल्म जगत
  • भाषा-साहित्य
  • भ्रष्टाचार
  • मन की बात
  • मीडिया
  • राजनीति
  • राजनीतिक दल
  • राजनीतिक व्यक्तित्व
  • लाइफस्टाइल
  • वंशवाद
  • विज्ञान-तकनीकी
  • विदेश
  • विदेश
  • विशेष
  • विश्व-इतिहास
  • शिक्षा-जगत
  • श्रद्धा-भक्ति
  • षड़यंत्र
  • समाचार
  • सम्प्रदायवाद
  • सोशल मीडिया
  • स्वास्थ्य
  • हमारे प्रहरी
  • हिन्दू राष्ट्र
Primary Menu
  • समाचार
    • देश
    • विदेश
  • राजनीति
    • राजनीतिक दल
    • नेताजी
    • अवसरवाद
    • वंशवाद
    • सम्प्रदायवाद
  • विविध
    • कला-संस्कृति
    • भाषा-साहित्य
    • पर्यटन
    • कृषि जगत
    • टेक्नोलॉजी
    • नारी जगत
    • पर्यावरण
    • मन की बात
    • लाइफस्टाइल
    • शिक्षा-जगत
    • स्वास्थ्य
  • इतिहास
    • विश्व-इतिहास
    • प्राचीन नगर
    • ऐतिहासिक व्यक्तित्व
  • मीडिया
    • सोशल मीडिया
    • टेलीविज़न
    • प्रिंट मीडिया
    • फिल्म जगत
  • धर्म
    • अध्यात्म
    • तीर्थ यात्रा
    • धर्मस्थल
    • श्रद्धा-भक्ति
  • विशेष
  • लेख भेजें
  • dharmwani.com
    • About us
    • Disclamar
    • Terms & Conditions
    • Contact us
Live
  • अध्यात्म
  • विशेष

पुराणों में दिए गए कुछ दिव्य उपदेश…

admin 18 February 2025
Divine teachings given in the Puranas
Spread the love

पुराणों में दिए गए कुछ दिव्य उपदेश…

अनेकजन्मतपसा लब्ध्वा जन्म च भारते।  ये हरिं तं न सेवन्ते ते मूढाः कृतपापिनः ॥
वासुदेवं परित्यज्य विषये निरतो जनः ।  त्यक्त्वामृतं मूढबुद्धिर्विषं भुङ्गे निजेच्छया ॥
(ब्रह्मवैवर्त०, कृष्णजन्म० १६ । ३८-३९)

अर्थात – ‘अनेक जन्मों की तपस्या के फल से भारत में जन्म पाकर भी जो लोग श्रीहरिका सेवन-भजन नहीं करते, वे मूर्ख और पापी हैं। जो मनुष्य वासुदेव का त्याग करके विषयों में रचा-पचा रहता है, वह महान् मूर्ख है और जान-बूझकर अमृत का त्याग करके विष-पान करता है।’

अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्यमकल्पता।  एतानि मानसान्याहुव्रतानि हरितुष्टये ॥
(पद्म०, पाताल० ८४।४२)

अर्थात – ‘अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य पालन तथा निष्कपट भाव से रहना- ये भगवान् की प्रसन्नता के लिये मानसिक व्रत कहे गये हैं।’

यावद् भ्रियेत जठरं तावत् स्वत्वं हि देहिनाम् ।   अधिकं योऽभिमन्येत स स्तेनो दण्डमर्हति ॥
(श्रीमद्भा० ७।१४।८)

अर्थात – ‘मनुष्यों का हक केवल उतने ही धन पर है, जितने से उनका पेट भर जाय। इससे अधिक सम्पत्ति को जो अपनी मानता है, वह चोर है, उसे दण्ड मिलना चाहिये।’

असंकल्पाज्जयेत् कामं क्रोधं कामविवर्जनात्।   अर्थानर्थेक्षया लोभं भयं तत्त्वावमर्शनात् ॥
आन्वीक्षिक्या शोकमोहौ दम्भं महदुपासया।   योगान्तरायान् मौनेन हिंसां कायाद्यनीहया ॥
कृपया भूतजं दुःखं दैवं जह्यात् समाधिना ।   आत्मजं योगवीर्येण निद्रां सत्त्वनिषेवया ॥
(श्रीमद्भा० ७। १५ । २२-२४)

अर्थात – ‘धर्मराज ! संकल्पों के परित्याग से काम को, कामनाओं के त्याग से क्रोध को, संसारी लोग जिसे अर्थ कहते हैं उसे अनर्थ समझकर लोभ को और तत्त्व के विचार से भय को जीत लेना चाहिये। अध्यात्म विद्या से शोक और मोह पर, संतों की उपासना से दम्भ पर, मौन के द्वारा योग के विघ्नों पर और शरीर-प्राण आदि को निश्चेष्ट करके हिंसा पर विजय प्राप्त करनी चाहिये। आधिभौतिक दुःख को दया के द्वारा, आधिदैविक वेदना को समाधि के द्वारा और आध्यात्मिक दुःख को योगबल से एवं निद्रा को सात्त्विक भोजन, स्थान, संग आदि के सेवन से जीत लेना चाहिये।’

नाहं वसामि वैकुण्ठे योगिनां हृदये न वै।    मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद ॥
(पद्म०, उ० ९४।२१)

अर्थात – नारदजी बोले कि एक बार मैंने भगवान् से पूछा – ‘देवेश्वर ! आप कहाँ निवास करते हैं ?’
तो वे भगवान् विष्णु मेरी भक्ति से संतुष्ट होकर इस प्रकार बोले- ‘नारद ! न तो मैं वैकुण्ठ में निवास करता हूँ और न योगियों के हृदय में। मेरे भक्त जहाँ मेरा गुणगान करते हैं, वहीं मैं भी रहता हूँ।’

कुलं पवित्रं जननी कृतार्था वसुन्धरा भाग्यवती च तेन।  विमुक्तिमार्गे सुखसिन्धुमग्नं लग्नं परे ब्रह्मणि यस्य चेतः ॥
(स्कन्द०, मा० कुमार० ५५।१३९)

अर्थात – ‘जिसका चित्त मोक्षमार्ग में आकर परब्रह्म परमात्मा में संलग्न हो सुख के अपार सिन्धु में निमग्न हो गया है, उसका कुल पवित्र हो गया, उसकी माता कृतार्थ हो गयी तथा उसे प्राप्त करके यह सारी पृथ्वी भी सौभाग्यवती हो गयी।’

यौवनं धनसम्पत्तिः प्रभुत्वमविवेकता।   एकैकमप्यनर्थाय किमु यत्र चतुष्टयम् ॥
(नारद०, पूर्व० प्रथम० ७।१५)

अर्थात – ‘यौवन, धन-सम्पत्ति, प्रभुता और अविवेक-इनमें से एक-एक भी अनर्थ का कारण होता है, फिर जहाँ ये चारों मौजूद हों, वहाँ के लिये क्या कहना।’

नास्त्यकीर्तिसमो मृत्युर्नास्ति क्रोधसमो रिपुः ।   नास्ति निन्दासमं पापं नास्ति मोहसमासवः ॥
नास्त्यसूयासमा कीर्तिर्नास्ति कामसमोऽनलः ।   नास्ति रागसमः पाशो नास्ति सङ्गसमं विषम् ॥
(नारद०, पूर्व० प्रथम० ७।४१-४२)

अर्थात – ‘अकीर्ति के समान कोई मृत्यु नहीं है, क्रोध के समान कोई शत्रु नहीं है। निन्दा के समान कोई पाप नहीं है और मोह के समान कोई मादक वस्तु नहीं है। असूया के समान कोई अपकीर्ति नहीं है, काम के समान कोई आग नहीं है। राग के समान कोई बन्धन नहीं है और आसक्ति के समान कोई विष नहीं है।’

परनिन्दा विनाशाय स्वनिन्दा यशसे परम्।   (ब्रह्मवैवर्त०, श्रीकृष्णजन्मखण्ड ४।७)

अर्थात – ‘परायी निन्दा विनाश का और अपनी निन्दा यश का कारण होती है।’

बिना विपत्तेर्महिमा कुतः कस्य भवेद्भुवि ॥   (ब्रह्मवैवर्त०, श्रीकृष्ण० १८। १२६)

अर्थात – ‘विपत्ति के बिना पृथ्वी पर किसी की महिमा कैसे प्रकट हो सकती है।’

स यं हन्ति च सर्वेशो रक्षिता तस्य कः पुमान्।   स यं रक्षति सर्वात्मा तस्य हन्ता न कोऽपि च ॥
(ब्रह्मवैवर्त०, श्रीकृष्ण० ७२।१०५)

अर्थात – ‘वे सर्वेश्वर प्रभु जिसे मारते हैं उसकी रक्षा कौन पुरुष कर सकता है ? और वे सर्वात्मा श्रीहरि जिसकी रक्षा करते हैं, उसे मारने वाला भी कोई नहीं है।’

पश्चात्तापः पापकृतां पापानां निष्कृतिः परा।    सर्वेषां वर्णितं सद्भिः सर्वपापविशोधनम् ॥
(शिव०, मा० ३।५)

अर्थात – ‘पश्चात्ताप ही पाप करने वाले पापियों के लिये सबसे बड़ा प्रायश्चित्त है। सत्पुरुषों ने सब के लिये पश्चात्ताप को ही सब पापों का शोधक बतलाया है।’

दातुः परीक्षा दुर्भिक्षे रणे शूरस्य जायते।    आपत्कालेषु मित्रस्याशक्तौ स्त्रीणां कुलस्य हि ॥
विनतेः संकटे प्राप्तेऽवितथस्य परीक्षतः ।    सुस्नेहस्य तथा तात नान्यथा सत्यमीरितम् ॥
(शिव०, रुद्र० १७। १२-१३)

अर्थात – ‘दाता की परीक्षा दुर्भिक्ष में, शूरवीर की परीक्षा रणांगण में, मित्र की परीक्षा विपत्ति में तथा स्त्रियों के कुल की परीक्षा पति के असमर्थ हो जाने पर होती है। संकट पड़ने पर विनय की परीक्षा होती है और परीक्षा में सच्चे एवं उत्तम स्नेह की परीक्षा होती है, अन्यथा नहीं। यह मैं सत्य कहता हूँ।’

About The Author

admin

See author's posts

108

Related

Continue Reading

Previous: उन व्यक्तियों से सदैव दूर रहें, जो…
Next: मनुस्मृति: एक संक्षिप्त परिचय

Related Stories

Natural Calamities
  • विशेष
  • षड़यंत्र

वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास

admin 28 May 2025
  • विशेष
  • षड़यंत्र

मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?

admin 27 May 2025
Teasing to Girl
  • विशेष
  • षड़यंत्र

आसान है इस षडयंत्र को समझना

admin 27 May 2025

Trending News

वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास Natural Calamities 1

वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास

28 May 2025
मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है? 2

मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?

27 May 2025
आसान है इस षडयंत्र को समझना Teasing to Girl 3

आसान है इस षडयंत्र को समझना

27 May 2025
नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह Nave Word Medal 4

नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह

26 May 2025
युद्धो और युद्धाभ्यासों से पर्यावरण को कितना खतरा है? war-and-environment-in-hindi 5

युद्धो और युद्धाभ्यासों से पर्यावरण को कितना खतरा है?

23 May 2025

Total Visitor

078191
Total views : 142569

Recent Posts

  • वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास
  • मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?
  • आसान है इस षडयंत्र को समझना
  • नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह
  • युद्धो और युद्धाभ्यासों से पर्यावरण को कितना खतरा है?

  • Facebook
  • Twitter
  • Youtube
  • Instagram

Copyright ©  2019 dharmwani. All rights reserved