अजय सिंह चौहान || अपने प्रारंभिक समय से लेकर आज तक धार भारतीय संस्कृति, धर्म और अध्यात्म तथा दर्शन के लिए मध्य प्रदेश का एक महत्त्वपूर्ण शहर बना हुआ है। भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति के अनुसार, धार जिला मध्य प्रदेश के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। इसके उत्तर में रतलाम और उज्जैन जिले तथा दक्षिण-पूर्व में पूर्वी निमाड़ क्षेत्र है। जबकि पूर्व में इन्दौर और पश्चिम में झाबुआ जिले हैं।
धार सहीत यह संपूर्ण मालवा क्षेत्र भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक मानचित्र में अति प्राचीनकाल से ही रहा है। अपने प्रारंभिक दौर से ही यहां के लोगों ने अपने आपको ललित कला, चित्रकारी, नक्काशी, संगीत व नृत्य इत्यादि में संलिप्त रखा था।
प्राचीनकाल से ही यह क्षेत्र एक समृद्धशाली और ऐतिहासिक परंपरा वाला स्थान रहा है तभी तो यहां ऐसे कई ऐतिहासिक महत्व के प्रसिद्ध स्थल आज भी मौजूद हैं जो राजा भोज के जन्म से भी बहुत पहले से मौजूद हैं।
ऐतिहासिक तथ्यों पर गौर करें तो पता चलता है कि धार नगरी की स्थापना परमार राजपूत वंश के राजा भोजदेव ने की थी। लेकिन, सही मायनों में तो यह नगर उनसे भी कहीं अधिक पहले से यानी पौराणिक काल से ही एक प्रसिद्ध नगर हुआ करता था।
यहां बाघ नदी के किनारे स्थित गुफाओं में 5वीं और 6वीं शताब्दी की परंपरागत भारतीय चित्रकला शैली को आज भी देखा जा सकता है। यहां की बौद्धकला संपूर्ण एशिया में प्रसिद्ध है।
धार नगर की प्राचीन और समृद्ध ऐतिहासिक परंपरा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां भोजशाला, धार का किला, राजाओं की छत्री, राजवाड़ा, धारेश्वर मंदिर, कालिका मंदिर, आनन्देश्वर मंदिर, जैसे कई महत्वपूर्ण धार्मिक और पर्यटन स्थल है।
हालांकि, यह सच है कि धार का इतिहास उस समय सबके सामने आया जब परमार राजपूत वंश के राजा भोजदेव ने शासन संभाला था। जबकि, सही मायनों में तो राजा भोज से भी पहले उनके पूर्वज, यानी परमार राजपूत वंश के राजा मुंज वाक्पति भी कुछ आवश्यक निर्माण के कार्य करवा चुके थे।
अगर धार के प्रारंभिक और प्राचीन इतिहास की बात करें तो इसका प्रारंभिक इतिहास बताता है कि सर्वप्रथम यहां एक ‘धारा-पद्रक‘ नामक गांव हुआ करता था, जो सांस्कृतिक, आर्थिक तथा सामरिक तौर पर वैभवशाली नगर के रूप में संपूर्ण मालवा क्षेत्र में पहचाना जाता था।
परमार काल के इतिहास के अनुसार ‘धारा-पद्रक‘ नाम के उसी गांव को परमार वंश के उदय के साथ ही धार्मिक, सांस्कृतिक और वैभवशाली तथा शौर्य और शासन के अनुरूप आकार दिया गया और धारा-पद्रक से यह धारा नगरी बन गया, और फिर धारा नगरी से ही धार कहलाया।
मुगलकाल के दौर में यह ‘पीरन-धार’ भी कहलाया जाता था। जबकि आजादी के पहले तक भी धार को उसके प्राचीन नाम धारा नगरी के नाम से ही पहचाना जाता था, लेकिन, सहुलिय के अनुसार इसे अंत में सिर्फ और सिर्फ धार कह कर पुकारा जाने लगा।
धार के किले में आज भी मौजूद है असली और नकली इतिहास | History of Dhar Fort
भोजशाला मंदिर – धार का विश्व प्रसिद्ध भोजशाला मंदिर मूल रूप से माता सरस्वती मंदिर के तौर पर स्थापित हुआ था, जिसे राजा भोज ने स्वयं अपने सामने बनवाया था। लेकिन जब अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली की गद्दी पर बैठा तो यह क्षेत्र भी उसके साम्राज्य में मिल गया जिसके बाद उसने इस मंदिर को अपवित्र करवा कर इसे मस्जिद में तब्दील करवा दिया था।
और क्योंकि किसी समय में यह नगरी अपने कई प्रकार के ऐतिहासिक महलों, मंदिरों, महाविद्यालयों, रंगशालाओं और बाग-बगीचों के लिये विश्व प्रसिद्ध हुआ करती थी, इसलिए इसे ‘मालवा की रानी’ के नाम से भी पहचाना जाता था और पर्यटन के लिहाज से आज भी इसे ‘मालवा की रानी’ के नाम से ही पहचाना जाता है। जबकि स्थानीय लोगों के लिये तो यह मात्र एक धार है।
भले ही आज की धार नगरी उतनी शानदार और वैभवशाली या सम्पन्न नहीं है जितनी की परमार वंश के राजा भोजदेव के शानकाल में हुआ करती थी। लेकिन यहां मौजूद परमारकालीन अवशेष आज भी धार नगरी के उस परम वैभव, सम्पन्नता और समृद्धता को दर्शाते हैं।