आगरा में पौराणिक काल यानी त्रेता युग का एक ऐसा दुर्लभ शिव मंदिर जिसमें हैं दो ज्योतिर्लिंग विराजित हैं। और इस बात के प्रमाण हमारे कई धर्मगं्रथों में मौजूद हैं। आमतौर पर यहां आने वाले कई भक्तों को मंदिर के गर्भगृह में एक साथ दो शिवलिंगों को देखकर कुछ आश्चर्य तो होता है लेकिन वे फिर भी इसे नजरअंदाज कर देते हैं। जबकि, बहुत ही कम लोग इन दो शिवलिंगों के एक साथ होने की विस्तृत जानकारी ले पाते हैं।
आज भी बहुत ही कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि आगरा में एक ऐसा शिवलिंग मंदिर भी है जहां दो शिवलिंग एक साथ स्थापित हैं और उनका संबंध त्रेता युग से जुड़ा हुआ है। इसीलिए यह शिव मंदिर एक ऐसा दुर्लभ मंदिर है जिसमें विराजित ज्योतिर्लिंगों को भगवान परशुराम और उनके पिता जमदग्नि के द्वारा स्वयं स्थापित किया गया था।
आगरा के इस कैलाश महादेव मंदिर को लेकर मान्यता है कि यह भगवान शिव का एक दुलर्भ मंदिर है जो दुनिया में और कहीं नहीं है। क्योंकि इस मंदिर के गर्भगृह में एकसाथ दो शिवलिंग स्थापित है। यहां आने वाले भक्तों और श्रद्धालुओं के लिए जितना महत्व आगरा के इस कैलाश महादेव मंदिर का है उतना ही पुराना इस मंदिर का इतिहास भी है और उतनी ही महत्वपूर्ण और रोचक है इसकी पौराणिक मान्यताएं और किंवदंदियां।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर का अपना अलग ही एक महत्व है। माना जाता है कि इस कैलाश महादेव मंदिर में स्थित इन दोनों ही पवित्र शिवलिंगों की स्थापना आज से हजारों साल पहले त्रेता युग में हुई थी और भगवान परशुराम और उनके पिता जमदग्नि के द्वारा इन शिवलिंगों की स्थापित की गई थी। भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि का आश्रम रेणुका धाम भी यहां से पांच से छह किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित है। और यह वही रेणुकाधाम आश्रम है जिसका उल्लेख श्रीमद्भागवत गीता में भी वर्णित है।
आगरा का पौराणिक इतिहास और युगों-युगों का रहस्य | History of Agra
पौराणिक मान्यता है कि त्रेता युग में भगवान विष्णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम और उनके पिता ऋषि जमदग्नि भगवान शिव की आराधना करने के लिए कैलाश पर्वत पर गए थे। पिता और पुत्र दोनों ही ने कई वर्षों तक वहां कड़ी तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। इस पर भगवान परशुराम और उनके पिता ऋषि जमदग्नि ने भगवान शिव से अपने साथ चलने और हमेशा साथ रहने का आशीर्वाद मांग लिया। कहा जाता है कि भगवान शिव खुद तो उनके साथ नहीं आये लेकिन आशीर्वाद स्वरूप परशुराम और उनके पिता ऋषि जमदग्नि को एक-एक शिवलिंग भेंट में दे दिए।
महाभारत में भी मिलता है कैलाश महादेव मंदिर का उल्लेख | Kailash Mahadev in Agra
पौराणिक तथ्यों के अनुसार बताया जाता है कि जब पिता और पुत्र दोनों ही यमुना के किनारे अग्रवन में बने अपने आश्रम रेणुका के लिए चल दिए। लेकिन, आश्रम पहुंचने से पहले ही लगभग 6 किलोमीटर पहले उनको रात्रि विश्राम के लिए रुकना पड़ा। रात्रि विश्राम के पहले उन्होंने वे दोनों ही शिवलिंग अस्थायी रूप से वहां स्थापित कर दिए। और फिर अगले दिन प्रातः यमुना स्नान करने के बाद भगवान परशुराम और उनके पिता ऋषि जमदग्नि उन ज्योतिर्लिंगों को आगे की यात्रा में ले जाने के लिए पहुंचे और उन्हें उठाने का प्रयास किया, लेकिन वे उन ज्योर्तिलिंगों को उस जगह से नहीं उठा पाए। इसके बाद पिता-पुत्र दोनों ने उसी जगह पर उन दोनों शिवलिंगों की पूजा-अर्चना कर पूरे विधि-विधान से स्थापित कर दिया और उन्होंने इन ज्योतिर्लिंगों को नाम दिया ‘कैलाश महादेव’। बताया जाता है कि तभी से इन दोनों ही ज्योतिर्लिंगों को कैलाश महादेव के नाम से जाना जाता है।
कैलाश महादेव का यह मंदिर आगरा शहर से करीब 8 किलोमीटर दूर यमुना नदी की तलहटी में बसे कैलाश सिकंदरा क्षेत्र में स्थित है।
– गणपत सिंह, खरगौन (मध्य प्रदेश)