अजय सिंह चौहान || मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में भोपाल से करीब 160 किलोमीटर तथा व्यावसायिक राजधानी इंदौर से मात्र 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित शहर देवास मात्र एक शहर ही नहीं बल्कि एक ऐसा पौराणिक और प्राचीन नगर है जिसमें आज भी कई देवी-देवताओं का साक्षात वास है। ‘देवास’ यानी दो शब्दों ‘देव’ तथा ‘वास’ से मिलकर बने देवास का पौराणिक इतिहास बताता है कि किसी समय में यह उज्जैनी के सम्राट विक्रमादित्य की नगरी का ही एक भाग हुआ करता था। माना जाता है कि देवास का नाम दो देवियों के निवास के रूप में देवासिनी के नाम से प्रचलन में आया जिसका अर्थ है देवियों का वास है।
आज भी देवास शहर धार्मिक, संस्कृतिक, साहित्यिक तथा ऐतिहासिक द्रष्टि से मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण शहर है और मुख्य रूप से यह शहर, माता तुलजा भवानी तथा चामुंडा माता के शक्तिपीठ मंदिर (Chamunda Shaktipith Dewas MP) के लिए भारत भर में प्रसिद्ध है। ऊंचे भवन पर विराजित करोड़ों लोगों की आस्था के प्रतिक ये दोनों ही सदन हजारों साल पहले से भी कई प्रसिद्ध ऋषि-मुनियों की तपोस्थली भी रहा है।
पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार मां चामुंडा (Chamunda Shaktipith Dewas MP) और मां तुलजा दरबार को यहां देवी सती के 52 शक्तिपीठों में एक के रूप में माना जाता है। ये दोनों ही मंदिर देवास की एक पहाड़ी पर स्थित है। इसमें माता चामुंडा की मूर्ति की विशेषता यह है कि यह मूर्ति दिन में तीन बार रूप बदलती है, जिसमें सुबह बचपन का रूप दोपहर को युवावस्था और शाम को वृद्धावस्थ का रूप देखने को मिलता है।
इसी टेकरी पर चामुंडा माता मंदिर (Chamunda Shaktipith Dewas MP) के दक्षिण दिशा में बड़ी माता यानी माता तुलजा भवानी का मंदिर भी है जिसके गर्भगृह में माता तुलजा भवानी की प्रतिमा स्थित है। मान्यता है कि माँ चामुंड तथा तुलजा भवानी दोनों बहनें हैं। पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित इन दो देवियों में से एक माता तुलजा भवानी को बड़ी माता कहा जाती है जबकि दूसरे मंदिर में स्थापित माँ चामुंडा को छोटी माता माना जाता है। दोनों ही मंदिर विपरीत दिशाओं में हैं। ऐसी मान्यता है कि माताओं की दोनों मूर्तियां स्वयंभू हैं और जागृत स्वरूप में हैं।
यहां इस चामुंडा माता (Chamunda Shaktipith Dewas MP) मंदिर की टेकरी पर माता शक्ति का रुधिर गिरा था। रुधिर यानी रक्त की बूंदें या खून की बूंदों से है जिसके कारण यहां पर मां तुलजा और मां चामुंडा प्रकट हुईं थीं। जबकि मान्यताओं के अनुसार माँ चामुंडा के इस शक्तिपीठ के अलावा अन्य सभी शक्तिपीठों पर माता की देह के हिस्से और उनके वस्त्रा एवं आभूषण आदि गिरे थे।
इस शक्तिपीठ की एक और खास बात यह है कि इसे सनातन धर्म के तीन प्रमूख सम्प्रदायों में से एक शाक्त सम्प्रदाय में अध्यात्म की सर्वोच्च सप्त मातृका यानी सात माताओं में से एक देवी भी माना जाता है।
माँ चामुंडा के इस शक्तिपीठ के विषय में एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि इस मंदिर में महाराजा विक्रमादित्य भी पूजा करने आया करते थे। इसके अलावा यह नाथ संप्रदाय के योगियों की शक्तिपीठ भी है। नाथ संप्रदाय के इतिहास के अनुसार उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य के भाई तथा गुरु गोरखनाथ के शिष्य महर्षि भर्तहरी ने यहां कई वर्षों तक तपस्या की थी।
कहा जाता है कि माता चामुंडा शक्तिपीठ मंदिर की टेकरी पर स्थित गुफा में एक ऐसी सुरंग भी है जिसके बारे में ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर कहा जा सकता है कि इस सुरंग से करीब ढाई हजार साल पहले तक के इतिहास की जानकारी मिलती है।
इसे भी पढ़े: पावागढ़ का महाकाली मंदिर- दर्शन भी, पर्यटन भी | Mahakali Mandir Pavagadh
जानकार लोग यह भी बताते हैं कि गुफा में स्थित सुरंग के उस रास्ते को उज्जैन और देवास के बीच गुप्त रूप से आने-जाने के लिए तैयार किया गया था। करीब 45 किमी लंबी इस सुरंग का दूसरा छोर उज्जैन की भर्तहरि गुफा के पास निकलता है। इस गुफा से जुड़ा इतिहास बताता है कि उज्जैन के राजा भर्तहरि मां चामुंडा की आराधना के लिए इस गुफा के रास्ते यहां आते थे। इसी गुफा में शंकर जी की पिंडी और पंचमुखी हनुमान जी का मंदिर भी है।
इसके अलावा माँ चामुंडा शक्तिपीठ मंदिर में एक महत्वपूर्ण बात यह भी देखी जाती है कि यहां आने वाले कई श्रद्धालुजन मंदिर की दीवार पर स्वास्तिक उल्टी आकृति बना कर जाते हैं और मन्नत मांगते हैं कि यदि हमारी मनोकामना पूरी हो जाएगी तो हम एक बार फिर से दर्शनों के लिए आयेंगे और चांदी का स्वास्तिक चढ़ायेंगे।
नवरात्रों के विशेष अवसरों पर माँ चामुंडा शक्तिपीठ मंदिर में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। माता के भक्त यहां देशभर से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी आते हैं। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मुरादें मां के दरबार में प्राचीन समय से पूरी होती आ रहीं हैं।
स्थानीय भाषा में पहाड़ी को टेकरी कहा जाता है। इसलिए स्थानीय लोग माँ चामुंडा शक्तिपीठ मंदिर की इसे ‘टेकरी वाली माता’ कह कर भी संबोधित करते हैं। माता का यह मंदिर एक शंकु के आकर की पहाड़ी पर स्थित है। यह टेकरी या पहाड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग नं. 3 यानी आगरा-बाॅम्बे रोड पर ही है जो इंदौर से करीब 35 किलोमीटर की दुरी पर भोपाल की ओर स्थित है।
माता चामुंडा शक्तिपीठ मंदिर तक पहुँचने के लिए पहाड़ी की चढ़ाई शुरू करने से पहले ही एक भव्य प्रवेश द्वार बना हुआ है जो राजमार्ग के ठीक किनारे पर स्थित है। प्रवेश द्वार से लेकर मुख्य मंदिर तक पत्थरों की आकर्षक सीढियाँ बनी हुई हैं तथा बीच बीच में विश्राम के लिए कई स्थानक बनाये गए हैं। इसके अलावा यदि कोई सीढ़ियों के बजाय झूले से या रोप-वे के सहारे भी यदि मंदिर तक जाना चाहे तो यहां उसकी भी सुविधा उपलब्ध है। और यदि आप रोप-वे में बैठते हैं तो इससे श्रद्धालुओं को देवास शहर का भव्य नजारा देखने को मिल जाता है।
माँ चामुंडा शक्तिपीठ मंदिर की इस पहाड़ी पर पहुंचने पर मार्ग में सबसे पहले चामुंडा माता शक्तिपीठ का मंदिर दिखाई देता है। यह मंदिर एक गुफा के आकार में बना हुआ है जिसमें स्थित एक शिला को तराश कर माता चामुंडा की दिव्य प्रतिमा की छवि उकेरी गयी है। यहां आने वाले श्रद्धालु जब माता चामुंडा की दिव्य मूर्ति के दर्शन करते हैं तो उनकी सारी थकान छूमंतर हो जाती है।प्राचीन समय में माँ चामुंडा शक्तिपीठ का यह मंदिर आकार में छोटा था लेकिन अब इसे दर्शनार्थियों के लिए सुविधाजनक बनाया गया है। दोनों ही देवियों के वर्तमान मंदिरों की संरचना बताती है कि ये मंदिर मराठा शैली में बने हुए हैं और दोनों ही मंदिर समकालीन है।
अभी तक मिले प्रमाणों के अनुसार पहाड़ी पर स्थित मां चामुंडा देवी की मूर्ति लगभग दसवीं शताब्दी की बताई जाती है। इतिहास में उल्लेखित जानकारी के अनुसार मां चामुंडा की प्रतिमा को चट्टान में उकेरकर आकार दिया गया है। पुराविदों ने इस प्रतिमा को परमारकालीन बताया है।
इसके अलावा चामुंडा माता के मंदिर के पास ही में बने छोटे-छोटे नौ मंदिरों के माध्यम से माता के नौ रूपों को भी दर्शाया गया है। ये नौ मंदिर देखने में बड़े ही आकर्षक और मनमोहक लगते हैं।
इसे भी पढ़े: अद्भुत चमत्कारी हैं इंदौर की बिजासन माता | Bijasan Mata Mandir Indore
साल में चैत्र और शारदेय नवरात्र में देशभर से लाखों श्रद्धालु इस टेकरी पर आकर माँ चामुंडा शक्तिपीठ मंदिर में पूजन-दर्शन करते हैं। देवास की ये दोनों ही देवियां दो रियासतों के राजाओं की कुल देवियों के रूप में स्थापित हैं। बड़ी माँ तुलजा भवानी होलकर वंश की कुलदेवी हैं और छोटी माँ चामुण्डा देवी पँवार वंश की कुलदेवी। टेकरी की बड़ी और छोटी दोनों ही देवियों के दर्शनों के बाद श्रद्धालुओं के लिए भैरव बाबा के दर्शन अनिवार्य माना जाता है।
इसके अलावा इसी टेकरी पर चामुंडा माता के मंदिर के पास ही में कालिका माता का भी एक मंदिर है तथा एक पानी का छोटा सा तालाब भी है। जिसके विषय में माना जाता है कि पहाड़ी की इतनी उंचाई पर होने बावजूद इसका पानी कभी सूखता नहीं है।
यहां प्राप्त कई साक्ष्यों के आधार पर यह सिद्ध होता है की प्राचीन समय में यहां कई राजा तथा राजघराने माँ चामुंडा शक्तिपीठ मंदिर को भेंट भेजा करते रहें हैं जिनमें प्रमुख हैं पृथ्वीराज चैहान, उदयपुर के राणा, पेशवा महाराज तथा देवास रियासत के पंवार राजा आदि शामिल थे। इसमें माता चामुंडा को देवास रियासत के पंवार वंश के राजाओं की कुलदेवी के रूप में माना जाता है।
हर साल चैत्र और शारदीय नवरात्रि के विशेष अवसरों पर देशभर से लाखों श्रद्धालु यहां आकर टेकरी पर माँ चामुंडा शक्तिपीठ मंदिर के दरबार में शीश झुकाते हैं। मंदिर को लेकर मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई मुरादें मां के दरबार में प्राचीन समय से पूरी होती आई हैं।
देवास के अन्य दर्शनीय स्थलों में कैला माता मंदिर भी है। दक्षिण भारतीय शैली में बना यह मंदिर देवास का मुख्य आकर्षण है। परिसर में कैला माता के अति सुन्दर मंदिर के अलावा भगवान शिव का एक अति सुन्दर मंदिर तथा शनि नवगृह मंदिर भी है। इसके अलावा कालका देवी का मंदिर, अन्नपूर्णा माता का मंदिर, खो-खो माता, अष्टभुजादेवी और दक्षिणाभिमुखी हनुमान मंदिर हैं। यहां शीलनाथजी की गुफा भी है जो मां चामुंडा माता मंदिर से कुछ नीचे की ओर योगीराज शीलनाथजी महाराज की तपोभूमि मानी जाती है। यहां पर उनकी वह गुफा भी है जिसमें बैठकर वे ध्यान लगाते थे।
यदि आप लोग भी परिवार के साथ यहां माँ चामुंडा शक्तिपीठ मंदिर में आकर माता के दर्शनों का मन बना रहे हैं तो उसके लिए अगस्त से अप्रैल के बीच का मौसम देवास सहित संपूर्ण मालवा क्षेत्र का सबसे अच्छा मौसम कहा जा सकता है।
देवास शहर राष्ट्रीय राजमार्ग नम्बर 3 पर स्थित है जो आगरा बाॅम्बे रोड के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा यह मध्य प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों से सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है। इंदौर से इसकी दूरी मात्र 34 किलोमीटर और उज्जैन से भी इसकी दूरी 34 किलोमीटर है। जबकि भोपाल से 153 किलोमीटर है।
देवास का रेलवे स्टेशन यहां का एक महत्वपूर्ण जंक्शन है जो भारत के कई बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई तथा जयपुर आदि से जुड़ा हुआ है। यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देवी अहिल्या बाई होलकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है जो यहां से मात्र 45 किलोमीटर की दुरी पर इंदौर में स्थित है।