वर्तमान समय में लोग अपने को इस कदर व्यस्त करते जा रहे हैं कि सामाजिक सरोकारों से दूरी बढ़ती जा रही है। सामाजिक सरोकारों से दूरी बढ़ते जाने के कारण अन्य कई तरह की समस्याएं बढ़ रही हैं। कोई भी व्यक्ति जब अपने आपको सामाजिक सरोकारों की डोर से बांधे रहता है तो समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारी बढ़ती जाती है और वह स्वयं इस बात का एहसास करने लगता है परंतु जब व्यक्ति अपने आप से ही सरोकार रखता है तो वह अपने हितों के प्रति अधिक सजग एवं सतर्क रहता है। उसके स्व-हितों की आड़ में यदि कोई रोड़ा बनता है उसकी सहनशीलता एवं धैर्य जवाब दे जाता है और तब उसका गुस्सा एवं तनाव सर्वत्र देखने को मिलता है।
आजकल देखने को मिल रहा है कि सड़कों पर लोग छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे से लड़ जा रहे हैं, कभी-कभी तो विवाद इस कदर बढ़ जाता है कि लड़ते हुए लोग एक दूसरे की जान तक ले लेते हैं। आखिर इसका क्या कारण है कि पार्किंग में गाड़ियां खड़े करने को लेकर आये दिन विवाद देखने-सुनने को मिल रहे हैं। इस प्रकार के विवादों में कई लोगों के जान गंवाने की बातें सुनने एवं देखने को मिल चुकी हैं।
इससे बड़ी एक बात यह भी देखने को मिल रही है कि यदि सड़क पर वाहन चलाते समय एक वाहन यदि दूसरे वाहन से थोड़ा सा स्पर्श कर जाता है तो बहुत बड़े विवाद का रूप ले लेता है।
आखिर इन समस्याओं का समाधान क्या है? क्या लोगों की सहनशीलता एवं धैर्य जवाब दे रहा है? दरअसल, सड़कों पर यदि तनाव एवं गुस्से का उग्र रूप निरंतर बढ़ रहा है तो उसके कारणों की छान-बीन कर उसके समाधान की तरफ अग्रसर होना ही होगा।
वैसे भी देखा जाये तो शहरी जन-जीवन में लोग इतने व्यस्त हो चुके हैं कि एक दूसरे को जानने-समझने एवं दूसरे की बात सुनने तक का समय नहीं रह गया है। उदाहरण के तौर पर सड़क पर वाहन चलाते समय यदि किसी व्यक्ति से किसी तरह की कोई गलती हो जाये तो दूसरा उसकी बातों को सुन एवं समझ कर विवाद को समाप्त करने की दिशा में आगे बढ़ सकता है किन्तु देखने में यह मिल रहा है कि दूसरे की बातों को सुनने, समझने एवं जानने की बजाय सड़कों पर तनाव एवं गुस्सा उग्र रूप लेता जा रहा है।
इस बात का यदि विश्लेषण किया जाये तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि स्थिति खतरनाक बनती जा रही है। कहीं भी जाने के लिए लोग यदि घर से थोड़ा पहले निकल जायें तो आपा-धापी की स्थिति नहीं रहेगी। जब आपा-धापी की स्थिति नहीं होगी तो तनाव एवं गुस्सा भी नियंत्रण में रहेगा। जब तनाव एवं गुस्सा नियंत्रण में रहेगा तो सड़कों पर विवाद एवं लड़ाई-झगड़े कम देखने को मिलेंगे। कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि इस समस्या की तरफ गंभीरता से विचार कर इसके समाधान की तरफ बढ़ना ही होगा।
– जगदम्बा सिंह, संपादक ‘युग सरोकार’