अजय सिंह चौहान || मध्य प्रदेश के देवास जिले में नर्मदा नदी के उत्तरी तट पर बसा एक छोटा-सा कस्बा, जिसे आज हम नेमावार के नाम से जानते हैं, भले ही आज वह एक छोटा-सा कस्बा है लेकिन, अनेकों पौराणिक काल के ग्रंथों में इसे नाभिपुर या नाभापट्टम के नाम से जाना जाता है। पौराणिक काल में यह क्षेत्र मात्र धर्म और अध्यात्म के लिए ही नहीं बल्कि एक बहुत ही प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र के रूप में भी जाना जाता था। आज भी इसके पौराणिकता और ऐतिहासिकता के साक्ष्य राज्य शासन के रिकाॅर्ड में मौजूद हैं। राज्य शासन के रिकाॅर्ड कहते हैं कि इस नगर का ऐतिहासिक और प्राचिन नाम नाभिपुर या नाभापट्टम हुआ करता था।
धर्म ग्रंथों के अनुसार ‘नाभापट्टम‘ को नर्मदा नदी का ‘नाभि‘ स्थान इसी लिए कहा गया है क्योंकि यहां से भडूच और अमरकंटक दोनों ही समान दूरी पर है। यानि यह स्थान नर्मदा नदी का मध्य और प्रमुख भाग माना गया है।
पौराणिक काल के ‘नाभापट्टम‘ को आज भले ही नेमावार के नाम से जाना जाता है लेकिन, इस गांव और इसके आस-पास के क्षेत्रों में हजारों-लाखों साल पहले के कई सारे छोटे-बड़े पुरातात्विक अवशेष आज भी मौजूद हैं और अक्सर इस क्षेत्र के लोगों द्वारा की जाने वाली खुदाईयों में कुछ न कुछ अवशेष प्राप्त होते भी रहते हैं।
हमारे कई पौराणिक धर्म ग्रंथों में और जैन पुराणों में भी आज के इस नेमावार का जिक्र कई बार हुआ है। भले ही आज यह स्थान धर्म और अध्यात्म से ज्यादा एक पर्यटन स्थल का रूप ले चुका है, लेकिन पौराणिक काल के इस ‘नाभापट्टम‘ को आज भी सब प्रकार के पापों का नाश करने वाला और सिद्धिदाता तीर्थ स्थल के रूप में ही माना गया है।
हमारी चार प्रमुख नदियों को चार वेदों के रूप में माना गया है। उन चार प्रमुख नदियों में गंगा को ऋग्वेद, यमुना को यजुर्वेद, सरस्वती को अथर्ववेद और नर्मदा को सामदेव के रूप में माना जाता है। इसमें सामदेव को विभिन्न प्रकार की संस्कृति और कलाओं का प्रतीक माना गया है। और क्योंकि नर्मदा ने कई प्रकार की प्रागेतिहासिक संस्कृति, प्राचिन संस्कृति, वैदिक संस्कृति, लोककलाओं और कई विशिष्ट कलाओं को पाला-पोसा है इसीलिए इसे नदियों में सामदेव माना गया है।
हमारे वेदों में कहा गया है कि गोदावरी में सात बार और गंगा में एक बार स्नान करने से मनुष्यों को अपने पापों से मुक्ति मिल जाती है लेकिन, अगर किसी मनुष्य ने नर्मदा नदी के मात्र दर्शन भी कर लिए हों तो उसे उसके सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है।
धर्म एवं अध्यात्म के तौर पर यह नगरी आदि काल से और पौराणिक काल से ही कई साधू-संतों और महान योगियों के लिए तपस्या स्थली के रूप में प्रसिद्ध रही है। नेमावर यानी नाभिपुर में नर्मदा के इन्हीं तटों पर ऋषि वेद व्यास, भृगु ऋषि और कपिल मुनि जैसे अनेकों सिद्ध ऋषियों और मुनियों के तप करने से यहाँ की वैदिक संस्कृति और लोकसंस्कृति ने हिंदू धर्म को दुनिया के नक्शे पर धर्म और इतिहास में उच्च स्थान दिलाया है।
आदि काल से ही नाभिपुर या नाभापट्टम में शिवरात्रि, संक्रान्ति, ग्रहण, अमावस्या और अन्य कई प्रकार के विशेष और पावन पर्वों और अवसरों पर श्रद्धालु और भक्तगण दूर-दूर से आते रहे हैं और स्नान-ध्यान करने के बाद यहां के पौराणिक काल के सिद्धेश्वर महादेव के शिव मंदिर में जल चढ़ाते और अन्य मंदिरों में दर्शन करते रहे हैं। नर्मदा के तट पर स्थित होने के कारण यह क्षेत्र और इसके सभी मंदिर आज भी हिन्दू धर्म के लिए आस्था और अध्यात्मक के प्रमुख केंद्रों में रखते हैं।
नेमावर में नर्मदा के तटों के आसपास के क्षेत्रों में प्रकृति का अति सुन्दर नमूना देखने को मिलता है इसलिए वर्तमान में इसे धर्म, अध्यात्म और इतिहास के साथ-साथ पर्यटन उद्योग के तौर पर भी देखा जा रहा है।
यदि आप भी अपने परिवार के साथ यहां जाने के लिए मन बना रहे हैं तो उसके लिए यहां का सबसे अच्छा समय सितंबर से मार्च के बीच का हो सकता सकता है। इसके अलावा यहां बारिश के मौसम में भी अधिकतर पर्यटकों को देखा जा सकता है।
नेमावर देश और प्रदेश के सभी भागों से सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है इसलिए यहां जाने के लिए वाहनों की सुविधा भी अच्छी है। नर्मदा नदी के किनारे बसा नेमावर नगर इंदौर से लगभग 130 किमी और भोपाल से 170 किमी की दूरी पर है। नेमावर का सबस नजदीकी रेलवे स्टेशन हरदा रेलवे स्टेशन है जो यहां से महज 22 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा यहां का सबसे नजदीकी हवाईअड्डा इंदौर का देवी अहिल्याबाई होलकर हवाईअड्डा है, जो 130 किलेमीटर की दूरी पर है।