अजय सिंह चौहान || मैंने अपने इसी सीरिज के पिछले चार लेखों में ये बताने का प्रयास किया था कि कैसे हिमालय के दुर्गम और एकांत क्षेत्रों में कुछ ऐसे ऋषि-मुनि आज भी हैं जो हजारों वर्षों से वहां तपस्या में लीन हैं, और प्रमाण के तौर पर भी बताने की कोशिश की थी कि इस उपस्थिति के क्या-क्या साक्ष्य उपलब्ध हैं। उस लेख का लिंक भी मैं यहाँ दे रहा हूँ। इसके अलावा अगले सभी लेखों का लिंक भी आप देख सकते हैं –
आज भी हिमालय में निवास करते हैं हमारे देवी-देवता – भाग #4
अब यहां इसी सीरिज के पांचवे लेख के माध्यम से हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि क्या वाकई वे ऋषि-मुनि वहां आज भी हजारों वर्षों से हैं? अगर हैं तो क्या वाकई उनकी उम्र हजार-हजार वर्ष तक की होगी? या फिर वे अमर हैं? या कोई देवता हैं? या फिर वे हम जैसे साधारण लोगों के बीच से ही वहां तक पहुंचे होंगे और अमर हो गये होंगे?
हमारा आज का जीव विज्ञान कहता है, कि किसी भी प्राणी के शरीर के विचारों और भावनाओं का केंद्र हार्मोन होते हैं। और ऐसे में अगर शरीर में हार्मोन की कमी होने लग जाये तो फिर तो उसका वह शरीर जल्दी-जल्दी थकने लग जाता है और वह जल्द ही बूढ़ा भी हो जायेगा।
कुछ जीव विज्ञानी मानते हैं कि भारतीय आयुर्वेद पद्धति में जिन कुछ प्रमुख विधियों का या इलाजों उल्लेख किया गया है उनके अनुसार यदि कायाकल्प की उन विधियों को सही-सही तरीकों से अपनाया जा सकता है तो इस तथ्य को शत प्रतिशत प्रमाणित भी किया जा सकता है कि इसे अपनाने वाला कोई भी मनुष्य लंबी आयु पा सकता है, दूसरी भाषा में कहें तो अमर हो सकता है।
वैज्ञानिकों का सीधा और साफ शब्दों में कहना है कि मृत्यु, किसी भी शरीर के जीवन जीने के तरीकों के पतन का परिणाम होता है। यानी, शरीर के अंगों की कार्यक्षमता में धीरे-धीरे कमी का आना ही सुस्ती का कारण है, और यही सुस्ती व्यक्ति को मृत्यु के करीब ले जाती है। लेकिन, यदि जीवन निर्वाह तंत्र को यानी जीवन जीने के तरीकों को, या यूं कहें कि अपनी कार्यक्षमता को स्वस्थ रखा जाता है और यदि कोशिका के नवीकरण की प्रक्रिया को बरकरार रखा जा सकता है, तो किसी भी व्यक्ति को अनंत समय तक जीवित रखा जा सकता है। क्योंकि जीन अमर होती हैं इसलिए शारीरिक मृत्यु की भी कोई अनिवार्यता नहीं है।
इसे अगर हम एक दम आसान भाषा में समझें तो ये कि सुस्ती ही व्यक्ति को मृत्यु के करीब ले जाती है, वरना शरीर का मरना कोई आवश्यक नहीं है, फिर तो आप अपने शरीर को हजारों वर्षों तक भी जीवित रख सकते हैं। इसे अगर हम इससे भी आसान भाषा में कहें तो वो ये कि अगर आप स्वस्थ रहना चाहते हैं तो सुस्ती को त्याग कर कार्य करते रहिये और अपने आप को तंदुरूस्त रखिए।
दरअसल, वैज्ञानिक पिछले कई वर्षों से मनुष्य की लंबी आयु, यानी जीवन की अमृत खोज के लिए सक्रिय रूप से लगे हुए हैं। रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, अमेरिका और भारत आदि के जीव विज्ञानी लंबे समय से मानव की उम्र बढ़ने वाले विषय पर शोध कर रहे हैं। इन जीव विज्ञानियों ने अपनी खोज को इस बिंदू पर केन्द्रित किया है कि आखिर मनुष्य का शरीर मरता क्यों है?
इस विषय पर चल रही तमाम शोध के कुछ शुरूआती और अब तक के नतीजों के आधार पर, वैज्ञानिकों ने एक हैरान कर देने वाला निष्कर्ष निकाला है कि मनुष्य के शरीर की मृत्यु एक अनिवार्य घटना नहीं है। बल्कि, यह तो एक तरह की बीमारी है जिसका इलाज किया जा सकता है और इसे टाला भी जा सकता है। जीव विज्ञानी ये भी मानने लगे हैं कि अगर इसके लिए एक इलाज ढूंढना संभव है, तो हर एक व्यक्ति कम से कम एक हजार वर्षों तक भी बहुत आसानी से जीवित रह सकता है।
ये तो हुई विज्ञान की बात। अब हम आयुर्वेद की बात करते हैं। यानी इस विषय पर हमारी आयुर्वेद पद्धति क्या कहती है?
आयुर्वेद शास्त्र कहता है कि, आज के तमाम तरह के प्रदूषणों से भरे दौर में भी एक साधारण मनुष्य की औसत आयु लगभग 125 वर्ष तक हो सकती है। लेकिन, अगर वह चाहे तो इसे अपने योगबल से इसे 150 से भी अधिक वर्षों तक ले जा सकता है। आयुर्वेद शास्त्र यहां ये भी कहता है कि प्राचीन मानव की सामान्य उम्र 350 से 400 वर्षों तक हुआ करती थी। लेकिन, क्योंकि उस दौर में धरती का वातावरण और जलवायु भी एक आम व्यक्ति को इतने वर्षों तक जीवित रखने के लिए एकदम योग्य हुआ करता था।
इसी विषय को लेकर जब मैंने, गुगल पर कुछ लेख और दस्तावेज खोजने का प्रयास किया तो मुझे एक आश्चर्यचकित कर देने वाली ऐसी जानकारी भी मिली जिसमें यह दावा किया गया है कि प्राचीन काल के लोग मात्र 1 हजार या 5 हजार वर्षों तक ही नहीं बल्कि 84 हजार वर्षों तक भी जिंदा रहने के नुस्खे जानते थे।
हालांकि यह बात कहां तक सच है इसको फिलहाल तो कोई साबित नहीं कर सकता। लेकिन, इंदौर के रहने वाले श्री नरेंद्र चैहान जी के पास एक ऐसी ही पांडुलिपि यानी एक हस्तलिखित किताब है जिसमें यह बात कही गई है।
इतना तो सभी जानते हैं कि हमारे वैदिक और पौराणिक युग के कई ग्रन्थ और रामायण या फिर महाभारत के अनुसार राजा बलि, परशुराम, हनुमान, विभीषण, मार्कण्डेय ऋषि, अश्वत्थामा, ऋषि व्यास और कृपाचार्य के अलावा ऐसे और भी कई व्यक्ति हुए हैं जिनके बारे में माना जाता है कि वे आज भी जीवित हैं और इसी धरती पर विचरण कर रहे हैं।
इसके अलावा महाभारत के ही एक मुख्य पात्र पितामह भीष्म की लंबी आयु के विषय में भी यही कहा जाता है कि उन्होंने भी अपनी शारीरिक क्षमता और शक्तियों को इस हद तक जागृत कर लिया था कि जब वे चाहेंगे तभी उनकी मृत्यु हो सकेगी, और हुआ भी ठीक वही।
यहां हम सभी एक पौराणिक साक्ष्य के तौर पर यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि रामायण काल के परशुराम, हनुमान और जामवंत का उल्लेख महाभारत काल में भी कई स्थानों पर आता है। इसका अर्थ तो यही हुआ कि यह 100 प्रतिशत तक संभव है कि यदि कोई व्यक्ति चाहे तो वह हजारों वर्षों तक जीवित रह सकता है।
अब अगर हम उदाहण के तौर पर आज-कल की ही दिनचर्या को ही देखें तो आजकल शहरों में रहने वाले आम लोग करीब-करीब 50 वर्ष की औसत उम्र के बाद हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज जैसी कई सारी बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। लेकिन, अगर यही 50 वर्ष की औसत उम्र के उन ग्रामीण और दूर-दराज के किसी देहाती इलाके में रहने वाले लोगों को देखें तो उनमें इस प्रकार की बीमारियां बहुत ही कम या फिर ना के बराबर पाई जाती है।
आज के ग्रामीण लोगों के मुकाबले शहरी आबादी में बीमारियों की भरमार के पीछे का कारण क्या है ये शायद बताने की जरूरत नहीं है। और इन सब का परिणाम यही होता है कि एक आम शहरी व्यक्ति के मुकाबले ग्रामीणों की औसत आयु आज भी हमारे देश में या फिर किसी भी दूसरे देश के दूरदराज के क्षेत्र के लोगों में अधिक ही देखी जाती है।
आयुष्मान भवः, चिरंजीवि भवः, अमृत और अमर जैसे शब्दों का महत्व – भाग #6
तो, इसी सीरिज के अगले लेख (अमृत, अमर और आयुष्मान भवः, चिरंजीवि भवः जैसे शब्दों का महत्व) के भाग #6 में, मैंने ये बताने का प्रयास किया है कि उदाहरण के रूप में कैसे आज भी कोई लंबी आयु के लिए कोशिश कर सकता है। जरूरी नहीं है कि उन कोशिशों से आपको 500 या 700 सालों तक जीने को मिल जाये। लेकिन, इतना तो हो ही सकता है कि कम से कम एक औसत आयु से आप कहीं अधिक भी जी सकते हैं। कुछ लोग तो अब भी जी रहे हैं और उनके उदाहरण भी हमारे सामने हैं।