अजय सिंह चौहान || यहां हम जिस मंदिर की बात करने जा रहे हैं मात्र वह प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर ही नहीं बल्कि यह संपूर्ण क्षेत्र भी अपने पौराणिक महत्व के कारण दर्शनीय है। पुराणों में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। स्कंदपुराण और ब्रह्मपुराण के अनुसार प्राचीन काल में गुजरात के इस मोढेरा में और इसके आस-पास का पूरा क्षेत्र धर्मरण्य के नाम से जाना जाता था। उड़ीसा में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर, कश्मीर में स्थित मार्तंड सूर्य मंदिर के बाद मोढेरा के इस सूर्य मंदिर को महत्वपूर्ण सूर्य मंदिरों में से एक माना जाता है। यहां के राजाओं द्वारा निर्मित करवाये गए कई मन्दिरों का आज भी कोई मुकाबला नहीं है।
विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका के राजा रावण को मारने के बाद अपने गुरु वशिष्ठ को एक ऐसा स्थान बताने के लिए कहा, जहां पर जाकर वह अपनी आत्मा की शुद्धि कर सकें और ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पा सकें। तब गुरु वशिष्ठ ने श्रीराम को धर्मारण्य जाने की सलाह दी थी। भगवान राम ने ही धर्मारण्य में आकर एक नगर भी बसाया जिसे आज मोढेरा के नाम से जाना जाता है।
कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने यहां आकर जिस स्थान पर यज्ञ किया था, वर्तमान में यही वह स्थान है, जहां पर यह सूर्य मन्दिर स्थापित है। किंवदंतियों के अनुसार इस स्थान का नाम मोढेरा इस लिए पड़ा क्योंकि मोढ समुदाय के ब्राह्मणों ने ही यहां भगवान राम का यज्ञ पूर्ण करवाया था। यह मंदिर पुष्पवती नदी के किनारे ही बना हुआ है।
मोढेरा का सूर्य मन्दिर गुजरात राज्य के अहमदाबाद से लगभग सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मोढेरा एक छोटा सा कस्बा है जो पुष्पावती नदी के तट पर बसा हुआ है। भगवान सूर्य देव का यह विश्व प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर गुजरात के प्रमुख ऐतिहासिक व पर्यटक स्थलों के साथ ही प्राचीन गौरवगाथा का भी प्रमाण है।
मोढेरा के इस सूर्य मन्दिर का निर्माण सूर्यवंशी सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम ने सन् 1026 ई. में करवाया था। हालांकि, अब इस मंदिर में पूजा-अर्चना आदि नहीं होती, इसीलिए श्रद्धालुओं की भीड़ भी बहुत कम होती है। यह मन्दिर अब पुरातत्व विभाग की देख-रेख में है।
मोढेरा के इस सूर्य मन्दिर का निर्माण सोलंकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम ने सन 1026 ईसवी में करवाया था। सोलंकी राजा सूर्यवंशी थे और भगवान सूर्य इनके कुल देवता के रूप में पूजे जाते थे। इसी कारण उन्होंने यहां इस विशाल सूर्य मन्दिर की स्थापना करवाई थी।
यहां से प्राप्त शिलालेखों से इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि सोलंकी वंश के राजा भीमदेव इस मन्दिर में अपने अराध्य सूर्य भगवान की आराधना किया करते थे। मन्दिर के गर्भगृह की दीवार पर लगे एक शिलालेख पर इसके निर्माणकाल की तारीख विक्रम संवत 1083, यानी सन 1025-1026 ईसा पूर्व अंकित है।
वैसे तो सूर्य मंदिर भारत के अलावा अन्य संस्कृतियों में भी पाये जाते हैं, जैसे चीन, मिस्र, और पेरू। लेकिन, यह सूर्य मन्दिर केवल भारतवर्ष में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में शिल्प कला का बेजोड़ उदाहरण माना जाता है। इस विश्व प्रसिद्ध मन्दिर की स्थापत्य कला की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके पत्थरों में जोड़ लगाने के लिए कहीं भी चूने का प्रयोग नहीं किया गया है।
मोढेरा का यह संपूर्ण सूर्य मन्दिर लाॅकिंग सिस्टम का उपयोग करके बनाया गया है। लाॅकिंग सिस्टम से बनी इमारतों को भूकंप प्रतिरोधी माना जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार भूकंप के आने पर यह संरचना हिलेगी जरूर लेकिन गिरेगी नहीं।
तीन हिस्सों में बनवाया गया मोढेरा का सूर्य मन्दिर स्थापत्य कला एवं शिल्प का बेजोड़ नमूना है। इसके निर्माण में हिन्दू-ईरानी शैली का प्रयोग किया गया है। इसके प्रथम भाग में सूर्यकंुड द्वितीय भाग में गर्भगृह तथा तिसरे भाग में सभामंडप है। मंदिर के गर्भगृह का आकार लंबाई में 51 फुट 9 इंच और चैड़ाई 25 फुट 8 इंच है।
इस सूर्य मंदिर का सभा मंडप कमल पुष्प के औंधे आकार में बना हुआ है। इसकी चारों दिशाओं से प्रवेश के लिए अलंकृत ओर आाकर्षक तोरण बने हुए हैं। मंडप की बाहरी दिवारों पर चारों और 12 आदित्यों, दिक्पालों, देवियों और अप्सराओं की आकर्षक मूर्तियां हैं। मन्दिर के बाहर की ओर चारों दिशाओं में दिशाओं के अनुसार उनके देवताओं की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। इसमें सूर्य देव की प्रतिमा को घुटनों तक के जूते पहने हुए दिखाया गया है। जबकि, सामान्य रूप से कोई भी देवता पादुकाएं पहने नहीं दिखाई देते।
मनमोहक कारीगरी ओर नक्कासी से युक्त मन्दिर के सभामंडप में आकर्षक 52 स्तंभ हैं। जानकारों का मानना है कि एक वर्ष में 52 सप्ताह होते हैं, शायद इसीलिए इस मंदिर के सभामंडप में भी 52 स्तंभ बनाए गए हैं। इन सभी स्तम्भों पर पौराणिक कथाएं दशाई गईं हैं। जिनमें देवी-देवताओं के चित्र तथा रामायण, महाभारत आदि के प्रसंगों को अद्भुत सुन्दरता व बारीकी से उकेरा गया है। इन स्तंभों की विशेषता यह है कि नीचे की ओर देखने पर अष्टकोणाकार और ऊपर की ओर देखने पर वह गोल नजर होते हैं।
इस मन्दिर का निर्माण इस प्रकार से किया गया है कि सूर्योदय होने पर सूर्य की पहली किरण मन्दिर के गर्भगृह में प्रवेश करती है। इस मन्दिर की शिलाओं पर खजुराहो के मंदिरों से मिलती-जुलती नक्काशीदार अनेक शिल्प कलाएं मौजूद हैं, इसलिए यह सूर्य मन्दिर गुजरात का खजुराहो के नाम से भी जाना जाता है।
यह सूर्य मंदिर भी सोमनाथ मंदिर की तरह ही हीरे-जवाहरात और अन्य प्रकार के धनधान्य से संपन्न था। और इस मंदिर का धनधान्य से संपन्न होना ही इसका बहुत बड़ा दूर्भाग्य रहा। क्योंकि इसी कारण से मुस्लिम लूटेरे अलाउद्दीन खिलजी ने इस मंदिर को भी लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के कारण इस मन्दिर को भी काफी नुकसान पहुंचा था। यहां उसने भारी लूटपाट की और मन्दिर की अनेक मूर्तियों को खंडित कर दिया था। भगवान सूर्य देव की स्वर्ण प्रतिमा तथा गर्भगृह के खजाने को भी उसने लूट लिया था। अलाउद्दीन खिलजी द्वारा इस मंदिर पर आक्रमण के बाद इसे खंडित और अपवित्र कर दिया गया था। जिसके बाद से ही इस मन्दिर में पूजा-अर्चना भी बंद कर दी गई थी।