अजय सिंह चौहान || मैंने अपने इस सीरिज के पिछले तीनों लेखों में यह बताने का प्रयास किया था कि कैसे हिमालय के दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले ऋषि-मुनि हजारों वर्षों से तपस्या में लीन हैं जहां एक आम मानव का पहुंचना लगभग असम्भव है और वहां कुछ खास लोगों ने किस प्रकार के दिव्य चमत्कारों को भी देखा है। कैसे आधुनिक विज्ञान और वैज्ञानिक उस अमृत की खोज के लिए प्रयास कर रहा है जिसे हमारे ऋषि-मुनियों ने युगों पहले ही प्राप्त कर लिया था। उस लेख का लिंक भी मैं यहाँ दे रहा हूँ। इसके अलावा अगले सभी लेखों का लिंक भी आप देख सकते हैं –
हिमालय के अमर प्राणियों का अस्तित्व क्या है? भाग #3
इस लेख के माध्यम से हम बात करेंगे कि कैसे, हिमालय का संपूर्ण क्षेत्र अनादि काल से सच्चे, सिद्ध योगियों एवं महान और दिव्य आत्माओं का विशेष आश्रय स्थल रहा है। इसके अलावा इस पवित्र क्षेत्र में रहने वाले महान योगियों की पसंद का कोई और या कहीं और का स्थान शायद इस भूमि पर तो हो ही नहीं सकता। ऐसा कहा जाता है कि तिब्बत के दुर्गम पहाड़ों में गंगाजल योगाश्रम है, जो योगियों के लिए एक प्रशिक्षण संस्थान है। लेकिन, यह गंगाजल योगाश्रम आम आदमी की पहुंच से परे है।
ठीक इसी प्रकार से एक अन्य आश्रम या तपोभूमि के विषय में भी यही कहा जाता है कि यह भूमि ज्ञानगंज के नाम से हिमालय के पहाड़ों में आज भी मौजूद है। ज्ञानगंज के विषय में तो हमारे पुराणों और अन्य कई गं्रथों में भी स्पष्ट रूप से पढ़ने को मिलता है। जबकि बौद्ध धर्म के अनुयायी इसी ज्ञानगंज को संगरी ला घाटी के नाम से पुकारते हैं।
चाहे आप इसे ‘ज्ञानगंज’ कहें या फिर ‘शंगरी ला’ घाटी। यह एक ऐसी जगह है जहाँ कोई वस्तु उसके संपर्क में आने पर गायब हो जाती है। अंदाजा तो यह भी लगाया जाता है कि यह घाटी तिब्बत और अरुणांचल प्रदेश की सीमा के आस-पास ही कहीं स्थित है।
इस विषय के जानकार यह भी कहते हैं कि चीन की नजर अरूणाचल पर इसीलिए है कि वह यहां के पहाड़ों में इसी ज्ञानगंज की खोज कर उसका लाभ लेना चाहता है। लेकिन, क्योंकि यह एक अदृश्य स्थान है इसलिए यदि आप वहां उस निश्चित स्थान पर पहुंच भी जायेंगे तब भी आपको वह स्थान ना तो नजर आयेगा और ना ही उसका एहसाह तक हो पायेगा।
अमेरिका की नासा एजेंसी सहीत रूस, ब्रिटेन, जर्मनी और चीन भी इस स्थान को लेकर कई बार और अलग-अलग गुप्त रूप से खोज कर चुके हैं लेकिन, वे सभी हर बार खाली हाथ ही रहे हैं। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि जब नासा के कैमरे अंतरिक्ष से उस विशेष क्षेत्र पर नजर डालते हैं तो वहां मात्र एक काला धब्बा ही नजर आता है। जबकि उस स्थान के आस-पास की सभी पहाड़ियां स्पष्ट दिखाई देती हैं। और जब कोई खोजी पर्वतारोही उस काले धब्बे वाले स्थान पर जाकर इस रहस्य की खोज करना चाहते हैं तो उन्हें वहां ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता जो कैमरे में ना आने लायक हो, या फिर किसी को भ्रमित करने वाला हो या कुछ छूपने वाला या छुपाने वाला हो।
अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, जर्मनी और चीन सहीत इन तमाम देशों के वैज्ञानिकों और पर्वतारोहियों ने भी इस खास जगह को लेकर अपने-अपने अनुभवों के आधार पर करीब-करीब एक जैसी भाषा और विचारों को व्यक्त किया है। उनका कहना है कि संभव है कि इस स्थान पर कोई विशेष दिव्य आत्माओं का वास हो।
ठीक इसी प्रकार से हिमालय क्षेत्र में आज भी प्रकृति के अनगिनत चमत्कार देखने को मिलते हैं। हजारों किलोमीटर क्षेत्र में फैले हिमालय के हजारों-लाखों ऐसे स्थान हैं जहां आज भी मानव की पहुंच नहीं हुई है। इन क्षेत्रों जहां एक ओर अनगिनत सुंदर और अद्भुत झीलें और झरनें हैं तो दुसरी ओर हजारों फुट ऊंचे पर्वतों की कोख में कई सारी गुफाएं और कई सारे हिमखंड भी हैं।
हमारे पुराणों में कहा जाता है कि हिमालय के इन्हीं दुर्गम क्षेत्रों में प्राचीन काल में देवी-देवता निवास करते थे और संभवतः आज भी वे वहीं रहते हैं। मुण्डकोपनिषद् के अनुसार हिमालय की वादियों को सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माओं का एक संघ कहा जाता है। मुण्डकोपनिषद् में यह भी बताया गया है कि सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माओं का यह केंद्र उत्तराखंड क्षेत्र में स्थित हिमालय की वादियों में कहीं पर है।
हिमालय में आज भी हजारों ऐसे स्थान हैं जिन्हें देवी-देवताओं और तपस्वियों के रहने और तप करने का सबसे विशेष स्थान माना गया है। यदि पिछले 2 से 3 हजार वर्षों का इतिहास देखें तो हिमालय क्षेत्र में सनातन धर्म के सन्यासियों के साथ-साथ अब जैन और बौद्ध धर्म के सन्यासियों और संतों ने भी यहां के कई प्राचीन मठों और गुफाओं में डेरा डाला हुआ है।
ऐसे ही कुछ प्राचीन मठों और गुफाओं तक अब पिछले कुछ वर्षों से पर्वतारोहियों और खोजी दलों की पहुंच तो हो चुकी है लेकिन, वहां उन्हें ऐसा कोई भी व्यक्ति या ऐसा कोई भी महात्मा नजर नहीं आया जो उस समय वहां उपस्थित रहा हो। पर्वतारोही इस बात से आश्चर्यचकित थे कि ऐसी कई गुफाएं उन्हें मिलीं जहां उन्हें यह महसूस हुआ कि संभवतः अभी-अभी या पिछले कुछ समय पहले तक भी वहां कोई न कोई साधक अवश्य ही उपस्थित थे या अब भी वे यहीं कहीं उनके आस-पास ही में उपस्थित हैं।
इसी बात को लेकर कुछ जानकारों का यह मानना है कि ऐसे स्थानों या गुफाओं में आज भी कई ऐसे सिद्ध तपस्वी साधनाओं में लीन हैं, जो हजारों वर्षों से तपस्या कर रहे हैं लेकिन, क्योंकि इससे उन सिद्ध तपस्वियों की साधना में बाधा उत्पन्न होती है इसलिए वे वहां जाने वाले पर्वताराहियों की नजर से अपनी तपस्या के बल पर ओझल हो जाते हैं, यानी अदृश्य हो जाते हैं। इसी सीरीज के अगले लेख का लिंक देखें – हिमालय में हजारों वर्ष की उम्र वाले कई ऋषि-मुनि आज भी जिंदा हैं – भाग #5
इस संबंध में यदि दसनामी अखाड़े और नाथ संप्रदाय से संबंधित सिद्धि प्राप्त योगियों के इतिहास का अध्ययन किया जाय तो हो सकता है कि कुछ सफलता मिल सके। क्योंकि दसनामी अखाड़े और नाथ संप्रदाय के इतिहास में आज भी यह दर्ज है कि हिमालय में कौन-सा मठ कहां पर स्थित है और कितनी गुफाओं में कितने संत विराजमान हैं। दसनामी अखाड़े और नाथ संप्रदाय से संबंधित इन संदर्भों के माध्यम से हमें यह भी जानकारी मिल सकती है कि रामायण और महाभारत काल के लोग आज भी हिमालय में क्यों और किस प्रकार से अपना जीवन जी रहे हैं।