हिन्दुस्तान की राजनीति में यूं तो वोटों की दृष्टि से तुष्टीकरण का राजनीतिक खेल एक लंबे अरसे से चला आ रहा है। अल्पसंख्यक समाज का वोट लेने के लिए हमारे देश के नेता नये-नये हथकंडे अपनाते रहे हैं। यह बात अलग है कि तुष्टीकरण की राजनीति करने के बावजूद अधिकांश दल अपने आप को सामाजिक सद्भाव का अगुवा भी बताते हैं और यह भी कहते हैं कि धर्मनिरपेक्षता ही देश का भविष्य है।
वास्तव में आज यह मंथन का विषय है कि वास्तव में क्या ये नेता सेकुलर हैं और सामाजिक सद्भाव के लिए काम करते हैं? वर्तमान समय में यदि भारतीय जनता पार्टी को छोड़ दीजिए तो कमोबेश सभी दल अपने को पूर्ण रूप से धर्मनिरपेक्षता का ठेकेदार समझते हैं। अगर इन सेकुलर नेताओं के कारनामों पर नजर डाली जाये तो इनका असली चेहरा उजागर हो जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है। उन्होंने तो अल्पसंख्यकों के लिए अलग से बैंकों की स्थापना की भी बात कही थी। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने तो कार सेवकों पर गोलियां चलवा दी थी। कार सेवकों पर गोलियों चलवाने के बाद लोगों ने मुलायम सिंह को मौलाना मुलायम सिंह कहना शुरू कर दिया था।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए बहुसंख्यक समाज के त्यौहारों के प्रति उदासीन रवैया अपनाती रहती हैं। लालू यादव ने बिहार में बाकायदा ‘एमवाई’ यानी मुसलमान-यादव का विधिवत समीकरण ही बनाया हुआ है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह तो पाकिस्तान के आतंकी हाफिज सईद को सईद साहब और ओसामा बिन लादेन को ओसामा जी बोल कर अपनी मानसिकता का परिचय दे चुके हैं। इस प्रकार की तमाम ऐसी घटनाएं हैं जिन्हें देख-सुन कर ऐसा लगता है कि क्या इसी को सेकुलरिज्म कहा जाता है? इसी सेकुलरिज्म पर कटाक्ष करते हुए बीजेपी के वरिष्ठ नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी ने इसे ‘सूडो सेकुलरिज्म’ यानी छद्म धर्मनिरपेक्षता या यूं कहें कि झूठी धर्मनिरपेक्षता कहा है।
यदि इस विषय पर नजर डाली जाये तो दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल धर्मनिरपेक्षता की वर्षों से चली आ रही घिसी-पिटी राजनीति को आगे बढ़ाने में सबसे आगे निकल गये हैं। राजनीतिक व्यवस्था बदलने के नाम पर राजनीति में आये अरविन्द केजरीवाल को रूटीन राजनीति को ही आगे बढ़ाने में काफी मजा आ रहा है। धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदारों में आज उनका नाम सबसे ऊंचे आसन पर विराजमान है। उनकी इसी राजनीति को देखकर सोशल मीडिया में उन्हें कोई मियां केजरुद्दीन लिख रहा है तो कोई मो. केजरुद्दीन। केजरीवाल के बारे में यदि ऐसा कुछ सोशल मीडिया में देखने को मिल रहा है तो इसका विश्लेषण भी बहुत जरूरी हो गया है।
दरअसल, अरविंद केजरीवाल के बारे में यह राय यूं ही नहीं बनी है। इसके कुछ कारण भी हैं। दिल्ली में इमामों को सेलरी, अल्पसंख्यक बच्चों की फीस वापसी की घोषणा, रोहिंग्या-बांग्लादेशी घुसपैठियों के प्रति उदार रवैया, सीएए के विरोध में शाहीन बाग में बैठे लोगों का समर्थन, ये सब कुछ मामले देख कर लगता है कि तुष्टीकरण के खेल में वे पहले से स्थापित दलों एवं नेताओं से काफी आगे निकल चुके हैं।
कोरोना काल की तीनों लहर में धार्मिक स्थल लंबे समय तक बंद रहे किन्तु दिल्ली के मुख्यमंत्री ने बहुसंख्यक समाज के पंडितों एवं पुजारियों की कोई परवाह नहीं की, जबकि इमामों की उन्होंने भरपूर सेवा की। ऊपर से ये अपने आपको धर्मनिरपेक्ष बताते हैं जबकि वास्तविकता तो यह है कि लाॅकडाउन के समय तमाम मंदिरों के पंडितों एवं पुजारियों के समक्ष भूखे पेट भजन करने की नौबत आ गई थी किन्तु केजरीवाल अपनी तुष्टीकरण की राजनीति के चलते उनकी कोई मदद नहीं कर पाये।
यह सभी को पता है कि अवैध घुसपैठियों की वजह से दिल्ली बारूद के ढेर पर बैठी है किन्तु इन घुसपैठियों के खिलाफ कोई कार्रवाई होती है तो आम आदमी पार्टी बेचैन होने लगती है और इस पार्टी के नेता अनाप-शनाप बयान देने लगते हैं। वर्तमान समय में सत्तापक्ष के विधायक लोगों में पर्चे बांटकर यह बताने का काम कर रह हैं कि भाजपा दिल्ली में 63 लाख मकान तुड़वायेगी जबकि उनका यह अभियान दिल्ली में टांय-टांय फिस्स हो चुका है।
दरअसल, इस हरकत से यही साबित होता है कि आम आदमी पार्टी बहुत परेशान है और उसे लगता है कि लोगों के सामने सच्चाई आ चुकी है। वैसे, यह बात अपने आप में पूरी तरह सत्य है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जड़ें पूरी तरह हिल चुकी हैं। उसकी बौखलाहट की असली वजह यही है। दिल्ली में पानी की समस्या को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। पानी की कमी एवं गंदे पानी से लोगों में पेट, लीवर, किडनी, पथरी एवं अन्य प्रकार की बीमारियां बढ़ रही हैं किन्तु दिल्ली सरकार पूरी दिल्ली को भरपूर शराब पिलाने में लगी हुई है। भयंकर गर्मी में दिल्ली की सड़कों पर बसें नदारद हैं, एसी बसें नाम मात्र की हैं, बसों में आये दिन आग लगने की घटनाएं होती रहती हैं। अधिकांश बसें ओवर एज हो चुकी हैं किन्तु दिल्ली सरकार इन समस्याओं से निपटने की बजाय दिल्लीवासियों को सुबह तीन बजे तक दारू पिलाने की व्यवस्था में लगी हुई है।
वाह रे दिल्ली सरकार, क्या इसी प्रकार की व्यवस्था के लिए बनी है यह सरकार? इन समस्याओं के अतिरिक्त दिल्ली में बेरोजगारी, स्वास्थ्य, शिक्षा, गरीब कल्याण, यमुना की सफाई, किरायेदारों की समस्या, पेंशन, पर्यावरण, प्रदूषण एवं अन्य तमाम मामलों में आम आदमी पार्टी ने जो भी? घोषणा की थी, उन सभी मामलों पर पूरी तरह फ्लाॅप नजर आ रही है। ऊपर से इस पार्टी के नेता कहते हैं कि हम सामाजिक सद्भाव कायम करने में लगे हैं।
मंदिरों के पुजारियों को भूखे रखकर और इमामों की भरपूर सेवा को ही यदि सामाजिक सद्भाव दिल्ली सरकार मान रही है तो दिल्ली का ऐसे सामाजिक सद्भाव से कुछ भी भला होने वाला नहीं है। कुल मिलाकर यह कहना निहायत उचित होगा कि यदि सोशल मीडिया के माध्यम से लोग अरविंद केजरीवाल को मियां केजरुद्दीन बोल रहे हैं तो यह अनायास नहीं है। उन्होंने ‘मनसा-वाचा-कर्मणा’ अपने आप को हमेशा यही साबित करने का प्रयास किया है जिसे आम जन कभी भी स्वीकार नहीं करेगा और न ही कर रहा है।
– हिमानी जैन