
जब कभी भी बहस छिड़ती है तो यही बात आती है कि साईं बाबा एक सच्चे संत थे, इसलिए उन्हें भगवान मानना सही नहीं है। जबकि कुछ लोगों का तर्क होता है कि हमारी संस्कृति में एक डाॅक्टर को भी भगवान का दर्जा दिया जाता है। उसी प्रकार से साईं बाबा ने भी गरीबों की सेवा की थी, लिहाजा उन्हें भी भगवान माना जाता है। यानी यहां हम यह कह सकते हैं कि जो कोई भी हमें मुसीबत से उबार ले, वही हमारे लिए भगवान बन जाता है। लेकिन क्या सचमुच ऐसा कुछ किया था साईं ने जो लोगों ने उन्हें एक भगवान की तरह से मान लिया और अपने-अपने घरों के पूजास्थलों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान देकर सनातन के सबसे प्रमुख शिव, विष्णु, कृष्ण, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती आदि देवी-देवताओं का अपमान करते हुए एक चमत्कारी बाबा कहना प्रारंभ कर दिया।
आज भले ही साईं बाबा को सनातन प्रेमियों ने सबसे ऊंचा दर्जा दे दिया है लेकिन, सच तो ये है कि साईं बाबा इस सम्मान के लायक एक प्रतिशत भी न तो तब था और न ही अब है। भले ही हमारे कुछ धर्मगुरुओं ने साईं बाबा को मिले इस सम्मान और स्थान के षड्यंत्र को बहुत देर से जाना, लेकिन आज सोशल मीडिया के आने के बाद सनातन समाज में इतनी जागरूकता आने के बाद भी साईं बाबा को लेकर उतनी जागरूकता नहीं फैल सकी है जितनी फैलनी चाहिए थी।
अक्सर हमारे लिए वही व्यक्ति भगवान बन जाता है जो हमें मुसीबत से उबार लेता है, लेकिन, यहां हमारे सामने ऐसे कोई उदाहरण या साक्ष्य न तो लिखित में हैं और न हीं सामाजिक या किस्से कहानियों में देखने सुनने को मिलते हैं। रही बात साईं के चरित्र पर लिखी उस विशेष किताब की तो उसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह साबित करती हो कि उसने कुछ अच्छे या सामाजिक कार्य किये थे। बल्कि उसमें तो उन चमत्कारों को दर्शाया गया है जो विश्वास के लायक ही नहीं है।
सनातन धर्म का कोई साधु या सन्यासी इस प्रकार का चमत्कार कर देता है या बात भी करता है तो उसको ढोंगी और जादूगर बताकर उसका अपमान किया जाता है। जबकि, इसके लिए कुछ विशेष तप और सिद्धियों की आवश्यकता होती है, और साईं के विषय में तो ऐसी कोई भी जानकारी नहीं मिलती जिसमें हमें यह पता चले कि साईं ने किसी भी प्रकार से कोई विशेष तप और सिद्धियां हासिल की हों।
इस मस्जिद में थी शुद्ध सोने से बनी देवी सरस्वती की मूर्ति लेकिन…
साईं के विषय में बताया जाता है कि उसने पानी में दीया जलाकर स्थानिय ग्रामिणों को अपने वश में कर लिया था, जबकि एक साधारण मनुष्य और वो भी किसी मुस्लिम के लिए तो ऐसा बिल्कुल भी संभव नहीं हो सकता। और यहां हमारे सामने ऐसे कोई प्रमाण भी नहीं हैं कि साईं को पानी में दीया जलाने के लिए विवश होना पड़ा या चमत्कार दिखाना बहुत ही आवश्यक था या किसी ने उनकी परीक्षा ली हेगी। एक मामूली सी बात के लिए इतना बड़ा चमत्कार दिखाना किसी भी सिद्ध पुरुष के लिए कोई आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि यह प्रकृति के नियमों के विरुद्ध होता है।
दरअसल साईं एक कट्टर मुस्लिम था जो सनातन को भ्रष्ट करने के इरादे से रचा गया एक ऐसा खलनायक था जिसे बड़ी ही आसानी से किसी सबसे पीछड़े क्षेत्र के एक छोटे से गांव में स्थापित किया गया था, क्योंकि ऐसे पीछड़े स्थानों पर पढ़े-लिखे या जानकार लोग बहुत ही कम होते हैं या बिल्कुल भी नहीं होते, इसलिए उन्हें किसी भी प्रकार से मुर्ख बना कर उनको भ्रमित किया जा सकता है।
आज भले ही हमारे सामने उसी सच्चाई उसी के ट्रस्ट ने रख दी है कि साईं एक कट्टर मुस्लिम युवक था। लेकिन, बावजूद इसके सनातन से निकल कर सेक्यूलर बने कुछ मुर्ख और पाखण्डी हिंदूओं ने अब तक भी उसका पीछा नहीं छोड़ा है और न ही उसको अपने-अपने घरों के मंदिरों से बाहर फेंका है। ऐसे पाखण्डी हिंदूओं की मानसिकता के विषय में तो यही कहा जा सकता है कि जब भी समय आयेगा सबसे पहले यही पाखण्डी हिंदू या तो अपना धर्म परिवर्तन कर हरे रंग में रंग जायेंगे या फिर कट जायेंगे।
जो धर्म अपने धर्मगं्रथ के एक पन्ने के फटने से भी संकट में आ जाता है, जो धर्म अपने विषय में एक शब्द भी गलत सुनना पसंद नहीं करता, जो धर्म अपने आप को सबसे ऊपर मानता है, जो धर्म अपने अलावा अन्य किसी को भी मानने की इजाजत नहीं देता ऐसे धर्म से आने वाले किसी भी व्यक्ति को सनातनवासी कितने आसानी से अपने घरों और मंदिरों में सबसे विशेष और सबसे अधिक महत्व देते हैं इसका उदाहण और उससे होने वाली हानि को हम पीछले कई वर्षों से देख रहे हैं, बेशक हमसे गलतियां हुई हैं, लेकिन अब यही सही समय है उन गलतियों को सुधारने का, अन्यथा जो लोग कहा करते थे कि हस्ती है कि कभी मिटती नहीं, उन्हीं से जाकर आज पूछ लो, उनके घरों में किस प्रकार से जिहाद के नाम पर सनातन से सेक्यूलरवाद का उदय हो चुका है।
– गणपत सिंह, खरगोन ( मध्य प्रदेश)