अजय सिंह चौहान || श्री हरसिद्धि माता शक्तिपीठ मंदिर (Harshidhi Shaktipeeth Ujjain), माता सती के 52 शक्तिपीठों में 13वां शक्तिपीठ कहलाता है। कहा जाता है कि यहां माता सती के शरीर में से बायें हाथ की कोहनी के रूप में 13वां टुकड़ा मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित भैरव पर्वत नामक इस स्थान पर गिरा था। लेकिन कुछ विद्वानों का मत है कि गुजरात में द्वारका के निकट गिरनार पर्वत के पास जो हर्षद या हरसिद्धि शक्तिपीठ मंदिर है वही वास्तविक शक्तिपीठ है। जबकि उज्जैन के इस मंदिर के विषय में कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य स्वयं माता हरसिद्धि को गुजरात से यहां लाये थे। अतः दोनों ही स्थानों पर शक्तिपीठ की मान्यता है।
मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित शिप्रा नदी के रामघाट के नजदीक भैरव पर्वत पर स्थित श्री हरसिद्धि माता शक्तिपीठ मंदिर (Harshidhi Shaktipeeth Ujjain) प्राचीन रूद्रसागर के किनारे स्थित है। कहा जाता है कि कभी यह पानी से लबालब भरा रहता था ओर इसमें कमल के फूलों की बहार हुआ करती थी और कमल के वही फूल माता के चरणों में अर्पित किये जाते थे। हालांकि रूद्रासगर आज सरकारों की अनदेखी के चलते एक नाममात्र का ही सागर रह गया है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग व हरसिद्धि शक्तिपीठ मंदिर श्रद्धालुओं के लिए ऊर्जा का बहुत बड़ा स्त्रोत माना जाता है। इसलिए यह पवित्र स्थान बारहों मास तपस्वियों और भक्तों की भीड़ से भरा रहता है। यहां हरसिद्धि माता के इस शक्तिपीठ मंदिर की पूर्व दिशा में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर एवं पश्चिम दिशा में शिप्रा नदी के रामघाट हैं।
हरसिद्धि माता (Harshidhi Shaktipeeth Ujjain) को ‘मांगल-चाण्डिकी’ के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि माता हरसिद्धि की साधना करने से सभी प्रकार की दिव्य सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। राजा विक्रमादित्य जो अपनी बुद्धि, पराक्रम और उदारता के लिए जाने जाते थे इन्हीं देवी की आराधना किया करते थे। इसलिए उन्हें भी हर प्रकार की दिव्य सिद्धियाँ प्राप्त हो गईं थीं। इसी कारण मांगल-चाण्डिकी देवी को हरसिद्धि अर्थात हर प्रकार की सिद्धि की देवी नाम दिया गया।
किंवदंतियों के अनुसार राजा विक्रमादित्य ने 11 बार अपने शीश को काटकर मां के चरणों में समर्पित कर दिया था, लेकिन हर बार देवी मां उन्हें जीवित कर देती थीं। इस स्थान की इन्हीं मान्यताओं के आधार पर कुछ गुप्त साधक यहां विशेषरूप से नवरात्र में गुप्त साधनाएं करने आते हैं। इसके अतिरिक्त तंत्र साधकों के लिए भी यह स्थान विशेष महत्व रखता है। उज्जैन के आध्यात्मिक और पौराणिक इतिहास की कथाओं में इस बात का विशेष वर्णन भी मिलता है।
जैसा कि शक्तिपीठ मंदिरों की उत्पत्ति के विषय में हमारे पुराणों में वर्णित है कि अपने पिता दक्ष द्वारा अपमानित होकर देवी सती ने हवनकुंड में आत्मदाह कर लिया था। जिसके बाद क्रोध में आकर भगवान शिव ने वैराग्य धारण कर लिया और सती के उस शव को अपने कंधे पर उठाए ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने रहे।
भगवान शिव के वैराग्य धारण कर लेने से सृष्टि का संचालन बाधित हो रहा था इसलिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के टुकड़े कर दिए। और जहां-जहां शव के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुईं कहा जाता है कि उन शक्तिपीठों की रक्षा आज भी स्वयं भगवान शिव अपने भैरव रूप में करते हैं। उज्जैन स्थित भैरव पर्वत नामक इस स्थान पर माता सती के शरीर में से बायें हाथ की कोहनी के रूप में 13वां टुकड़ा गिरा था। तब से यह स्थान 13वां शक्तिपीठ कहलाता है।
स्कंद पुराण में देवी हरसिद्धि का उल्लेख मिलता है। जबकि शिवपुराण के अनुसार यहाँ श्रीयंत्र की पूजा होती है। श्री हरसिद्धि मंदिर के गर्भगृह के सामने सभाग्रह में श्री यन्त्र निर्मित है। कहा जाता है कि यह सिद्ध श्री यन्त्र है और इस महान यन्त्र के दर्शन मात्र से ही पुण्य का लाभ होता है।
मंदिर के गर्भग्रह में माता की जो मूर्ति है वह किसी व्यक्ति विशेष द्वारा दिया गया आकार नहीं बल्कि यह एक प्राकृतिक आकार में है जिस पर हल्दी और सिन्दूर की परत चढ़ी हुई है। मुख्य मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों ओर भैरव जी की मूर्तियां हैं। मंदिर के गर्भगृह में तीन मूर्तियां विराजमान हैं जिसमें सबसे ऊपर माता अन्नपूर्णा, मध्य में माता हरसिद्धि और नीचे माता कालका विराजती हैं।
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उज्जैन और विशेषकर मालवा क्षेत्र के इतिहास पर नजर डालने पर पता चलता है कि यहां 1234 ईसवी में दिल्ली सल्तनत के तीसरे शासक इल्तुतमिश की सेनाओं ने उज्जैन सहित मालवा के अन्य कई हिस्सों पर पर हमला करके व्यापक स्तर पर विनाश किया और मंदिरों की संपत्ति लुट कर उन्हें बुरी तरह से नुकसान पहुचाया था। जबकि एक लंबे अंतराल के बाद सन 1750 में मराठाओं ने इस क्षेत्र पर कब्जा करके उज्जैन को सिंधिया राज का मुख्यालय बना लिया।
मराठा शासकों ने अपने शासन के दौरान इस क्षेत्र के लगभग सभी प्राचीन मंदिरों का जिर्णोद्धार करवाया। जिसमें हरसिद्धि मंदिर भी एक था। सिंधिया राज ने बाद में ग्वालियर में खुद को स्थापित किया और सन 1947 तक उज्जैन ग्वालियर राज्य का हिस्सा बना रहा। हरसिद्धि माता के इस मंदिर का इतिहास बताता है कि मराठों के शासनकाल में इसका पुनर्निर्माण किया गया था, इसलिए इसमें मराठा वास्तु कला की झलक देखने को मिलती है।
यहां शक्तिपीठ मंदिर के प्रांगण की चारदिवारी की बनावट और वास्तु कला में शत-प्रतिशत मराठा झलक दिखती है। मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ते ही सिंह की प्रतिमा जो माता का वाहन है के दर्शन होते हैं। द्वार के दाईं ओर दो बड़े नगाड़े रखे हैं, जो सुबह और शाम की आरती के समय बजाए जाते हैं।
मंदिर के प्रांगण में हरसिद्धि सभाग्रह के ठीक सामने दो बड़े आकार के दीप स्तंभ बने हुए हैं जो विश्व प्रसिद्ध हैं। इनमें से एक दीप स्तंभ पर 501 दीपमालाएँ हैं, जबकि दूसरे स्तंभ पर 500 दीपमालाएँ हैं। दोनों दीप स्तंभों पर नवरात्र तथा अन्य विशेष अवसरों पर दीपक जलाए जाते हैं। कुल मिलाकर इन 1001 दीपकों को जलाने में एक समय में लगभग 45-50 लीटर रिफाइंड तेल लग जाता है।
इन दीपकों में लगने वाले तेल और मजदूरी का पूरा खर्च पूरी तरह से दानी सज्जनों द्वारा प्रायोजित किया जाता है, जिसके लिए विशेषकर नवरात्रों या अन्य अवसरों पर पहले से ही बुकिंग करवा ली जाती है। नवरात्री के विशेष अवसर पर इन दीपों के प्रज्जवलीत होने से पहले ही यहां पर्यटकों और श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ उमड़ती है। इन दीपमालिकाओं के सैकड़ों दीपक नवरात्री के नौ दिनों तक प्रतिदिन शाम को एकसाथ प्रज्जलीत किए जाते हैं।
इस मंदिर के प्रांगण की चारों दिशाओं में चार प्रवेश द्वार हैं। मंदिर के पूर्वी द्वार के पास बावड़ी है, जिसके बीच में एक स्तंभ है, जिस पर संवत् 1447 अंकित है। मंदिर परिसर में आदिशक्ति महामाया का भी मंदिर है, जहाँ सदैव ज्योति प्रज्जवलित रहती है तथा दोनों नवरात्रों के अवसर पर उनकी महापूजा होती है। मंदिर के प्रांगण में शिवजी का कर्कोटकेश्वर महादेव मंदिर भी है जो चैरासी महादेवों में से एक है। श्रद्धालु यहां कालसर्प दोष निवारण के लिए विशेष पूजा अर्चना करवाते हैं।
यह शक्तिपीठ मंदिर सुबह साढ़े पांच बजे से साढ़े ग्यारह बजे रात तक खुला रहता है। इस दौरान माता के प्रसाद के रूप में दूध और मिठाई आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है, जबकि शाम को यहां फलों का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
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यहां शाम की आरती का यहां विशेष महत्व है और इसके लिए प्रतिदिन स्थानीय निवासियों और श्रद्धालुओं की अच्छी-खासी भीड़ जुट जाती है। यह मंदिर आकार में बड़ा और भव्य नहीं है, लेकिन मंदिर और मंदिर प्रांगण की स्वच्छता और व्यवस्था को देखकर मन प्रसन्न हो उठता है।
हरसिद्धि शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। मगर इस शक्तिपीठ की स्थिति को लेकर विद्वानों में मतभेद भी हैं। कुछ विद्ववानों के अनुसार उज्जैन में स्थित भैरवपर्वत को, तो कुछ गुजरात के गिरनार पर्वत के निकट भैरव पर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं। अतः दोनों ही स्थानों पर शक्तिपीठ की मान्यता है।
गुजरात में पोरबंदर से करीब 50 किलो मीटर की दूरी पर महाभारतकालीन द्वारका के पास समुद्र की खाड़ी के किनारे स्थित है एक गांव जो मियां गांव कहलाता है। यहां स्थित एक पर्वत पर हर्षद माता या हरसिद्धि माता का शक्तिपीठ मंदिर है।
मान्यताओं के अनुसार यही देवी उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य देवी हैं और यहीं से आराधना करके सम्राट ने देवी को उज्जैन में आने की प्राथना की थी। प्रार्थना के बाद देवी ने सम्राट विक्रमादित्य से कहा था कि मैं रात के समय तुम्हारे नगर उज्जैन में तथा दिन में इसी स्थान पर वास करूंगी। संभवतः इसलिए यहां उज्जैन में माता हरसिद्धि की संध्या आरती का महत्व है।
उज्जैन भारत के प्रमुख धार्मिक शहरों में से एक है। इसको 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक भगवान महाकाल की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक 12 वर्षों में एक बार लगने वाला कुंभ और राजा विक्रमादित्य की नगरी के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसलिए यहां धर्मशालाओं और होटलों की कोई कमी नहीं है। यहां 5 सितारा होटल तो नहीं है लेकिन बजट के अनुसार अनेक होटल उपलब्ध हैं।
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यदि आप लोग भी उज्जैन जाना चाहते हैं तो यहां आने के लिए वैसे तो यहां किसी भी मौसम में कोई समस्या नहीं है लेकिन अत्यधिक गर्मी के कारण बच्चों और बुजुर्गों को समस्या हो सकती है इसलिए यहां का सही समय सितंबर से अप्रैल के मध्य का समय सबसे उत्तम समय है।
उज्जैन शहर देश के लगभग हर क्षेत्र से सड़क और रेल यातायात से जुड़ा हुआ है। माता का यह मंदिर उज्जैन रेल्वेस्टेशन से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर है, और यहां पहुंचने के लिए सिटीबस, आॅटो या टेंपो आदि का सहारा लिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त यहां के लिए सबसे नजदीकी हवाईअड्डा इंदौर में है जो यहां से लगभग 55 किलोमीटर है।
उज्जैन के कुछ अन्य दर्शनीय स्थल जो हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व के हैं वे इस प्रकार से हैं – महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर, राजा भर्तृहरि गुफा, सम्राट विक्रमादित्य मंदिर, गौपाल मंदिर, काल भैरव मंदिर, नवग्रह मंदिर, श्री बड़ा गणेश मंदिर, चिंतामन गणेश मंदिर, क्षिप्रा नदी घाट, संतोसीमाता मंदिर, चारधाम मंदिर व श्री राम मंदिर, गढ़कालिका मंदिर, 52 कुंड, चैबीस खंबा मंदिर, पाताल भैरव मंदिर, श्री सिद्धवट मंदिर, मंगलनाथ मंदिर, सान्दीपनि आश्रम, जंतर मंतर।