अजय चौहान || इस समय सोसल मीडिया के वे हजारों नहीं बल्कि लाखों और करोड़ों राष्ट्रवादी लड़ाके पश्चिम बंगाल की हिंसा को लेकर इतने उतावले हो चुके हैं कि न सिर्फ आज बल्कि अभी और इसी वक्त पश्चिम बंगाल की हिंसा के विरोध में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाये और किसी ऐसे व्यक्ति को वहां भेजा जाये जो सबसे पहले तो बंगाल से मानवाधिकार को और फिर उस मीडिया को वहां से बाहर निकाले जो सैक्युलरवाद का पेटीकोट पहन कर धृतराष्ट्र बना बैठा है।
तमाम राष्ट्रवादियों का गुस्सा अपने-अपने सोशल मीडिया के पोस्ट के माध्यम से हमें यह बता रहा है कि बंगाल में इसी वक्त शांति बहाल करने के लिए कुछ ऐसा किया जाये कि समस्या हमेशा-हमेशा के लिए एक दम शांत और समाप्त ही हो जाये।
वो तो भला हो उस कोरोना महामारी का कि उसने तमाम कट्टर हिंदू संगठनों के उन लड़ाकों को अपने-अपने घरों में कैद करके रख दिया है वर्ना अब तक तो वे खूद ही बंगाल पहुंचकर अपने हिंदू भाइयों और उनके परिवारों को बचा लेते और बंगाल की सारी कानूनी व्यवस्थाओं को भी ठीक कर देते।
बंगाल के हालातों पर सोशल मीडिया के सबसे प्रमुख प्लेटफार्म यानी फेसबुक की किन्ही एक या दो पोस्ट पर भी ध्यान दें तो पता चलता है कि इनमें सीधे-सीधे उन्हीं लोगों को निशाना बनाया जा रहा है जो पत्रकारिता की निचता को पार कर चुके हैं।
उदाहरण के लिए यहां एक पोष्ट में अपने गुस्से का इजहार करते हुए किसी ने लिखा है कि – याद करो नीच पत्रकारिता का वो पल जब राजनेताओं का कमीनापन डासना मंदिर पर सिर्फ कुछ थप्पड़ों की आवाज से पूरे देश को सुनाई पड़ गई थी, लेकिन आज उन्हीं पत्रकारों और राजनेताओं को न तो बंगाल की वो चीखें सुनाई दे रहीं हैं और ना ही आग की लपटें दिखाई दे रहीं हैं। अगर कुछ दिख रहा है तो ममता का टूटा पैर जो समय से पहले ही ठीक भी हो गया।
इसी तरह से एक अन्य फेसबुक पोस्ट पर नजर डालें तो किसी ने लिखा है कि- एक बात जरूर ध्यान रखना कि एक ने भी बंगाल के खूनी खेल के खिलाफ निंदा तक नहीं की है। ये वही हैं जो देश की तरक्की पर छाती कुटते हैं क्योंकि इनको खाने को नहीं मिलता।
इन दोनों ही व्यक्तियों के उग्र विचारों से एक दम अलग लेकिन, उम्मीद से भरी जिंदगी जीने वाले इन महाशय ने भी अपने ही अंदाज में मोदी सरकार को न सिर्फ कोसा है बल्कि अपना समर्थन देते हुए लिखा है कि – बंगाल में जिहादियों को उन्हीं की भाषा में जवाब की बेचैनियां, अपरिपक्व मानस दर्शा रही या मोदी ने उम्मीद इतना जगा दिया। धीरज रखो, 70 साल बाद कोई मिला है निपटाने वाला।
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद से सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफार्मस पर आजकल न सिर्फ बंगाल में बल्कि पूरे देश में इसी तरह से एक अलग किस्म का उग्र बवाल मचा हुआ है।
जहां एक ओर हिंसा का विरोध जताने के जुर्म में बाॅलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत का ट्विटर अकाउंट सस्पेंड कर दिया गया है वहीं एक अन्य एक्ट्रेस पायल रोहतगी का गुस्सा भी कंगना का ट्विटर अकाउंट बैन किए जाने को लेकर सातवें आसमान पर पहुंच गया है।
हालांकि, अगर हम कुछ अन्य प्रमुख और प्रसिद्ध हस्थियों की बात करें तो इस विषय पर विरोध के नाम पर कई देश प्रेमी हस्थियों ने मात्र इक्का-दुक्का पोस्ट लिख कर अपना पल्ला झाल लिया है।
जबकि कुछ ऐसे मशहूर लोग जो नरेन्द्र मोदी के पहले ही कार्यकाल में अपने अवार्ड वापस कर चुके थे अब उनके पास विरोध के नाम पर ऐसा कोई अवार्ड या शब्द बचे ही नहीं है जो वापस किया जा सके।
बहरहाल जो भी हो। वाद-विवाद इतनी आसानी से खत्म होने वाला नहीं है। लेकिन, इतना तो तय है कि इसमें माननीय सुप्रीम कोर्ट के दखल का इंतजार तो होता ही रहेगा। क्योंकि जब माननीय सुप्रीम कोर्ट किसी साधारण से मामले में भी अगर न्याय दिलवाने के लिए आधी रात को अपना दरबार सजा कर बैठ जाती है तो फिर बंगाल में तो मामला साधारण से थोड़ा सा ऊपर ही दिख रहा है।
जहां एक ओर कंगना रनौत का ट्वीट खास तौर पर भारतीय सैक्युलर मडिया की नजर में विवादित बन कर उभरा वहीं, कुछ ऐसे लोग भी हैं जो बंगाल की हिंसा को सही ठहरा रहे हैं। इसमें मजेदार बात तो ये है कि सैक्युलरवादियों के विचार एकदम गांधीवादी बन कर शांतिप्रिय समाज को जगा रहे हैं और सारा दोष भारतीय जनता पार्टी और उसके प्रमुखों पर ही उढेल रहे हैं कि जब बंगाल पहले से ही शांतिपूर्ण जीवन जी रहा था तो भला ऐसे भाजपा को चुनाव लड़े के लिए किसने और किस हक से भेजा था?
जबकि इन सबसे अलग, बंगाल हिंसा को लेकर सोसल मीडिया के हर प्लेटफार्म पर आम राष्ट्रवादियों का गुस्सा इतना ज्यादा और चरम पर दिख रहा है कि वे इस हिंसा के विरोध में और अपने हिंदू भाइयों और उनके परिवारों को बचाने के लिए विश्व युद्ध तक करवाने को तैयार बैठे हैं।
भले ही बंगाल की वर्तमान स्थिति को लेकर सैक्युलरवादी मीडिया और राजनेता या उनकी सैक्युलर पर्टियां अपनी-अपने तर्क देकर गलत को सही साबित करने में जुट गये हों। लेकिन, राष्ट्रवादियों का गुस्सा है कि बढ़ता ही जा रहा है और अपनी ही सरकार के खिलाफ अब खुल कर बोलने को मजबुर हो चुके हैं।
ऐसे में आवश्यकता है किसी ऐसे राष्ट्रवादी नेता या न्यायप्रिय माननीय जज महोदय की जो सही को सही और गलत को न सिर्फ गलत साबित कर सके बल्कि वर्तमान स्थित को काबू में करने के लिए आगे आय और इस समस्या को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कर दे।
तभी तो एक अन्य महाशय ने अपनी फेसबुक पोस्ट के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी को न सिर्फ सलाह दी है बल्कि उनकी उन शक्तियों को भी जागृत करने के लिए आह्वान किया है जिनके लिए वे जाने जाते हैं। वे लिखते हैं कि – अपनी दाढ़ी को टैगोर नहीं ‘शिवाजी स्टाईल’ में कर लो ताऊ। क्योंकि बंगाल को अब टैगोर नहीं शिवाजी चाहिए।