अजय सिंह चौहान || अगर हमें उत्तराखण्ड राज्य में स्थित ‘पंच केदार’ (Panch Kedar Yatra) यानी पांच अलग-अलग शिव मंदिरों की यात्रा पर जाना हो और पांचों ही मंदिरों के दर्शन एक साथ, एक ही बार की यात्रा में करना हो तो उसके लिए हमें किस प्रकार से प्लानिंग करनी होगी?, किस प्रकार से तैयारी करनी होगी?, क्या पांचों केदार के दर्शन एक ही बार में आसानी से हो जायेंगे? या फिर इसमें कोई परेशानी आ सकती है?, कितनी यात्रा पैदल चलकर करनी होती है? और इसके लिए कौन-कौन से रूट से आना-जाना करना होगा?, रात को कहां-कहां ठहरा जा सकता है?, कितने दिन लग सकते हैं? और कितना खर्च लग सकता है?, बस से जाना ज्यादा अच्छा रहेगा कि टैक्सी से? वगैरह-वगैरह…।
तो पंच केदार (Panch Kedar Yatra) की इस यात्रा पर जाने से पहले ध्यान रखना होगा कि देवभूमि उत्तराखण्ड एक पहाड़ी राज्य है और पंच केदार के पांचों मंदिर इस प्रदेश के जिस हिस्से में मौजूद हैं वो संपूर्ण क्षेत्र ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों वाला एक दुर्गम हिस्सा है। इसलिए शत-प्रतिशत यात्रा यहां के पहाड़ों में घुमावदार और ऊंचे-निचे रास्तों से ही होती है।
इसके अलावा दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यहां एक और भी ध्यान रखनी होगी कि पंच केदार (Panch Kedar Yatra) की इस संपूर्ण यात्रा के दौरान रास्ते में कई बार मोबाइल टाॅवर के सिग्नल भी आपके साथ लुका-छिपी खेलता हुआ दिखेगा।
लेकिन, इन सबसे अलग और सबसे खास बात ध्यान रखने वाली ये होती है कि आप अपनी इस पंच केदार (Panch Kedar Yatra) की लंबी और थका देने वाली यात्रा में कम से कम 13 से 14 साल की उम्र से छोटे बच्चों को तो बिल्कुल भी ना ले कर जायें, और हां 65 या 70 वर्ष से अधिक आयु के ऐसे बुजुर्ग जो अक्सर बीमार रहते हैं उनको भी इस यात्रा से दूर ही रखें। क्योंकि यह एक बहुत ही दुर्गम और थका देने वाली पहाड़ी यात्रा है और इसमें बच्चे या बुजुर्ग बीमार भी पड़ सकते हैं, जिसके कारण आपकी यात्रा भी पुरी नहीं हो पायेगी और आपका बजट भी बिगड़ सकता है और यात्रा का आनंद भी नहीं ले पायेंगे।
यहां मैं एक-एक करके उन सारी बातें को विस्तार से बताने का प्रयास करूंगा जिससे कि आपको पंच केदार की इस यात्रा को करने में बहुत आसानी हो जायेगी और साथ ही साथ बजट भी ज्यादा नहीं आयेगा और आप इस यात्रा का भरपूर आनंद भी ले पायेंगे।
तो सबसे पहले तो यहां हमें इस बात की जानकारी भी होनी चाहिए कि पंच केदार (Panch Kedar Temple Name) में वो कौन-से पांच महादेव मंदिर हैं जिनके दर्शन करने के लिए हमें जाना है। तो पंच केदार में सबसे पहले नाम आता है –
1. केदानाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर का –
2. दूसरा नाम आता है मध्यमहेश्वर महादेव मंदिर का –
3. तीसरा तुंगनाथ महादेव मंदिर का –
4. चैथा है रूद्रनाथ महादेव मंदिर, और
5. कपिलेश्वर या कल्पेश्वर महादेव मंदिर।
तो ये वो पांच मंदिर हैं जिनके दर्शन करने के लिए हमको इसी क्रम से जाना है और इसी क्रम के अनुसार दर्शन भी करेंगे। यानी कि एक से लेकर पांच तक एक-एक करके दर्शन करेंगे और साथ ही साथ हम ये भी जानेंगे कि किस दिन आपको कहां जाना है और किस दिन कहां पहुंचना है और रात को कहां-कहां ठहरना है।
तो सबसे पहले तो ध्यान रखना है कि आप देश के किसी भी शहर या किसी भी राज्य के रहने वाले हैं, जब आप अपने शहर से इस यात्रा की शुरूआत करेंगे तो पंच केदार की इस यात्रा के लिए आपको उत्तराखण्ड राज्य के हरिद्वार या फिर देहरादून तक पहुंचना है।
वैसे यहां मैं ये बता दूं कि उत्तराखण्ड राज्य में पड़ने वाली ‘पंच केदार यात्रा’ हो या फिर ‘चार धाम यात्रा’ हो या फिर आपको ‘हेमकुण्ड साहिब की यात्रा’ में ही क्यों न जाना हो, इन सभी यात्राओं के लिए हरिद्वार से ही शुरूआत होती है इसलिए हरिद्वार को इन प्रवित्र यात्राओं का ‘प्रवेश द्वार’ कहा जाता है।
आप चाहे बस में आ रहे हैं, ट्रेन से या फिर हवाई जहाज से, हरिद्वार और देहरादून से आगे आपको सड़क के रास्ते ही यात्रा करनी होती है। आगे की इस यात्रा के लिए यहां से हर प्रकार की ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा मिल जाती है, फिर चाहे आप यहां से रोडवेज की बस में यात्रा करें, मिनी बस में, शेयरिंग जीप में या फिर टैक्सी से।
इस यात्रा के लिए हम हरिद्वार से शुरूआत करते हैं। हरिद्वार पहुंच कर अगली सुबह जितना जल्दी हो सके अपनी आगे की यात्रा के लिए ट्रांसपोर्टेशन का बंदोबस्त कर लेना चाहिए। हरिद्वार का रेलवे स्टेशन और बस अड्डा, दोनों ही एक दम आस-पास में बने हुए हैं। और यहीं पर आपको ढेरों ट्रेवल एजेंसियां और ट्रेवल एजेंट्स भी मिल जायेंगे। हरिद्वार के बस अड्डे पर ही इस यात्रा के लिए आपको बजट के अनुसार ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा में रोड़वेज बस, मिनी बस, शेयरिंग जीप या फिर टैक्सी आदि आसानी से मिल जाती है।
सबसे पहले यहां ये भी जान लें कि उत्तराखण्ड एक पहाड़ी राज्य है और पंच केदार (Panch Kedar Yatra) के ये पांचों मंदिर हों या फिर चार धाम की यात्रा या फिर हेमुकुण्ड साहिब जाना हो। ये सभी मंदिर और सभी धाम दुर्गम पहाड़ियों में स्थित हैं इसलिए यहां जाने के लिए सभी यात्रियों को यहां की दुर्गम पहाड़ी रास्तों से होकर जाना होता है। ऐसे में यहां इस बात का भी ध्यान रखें कि यदि इस यात्रा में आप तय समय से एक या दो दिन अतिरिक्त मान कर ही चलें और साथ ही साथ आपका यात्रा बजट यानी कि खर्च भी अधिक लग सकता है। इसके अलावा, यहां के मौसम में आपको परेशानी भी हो सकती है।
पहले दिन की यात्रा –
पंच केदार की इस यात्रा के लिए क्रम अनुसार हम सबसे पहले निकलेंगे केदारनाथ के ज्योतिर्लिंग मंदिर के लिए।
तो पंच केदार की इस पहले दिन की यात्रा की शुरूआत में हम सड़क के रास्ते बस या टैक्सी द्वारा हरिद्वार से चलकर पहुंचेंगे सोनप्रयाग। सोन प्रयाग उत्तराखण्ड राज्य के जिला रूद्रप्रयाग का एक छोटा सा शहर या कस्बा है जो समुद्रतल से करीब 1,830 मीटर की ऊंचाई पर स्थीत है।
हरिद्वार से सोनप्रयाग के बीच की ये दूरी करीब 235 किमी है और इस दूरी में करीब-करीब 8 से 9 घंटे का समय लग जाता है और इसमें रोडवेज बस का किराया करीब 540 रुपये तक लगता है। सोनप्रयाग से आगे बसें नहीं जातीं।
दूसरे दिन की यात्रा –
क्योंकि यह एक पहाड़ी क्षेत्र की यात्रा है इसलिए यहां 8 से 9 घंटे के लंबे सफर के बाद आप काफी थक चुके होंगे, इसलिए सोन प्रयाग में उस दिन आराम करेंगे और अगली सुबह यानी कि इस यात्रा के दूसरे दिन में आप सोनप्रयाग से गौरी कुण्ड के लिए जायेंगे।
सोन प्रयाग से निकलने से पहले यहां इस बात का ध्यान रखें कि आप अपने साथ जो सामान लाये हैं उसमें से कुछ जरूरी सामान और दवाईयां आदि निकालकर एक बैकपैक में यानी कि अपने पिठ्ठू बैग में डालकर अपने साथ रख लिजीए और बाकी का सामान यहीं सोन प्रयाग में किसी लाॅकर में रखवा दीजिए। ऐसा इसलिए क्योंकि केदारनाथ की इस पैदल यात्रा में आप इतना सारा सामान साथ लेकर नहीं जा सकेंगे।
यहां एक खास बात का ध्यान रखना होता है कि बैकपैक, यानी कि अपने पिठ्ठू बैग को अगर आप अपनी पीठ पर टांग कर अपने दोनों ही हाथ फ्रि रख कर चलेंगे तो ज्यादा परेशानी नहीं होने वाली है इसलिए ज्यादातर यात्री अपने बैकपैक का यानी कि अपने पिठ्ठू बैग के सहारे ही इस यात्रा को आराम से तय कर पाते हैं।
जागेश्वर धाम- कब जायें, कैसे जायें, कहां ठहरें, कितना खर्च होगा? | Jageshwar Dham Tour
तो अगली सुबह यानी कि दूसरे दिन आप जल्दी उठिए और सोन प्रयाग से करीब 5 किमी और आगे, यानी कि गौरी कुण्ड के लिए शेयरिंग में चलने वाली जीप में बैठ जायें। क्योंकि गौरी कुण्ड ही वो स्थान है जहां से केदानाथ मंदिर के लिए पैदल यात्रा करनी होती है। करीब 5 किमी की इस यात्रा में शेयरिंग में चलने वाली वहां की लोकल सवारी जीप या सूमों में आपको करीब 25 से 30 रुपये किराया देना होता है।
तो आप गौरी कुण्ड पहुंचिए और वहां से अपनी पैदल यात्रा प्रारंभ कीजिए।
गौरी कुण्ड से बाबा केदानाथ मंदिर के लिए करीब 16 किमी की पैदल यात्रा करनी होती है। ऐसे में अगर आप यहां पैदल यात्रा नहीं करना चाहते तो यहां आपके लिए घोड़े या खच्चर का ऑप्शन भी मिल जाता है। लेकिन, ध्यान रखें कि घोड़े या खच्चर से यात्रा करने पर आपका बजट बहुत ज्यादा बिगड़ सकता है।
तो गौरीकुण्ड से आप अपनी पैदल यात्रा की शुरूआत कीजिए और 16 किमी की चढ़ाई में आपको केदानाथ मंदिर तक पहुंचते-पहुंचते शाम के लगभग 4 बज जायेंगे।
यानी कि इस यात्रा के दूसरे दिन आप केदानाथ मंदिर पहुंच जायेंगे। यदि आप चाहें तो सीधे दर्शन करने पहुंच सकते हैं या फिर रात को वहीं ठहर कर अगली सुबह यानी तीसरे दिन दर्शन कीजिए और फिर वापस गौरी कुण्ड के लिए पैदल यात्रा की शुरूआत कर दीजिए।
तीसरे दिन की यात्रा –
तीसरे दिन की इस पंच केदार (Panch Kedar Yatra) यात्रा में आपको केदानाथ धाम मंदिर के दर्शन करने के बाद गौरी कुण्ड होते हुए वापस सोन प्रयाग में ही आना होता है। तीसरे दिन की इस यात्रा में आप लगभग 2 से 3 बजे तक आराम से सोन प्रयाग पहुँच जायेंगे, और सोन प्रयाग से लाॅकर में रखा अपना सामान उठाइये और निकलिए पंच केदार महादेव के दूसरे केदार के लिए, यानी कि मदमहेश्वर महादेव मंदिर के लिए जो है उत्तराखण्ड के दूसरे जिले गढ़वाल में।
ध्यान रखें कि सोन प्रयाग के बस स्टैण्ड से मदमहेश्वर जाने के लिए बस में बैठकर आपको करीब 45 किमी दूरी तय करनी होती है, तब आता है उखीमठ। उखीमठ में उतरने के बाद भी करीब 20-22 किमी की आगे की यात्रा के लिए रान्सी गांव के लिए एक अलग रूट कट जाता है।
बस के द्वारा जब आप सोन प्रयाग से उखीमठ पहुंचते हैं और यहां से रान्सी के लिए करीब 20-22 किमी की आगे की यात्रा के लिए रान्सी गांव के लिए एक अलग रूट लेते हैं तो उसके लिए आपको यहां उखीमठ से स्थानीय जीप या टैक्सी की शेयरिंग वाली सुविधा ही मिलेगी। शेयरिंग टैक्सी वाला आपसे एक सवारी के हिसाब से यहां करीब-करीब 90 से 100 रुपये तक लेगा और रान्सी गांव में छोड़ देगा। अगर आप यहां पूरी टैक्सी बुक कराते हैं, और आपके साथ 5 या 6 लोग हैं तो वे लोग यहां इस 20 -22 किमी की यात्रा तय करने में कम से कम 1,000 रुपये भी ले सकते हैं।
तो पंच केदार (Panch Kedar Yatra) में से एक यानी मदमहेश्वर मंदिर की इस यात्रा के लिए सड़क के रास्ते रान्सी गांव तक ही पहुंचा जा सकता है। रान्सी गांव से आगे करीब 16 किमी मदमहेश्वर मंदिर तक की दूरी पैदल चलकर ही पार करनी पड़ती है।
कौन कहता है अमरनाथ यात्रा में ‘पिस्सू टाप की चढ़ाई’ आसान है!
लेकिन, क्योंकि रान्सी में आते-आते आपको शाम हो जाती है। ऐसे में आप इस यात्रा को नहीं कर सकते इसलिए रात को रान्सी में ही ठहरना होता है। रान्सी एक छोटा-सा पहाड़ी गांव है इसलिए यहां पर्यटक बहुत ही कम आते हैं, लेकिन, मदमहेश्वर जाने वाले यात्रियों का आना-जाना लगा रहात है। इसलिए स्थानीय सरकार ने यहां तीर्थ यात्रियों के हिसाब से कोई खास या बहुत अच्छी सुविधाएं नहीं दी हुई हैं।
रान्सी में आपको दो या तीन प्राइवेट होटल ही देखने को मिलते, इसलिए होम स्टे की व्यवस्था भी अच्छी लगती है, और होम स्टे के दौरान यहां ये भी अनुभव होता है कि यहां के लोग काफी पोलाइट यानी नम्र स्वभाव के हैं इसलिए आपको यहां किसी भी तरह की कठिनाई नहीं होते देंगे।
रान्सी में आपको होम स्टे या होटल में 200 या 300 रुपये से शुरू होकर 500 रुपये तक में स्टे करने के लिए आराम से कमरे मिल जाता है। रान्सी में भोजन व्यवस्था की बात करें तो यहां दाल, चावल, पराठा, रोटी और एक या दो सब्जी जैसा साधारण और शुद्ध शाकाहारी और स्वादिष्ट भोजन का आनंद कुछ अलग ही होता है। उससे भी मजेदार बात ये है कि ये भोजन आपको 100 रुपये से लेकर 150 रुपये तक में भरपेट मिल जाता है। ध्यान रखें कि यहां के गांव बहुत ही रिमोट वाले गांव हैं इसलिए यहां हाई-फाई सुविधाएं नहीं मिलने वाली हैं।
चैथे दिन की यात्रा –
तो चैथे दिन की इस मदमहेश्वर यात्रा में रान्सी से सुबह जल्दी उठकर आपको करीब 16 किमी की ये पैदल यात्रा शुरू करनी है। इस यात्रा में भी आपको ध्यान रखना है कि अपने साथ सिर्फ बहुत जरूरी सामान वाला एक बेकपैक यानी कि काॅलेज बेग या पीट्ठू बैग, यानी पीठ पर टांगने वाला बेग लेकर ही चलना है। अपना बाकी सामान आप यहां रान्सी में होम स्टे या होटल में ही छोड़ कर जायें। आपका सामान एक दम सुरक्षित रहेगा।
अगर आप यहां इस 16 किमी के मदमहेश्वर ट्रेक को पैदल नहीं चलना चहते हैं तो यहां आपको घोड़े और खच्चर भी मिल जाते हैं और घोड़े और खच्चर वाले यहां इस यात्रा में सिर्फ एक तरफ का किराया कम से कम 2500/- रुपये तक लेते हैं।
बहुत बड़ा फर्क है अमरनाथ और मणिमहेश यात्रा में !
तो जब आप रान्सी से अगली सुबह मदमहेश्वर के लिए अपनी ट्रेकिंग शुरू करते हैं तो शाम होते-होते आप मदमहेश तक पहुंच जायेंगे। यह ट्रेक भी खतरनाक पहाड़ियों वाला है इसलिए यहां आपको आराम से और संभलकर चलना होता है।
करीब 16 किमी के इस मदमहेश्वर ट्रैक में जब आप सुबह से शाम तक चलेंगे तो आपको यहां कई जगहों पर रूकने के लिए भी व्यवस्था मिलेगी, छोटे-छोटे ढाबे भी मिलेंगे और टी स्टाॅल भी देखने को मिलेंगे। और ये सब मिलेंगे इस ट्रैक में आने वाले उन छोटे-छोटे गांवों में।
अगर आपको लगता है कि आप मदमहेश्वर ट्रेक में थक चुके हैं और आज यहीं आराम करना चाहते हैं तो इस ट्रेक के रास्ते में जो भी नजदीकी गांव होगा वहां पर आप रूक सकते हैं। क्योंकि यहां के हर गांव में दर्शनार्थियों के लिए रूकने की ‘होम स्टे’ वाली व्यवस्था है। इसमें वे लोग आपसे 300 रुपये से लेकर 500 रुपये तक प्रति व्यक्ति का खर्च लेते हैं और इसी खर्च में भोजन की भी व्यवस्था हो जाती है।
लेकिन, अगर आप रूकना नहीं चाहते हैं तो यात्रा जारी रखिए और शाम तक मदमहेश पहुंच जाइए। शाम के करीब 4 बजे तक मदमहेश ट्रैक आराम से पूरा कर आप दर्शन करीए। और शाम 6 बजे की आरती का भी आनंद लिजीए और रात को वहीं मंदिर के पास ही में आराम करिए। मदमहेश में भी आपको 10 से 15 छोटे-छोटे होटल दिख जायेंगे। इसके अलावा अगर आपका मन वहां होम स्टे का है तो वहां भी आप स्टे कर सकते हैं।
मदमहेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखण्ड के गढ़वाल क्षेत्र के रुद्रप्रयाग जिले में आता है जो समुद्रतल से करीब 3,417 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मान्यता है कि यहां भगवान शिव की नाभि की पूजा होती है।
यात्रा से जुडी विशेष चेतावनी: – यात्रा प्रारंभ करने से पहले ध्यान रखें कि किसी भी धार्मिक यात्रा में होने वाले अनुमानित खर्च को थोड़ा-सा अधिक या लगभग-लगभग बताने का प्रयास किया जाता है। लेकिन, क्योंकि किसी भी यात्रा में खर्च कम-ज्यादा होता रहता है और इसमें कोई निश्चित भी नहीं है कि कहां कितना खर्च लग सकता है इसलिए हमें यह मान कर चलना चाहिए कि यात्रा के बजट में थोड़ी-बहुत बढ़ौतरी हो सकती है। साथ ही साथ परिस्थितियों के अनुसार एक या दो दिन अतिरिक्त भी लग सकते हैं।
पांचवे दिन की यात्रा –
पांचवे दिन जब आप मदमहेश्वर महादेव मंदिर से सुबह जल्दी वापसी करते हैं तो दोपहर के करीब दो बजे तक आराम से उसी रान्सी गांव में पहुंच जाते हैं। रान्सी गांव से अपना बाकी सामान लेने के बाद आपको फिर से टैक्सी द्वारा उखीमठ आना होता है। यहां ध्यान रखें कि उखीमठ में टैक्सी से उतरने के बाद यहीं से आपको इस बार चोपता के लिए बस या फिर टैक्सी में बैठना है और चलना है पंच केदार के तीसरे महादेव यानी तुंगनाथ महादेव मंदिर के दर्शन करने के लिए।
उखीमठ से चोपता के बीच की यह दूरी करीब 45 किमी है, और यह दूरी करीब ढेढ़ से दो घंटे में आराम से पार हो जाती है। चोपता से ही आपको तुंगनाथ महादेव के लिए ट्रैकिंग शुरू करनी होती है। लेकिन, क्योंकि चोपता में आते-आते शाम हो जाती है इसलिए रात को चोपता में ही आराम करना होता है।
उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले में स्थित चोपता समुद्र तल से करीब 2,710 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चोपता का प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों को बहुत आकर्षित करता है इसलिए यह उत्तराखण्ड का स्वीटजरलैंड कहा जाता है और यही कारण है कि यह एक प्रसिद्ध पर्यटन केन्द्र बन चुका है, जिसके कारण यहां आपको अब कुछ अच्छे और ढेर सारे होटल देखने को मिल जायेंगे जिनमें 400 रुपये से लेकर 1500 रुपये तक में बहुत अच्छे कमरे मिल जाते हैं।
छठवें दिन की यात्रा –
तो, इस यात्रा के पांचवे दिन हम उत्तराखण्ड के चोपता विलेज में पहुंच चुके थे और यहीं पर हमने रात को विश्राम भी किया था। चोपता में अपना पांचवा दिन गुजारने के बाद, पंच केदार के तीसरे महादेव यानी तुंगनाथ महादेव मंदिर के लिए छठवें दिन की इस पवित्र यात्रा के लिए अगली सुबह जितना जल्दी हो सके उठ जाना चाहिए और तुंगनाथ मंदिर की ओर ट्रेकिंग शुरू कर देनी चाहिए।
तुंगनाथ मंदिर चोपता से मात्र 4 किमी की दूरी पर ही है इसलिए अच्छी बात ये है कि यहां यात्रियों को बहुत लंबी या ज्यादा थका देने वाली ट्रेकिंग नहीं करनी पड़ती है। मात्र 4 किमी की यह ट्रैकिंग आराम से करीब 3 घंटे में पूरी कर तुंगनाथ मंदिर पहुंच सकते हैं। तुंगनाथ जी के इस ट्रैकिंग मार्ग में भी यात्रियों को टी-स्टाॅल और ढाबे देखने को मिल जायेंगे।
तो करीब 3 घंटे की इस ट्रैकिंग के बाद तुंगनाथ केदार मंदिर पहुँच जाते हैं। वहां पहुंचकर बड़े ही आराम से महादेव जी के दर्शन करना है, वहां के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाना है और कुछ देर बाद उसी रास्ते से वापस चोपता के लिए आ जाना है।
पंच केदार (Panch Kedar Yatra) मंदिरों में भगवान शिव का यह तुंगनाथ केदार मंदिर तीसरे स्थान पर पूजा जाता है। यह मंदिर समुद्रतल से करीब 3,460 मीटर की ऊंचाई पर है जो पंच केदारों में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित मंदिर है। इस मंदिर की स्थापना पांडवों के द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए की गई थी। पौराणिक तथ्यों के अनुसार, तुंगनाथ जी के इस मंदिर में भगवान शिव के हृदय और बाहों की पूजा होती है।
तो ये तो रहा पंच केदार के तीसरे महादेव यानी तुंगनाथ केदार मंदिर की छठवें दिन की इस पवित्र यात्रा का विवरण।
यहां हम बता दें कि क्योंकि चोपता एक टूरिस्ट प्लेस है इसलिए पर्यटकों के साथ-साथ कुछ श्रद्धालु भी चोपता में आकर एक-दो दिन ज्यादा रूकना पसंद करते हैं। लेकिन, फिलहाल हम यहां सिर्फ और सिर्फ पंच केदार की इस यात्रा के बारे में ही बात कर रहे हैं इसलिए हम यहां से आगे की यात्रा के बारे में ही सोचेंगे।
सातवें दिन की यात्रा –
और अब हम बात करेंगे सातवें दिन की इस पंच केदार (Panch Kedar Yatra) यात्रा के चौथे केदार मंदिर, यानी रूद्रनाथ केदार मंदिर के बारे में। चोपता में रात गुजारने के बाद अगली सुबह जल्दी उठ कर, सातवें दिन की यात्रा के लिए आप चोपता से ही बस पकड़िये और निकल जाइये रूद्रनाथ केदार महादेव मंदिर के लिए। चोपता से चलने के बाद रूद्रनाथ महादेव के लिए आपको उतरना होगा गोपेश्वर कस्बे में।
चोपता से गोपेश्वर कस्बे के लिए आपको सरकारी और प्राइवेट, दोनों ही बसें मिल जायेगी। आप चाहे तो यहां से शेयरिंग जीप भी ले सकते हैं। चोपता से गोपेश्वर कस्बे की ये दूरी करीब 90 किमी है, और सरकारी बस में इसका किराया करीब 100 रुपये और प्राइवेट बस में करीब 120 से 130 रुपये तक लग जाता है। लेकिन टैक्सी वाले इन सबसे थोड़ा अधिक ही किराया ले लेते हैं।
90 किमी की इस दूरी को पार करने में करीब-करीब 4 घंटे तक का समय लग जाता है। यानी अगर आप चोपता से सुबह 7 बजे भी निकलते हैं तो सातवें दिन की इस यात्रा में आप आराम से 11 से 12 बजे तक गोपेश्वर कस्बे तक पहुंच जाते हैं।
गोपेश्वर कस्बे से आपको आना है सग्गर गांव के लिए जहां से इस यात्रा की पैदल ट्रैकिंग शुरू होती है।
गोपेश्वर से सग्गर आने के लिए बसों की सुविधा नहीं है, लेकिन, यहां पर लोकल टैक्सी यूनियन वाले अपना खुद का ऑटो और टैक्सी चलाते हैं। इसलिए यहां गोपेश्वर कस्बे से आपको ऑटो या टैक्सी में बैठना है और जाना है करीब 3 किमी दूर सग्गर गांव में। इस 3 किमी की दूरी का किराया एक सवारी का लगता है करीब 30 से 40 रुपये।
इसी सग्गर गांव से आपको पंच केदार में से एक श्री रूद्रनाथ मंदिर के लिए अपनी ट्रैकिंग यानी पैदल यात्रा शुरू करनी होती है।
क्योंकि आपके पास यहां अभी आधे दिन का समय बचता है इसलिए आपको यहां सग्गर पहुंचते ही सबसे पहले अपना सामान लाॅकर में रखकर उसमें से कुछ जरूरी सामान साथ लेने के बाद अपने बैकपैक में यानी की पिट्ठू बैग में डालकर अपनी पैदल यात्रा प्रारंभ कर देनी चाहिए।
रूद्रनाथ मंदिर की इस करीब 18 लंबी ट्रैकिंग यानी इस पैदल यात्रा में चढ़ाई करते समय करीब लगभग 6 से 7 घंटे लग जाते है। और सातवें दिन की इस यात्रा में भी आपको अपने साथ रखना होगा मात्र एक छोटा पिट्ठू बैग, यानी बैक पैक जिसमें आपका कुछ जरूरी सामान और कुछ ऐसी दवाईयां जो जरूरत पड़ने पर काम आ सके। बाकी का सामान आपको यहीं सग्गर में ही किसी लाॅकर में रखना पड़ता है।
कैदारनाथ यात्रा की तैयारी कैसे करें? | Kedarnath Yatra Complete Travel Guide
सग्गर से रूद्रनाथ महादेव मंदिर के बीच का यह टैªकिंग मार्ग करीब 18 किमी का है जो पंच केदार में सबसे लंबा और सबसे कठीन भी माना जाता है। सग्गर से ट्रैकिंग शुरू करने के बाद जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते जायेंगे करीब 5 किमी आगे जाने के बाद आपको मिलेगा पुंग बुग्याल।
पुंग बुग्याल एक छोटा सा गांव है और वहां पर 9 या 10 छोटे-छोटे होटल भी देखने को मिल जाते हैं। वैसे तो यहां ज्यादा भीड़ होती नहीं है, फिर भी यदि भीड़ अधिक होती है तो होम स्टे की भी सुविधाएं उपलब्ध हैं। रात को ठहरने और साथ में भोजन के लिए 300 रुपये से लेकर 600 रुपये तक में कमरे और होम स्टे की सुविधाएं दी जाती हैं।
रूद्रनाथ मंदिर की यह यात्रा इन पांचों यात्राओं में सबसे ज्यादा कठीन और दुर्लभ यात्रा कही जा सकती है। क्योंकि इस ट्रैक में यात्रियों को काफी थकान हो जाती है। लेकिन, हर-हर महादेव के जयकारे लगाते-लगाते पता ही नहीं चलता कि कब वे इस रास्ता को भी आराम से पार कर लेते हैं।
आठवें दिन की यात्रा –
तो आठवें दिन की अगली सुबह आपको पुंग बुग्याल गांव से अपनी यह यात्रा फिर से शुरू कर देनी है और रूद्रनाथ महादेव के दर्शन करने के लिए निकल पड़ना है। भगवान भोलेनाथ के जयकारे लगाते हुए आप जैसे-जैसे आगे बढते जायेंगें पता ही नहीं चलेगा कि कब आप रूद्रनाथ महादेव के मंदिर के सामने पहुंच जायेंगे।
रूद्रनाथ मंदिर पहुंच कर आप आराम से दर्शन करने के बाद रात में वहीं पर आराम भी कर सकते हैं। भगवान रूद्रनाथ केदार जी के इस मंदिर के पास ही में कुछ होटल बने हुए हैं। इसके अलावा यहां आवश्यकता पड़ने पर स्थानिय ग्रामिणों ने भी होम स्टे के तौर पर सुविधा दी हुई है। इन होटलों और होम स्टे में भी करीब 400 से लेकर 600 रुपये तक में आराम से कमरे मिल जाते हैं। यहां भोजन की भी अच्छी सुविधा उपलब्ध है।
भगवान रूद्रनाथ जी का यह मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले में आता है जो समुद्र तल से करीब 3,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पंच केदार में से एक इस मंदिर में भगवान शिव के मुख की पूजा होती है।
तो आठवें दिन की इस यात्रा में आपको होते हैं पंच केदार के चैथे मंदिर, यानी रूद्रनाथ महादेव मंदिर के दर्शन।
नवें दिन की यात्रा –
नवें दिन की इस पंच केदार यात्रा में आप यहां से यानी रूद्रनाथ महादेव मंदिर से सुबह करीब 6 से 7 बजे बजे के बीच गोपेश्वर कस्बे की ओर वापसी के लिए निकलते हैं तो लगभग 18 किमी की इस यात्रा में यानी वापसी की ट्रैकिंग में फिर से लगभग 6 से 7 घंटे लग जायेंगें। इसलिए आपको वापसी करने के बाद गोपेश्वर में आकर इस यात्रा के नवें दिन की रात को आराम करना होता है।
दसवें दिन की यात्रा –
पंच केदार से जुड़ी दसवें दिन की इस यात्रा में आपको गोपेश्वर से पांचवे महादेव मंदिर की ओर यानी कि कपिलेश्वर महादेव मंदिर के लिए प्रस्थान करना होता है। यहां भी गोपेश्वर कस्बे से कपिलेश्वर महादेव मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले रोडवेज की बस या फिर टैक्सी पकड़नी है और पहुंचना होता है चमोली।
श्री हेमकुंड साहिब की यात्रा पर जाने से पहले की जानकारीः भाग-1
यहां ध्यान रखना होगा कि चमोली के बस स्टेण्ड से दो अलग-अलग रूट की बसें चलतीं हैं, जिनमें से एक रूट की बसें हमको कपिलेश्वर महादेव की तरफ ले जाती हैं और दूसरे रूट की बसें जाती हैं बद्रीनाथ धाम के लिए।
लेकिन, क्योंकि हमें पंच केदार की इस यात्रा में पांचवे केदार यानी कपिलेश्वर महादेव के दर्शनों के लिए जाना है इसलिए यहां से चमोली पहुंचना होता है, और चमोली से टैक्सी लेकर हमको जाना होगा हैलांग। कपिलेश्वर महादेव की इस यात्रा के लिए चमोली से हैलांग तक जाने के लिए शेयरिंग जीप में प्रति व्यक्ति के करीब 140 रुपये लगते हैं।
इसके बाद हैलांग से कपिलेश्वर महादेव की दुर्गम पैदल यात्रा यानी ट्रैकिंग शुरू हो जाती है। कपिलेश्वर महादेव की यात्रा भी एक दुर्गम यात्रा मानी जाती है। दुर्गम इसलिए क्योंकि कपिलेश्वर महादेव का यह मंदिर एकदम दुर्गम पर्वत पर है इसलिए यहां भी हमको पैदल ही ट्रैकिंग करनी पड़ती है। लेकिन, इसमें एक अच्छी बात ये है कि इस पैदल ट्रैकिंग की दूरी मात्र 3 किमी ही है और पंच केदार के पांचों मंदिरों के टैªक वाली यह सबसे कम दूरी है। इसलिए इस दूरी को पैदल यानी ट्रैकिंग के जरिए करीब डेढ से दो घंटे लग जाते हैं।
यहां हम कपिलेश्र महादेव के दर्शन करेंगे और भगवान केदार को धन्यवाद देंगे, क्योंकि उन्होंने हमारी पिछले दस दिनों से लगातार चल रही इस पंच केदार तीर्थ की थका देने वाली लंबी और खतरनाक पहाड़ी रास्तों की इस यात्रा को सफल बनाने के लिए हमको इतनी हिम्मत और आत्मशक्ति दी।
पंच केदार के पांचवे मंदिर यानी कपिलेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन करने के बाद पैदल यानी ट्रैकिंग के जरिए हैलांग के लिए वापसी में भी करीब डेढ से दो घंटे लग ही जाते हैं।
दसवें दिन की इस यात्रा में सभी पांचों केदार मंदिरों के सफलतापूर्वक दर्शन करने के बाद हैलांग पहुंच कर, यहां से आप चाहें तो यहीं से वापस हरिद्वार या देहरादून के लिए बस ले सकते हैं, या फिर चाहें तो भगवान बद्रीनाथ धाम के दर्शन करने भी जा सकते हैं, क्योंकि सनातन के प्रमुख चार चामों में से एक भगवान बद्रीनाथ जी का यह धाम हैलांग से मात्र 70 किमी की दूरी पर ही रह जाता है।
पंच केदार की यात्रा से जुड़ी इस जानकारी में पिछले 10 से 11 दिन का विवरण विस्तार से बताने का प्रयास किया है जो ज्यादा खर्चीला भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन, इस यात्रा में या इसी प्रकार की अन्य किसी भी धार्मिक यात्रा में इस बात का सबसे अधिक ध्यान रखना होता है कि दुर्गम पहाड़ों का मौसम और अन्य प्रकार की परेशानियों के चलते यहां कुछ परेशानियां भी आ सकती हैं, जिसके कारण यात्रा में बाधा या रूकावट आ सकती है या फिर यात्रा के बजट, या खर्च में बढ़ौतरी भी हो सकती है।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां –
तो सबसे पहले तो उनके लिए जो कि अगर आप इस पंच केदार यात्रा में अपनी अपनी खुद की गाड़ी से आना-जाना करना चाहते हैं तो इस बात का ध्यान रखना होगा कि आपको यहां के कठीन पहाड़ी रास्तों में ड्राइविंग करने का अच्छा-खासा अनुभव होना चाहिए, या फिर आप यहां किसी भी टैक्सी स्टैंड के माध्यम से एक्सर्ट ड्राइवर को भी हायर कर सकते हैं। इसके अलावा आपकी उस गाड़ी की फिटनेस और पेपरवर्क भी कंपलीट होने चाहिए, फिर चाहे वह टू व्हिलर हो या फोर व्हिलर।
गंगोत्री धाम कैसे पहुंचे, कितने दिनों की यात्रा है, कितना खर्च होगा ?
और अगर आपको पहाड़ों में ड्राइविंग करने का अच्छा-खासा अनुभव है तो निश्चिंत रहिए, क्योंकि यहां आप आराम से सारी जगहों पर दर्शन भी कर सकते हैं और पर्यटन का भी आनंद ले सकते हैं। लेकिन, इसके लिए यहां ध्यान रखें कि आप अपनी गाड़ी जहां भी पार्किंग करेंगे उसका शुल्क अवश्य ही देना होगा। इसके इसके अलावा खर्च का अनुमान आपको स्वयं ही लगाना होगा।
पंच केदार की इस यात्रा से जुड़ी दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि अगर आप यहां उत्तराखण्ड राज्य परिवहन की बसों से आना-जाना करते हैं तो उसमें आपका खर्च सबसे कम होने का अनुमान होता है। यानी कि हरिद्वार से या फिर देहरादून से आगे की इस यात्रा में प्रति व्यक्ति के हिसाब से कम से कम 9 से 10 हजार रुपये में आप आराम से इस ‘पंच केदार यात्रा’ को कर सकते हैं।
तीसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि अगर आप हरिद्वार से या फिर देहरादून से टैक्सी लेकर जाते-आते हैं तो उसके लिए यहां ‘‘विशेष यात्रा पैकेज’’ की सुविधाएं भी होती हैं। लेकिन, टैक्सी का पैकेज लेकर भी आपको इस यात्रा में कम से कम उतने ही दिन लग सकते हैं जितने की हमने यहां बताये हैं। टैक्सी के इस पैकेज में कुछ मोलभाव भी हो सकता है, लेकिन फिर भी कम से कम 40 से 41 हजार रुपये तक का खर्च तो लग ही जाता है। हालांकि, इस 40 से 41 हजार रुपये वाले पैकेज में आप अपने साथ 3 अन्य लोगों को भी ले जा सकते हैं। यानी टैक्सी का यह पैकेज 4 लोगों के लिए होता है। इस हिसाब से यह खर्च प्रति व्यक्ति कम से कम 10 हजार रुपये तक हो जाता है। लेकिन, ध्यान रखें कि ये खर्च सिर्फ और सिर्फ सड़क के रास्ते आने-और जाने का ही होता है। जबकि इसमें आपको रात को ठहरना, भोजन, चाय-नाश्ते का या बाकी जो भी होगा वो सारा खर्च आपका अपना यानी अलग से ही है।
आपकी यात्रा शुरू हो। जय केदारनाथ महादेव।
यात्रा से जुडी विशेष चेतावनी: – यात्रा प्रारंभ करने से पहले ध्यान रखें कि किसी भी धार्मिक यात्रा में होने वाले अनुमानित खर्च को थोड़ा-सा अधिक या लगभग-लगभग बताने का प्रयास किया जाता है। लेकिन, क्योंकि किसी भी यात्रा में खर्च कम-ज्यादा होता रहता है और इसमें कोई निश्चित भी नहीं है कि कहां कितना खर्च लग सकता है इसलिए हमें यह मान कर चलना चाहिए कि यात्रा के बजट में थोड़ी-बहुत बढ़ौतरी हो सकती है। साथ ही साथ परिस्थितियों के अनुसार एक या दो दिन अतिरिक्त भी लग सकते हैं।