भारत सहित पूरी दुनिया आधुनिकता की गाड़ी पर सवार होकर तेज रफ्तार से दौड़ी जा रही है किन्तु अभी भी समाज में आये दिन कुछ ऐसी घटनाएं देखने-सुनने को मिल जाती हैं जिससे यह सोचने के लिए मजबूर होना पड़ जाता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? जादू, टोना-टोटकों एवं अंधविश्वास के नाम पर कुछ ऐसी घटनाएं घटित हो जाती हैं जिनको रोकना बहुत जरूरी है। ऐसी घटनाओं को रोकने के साथ-साथ व्यापक स्तर पर जागरूकता की भी जरूरत है। आज के वैज्ञानिक एवं आधुनिक युग में भी तमाम लोग तंत्र-मंत्र और टोने-टोटकों में उलझे हुए हैं। इस प्रकार की समस्याओं के समाधान के लिए तमाम पुस्तकें भी छप गई हैं।
ऐसी कुछ घटनाओं का जिक्र किया जाये तो स्वतः यह सोचने के लिए विवश होना पड़ता है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कुछ न कुछ करना ही चाहिए। 17 जून को राजनांद गांव (छत्तीसगढ़) के गिधवा भंवर गांव में डायन के अंधविश्वास के चलते मान बाई साहू नामक बुजुर्ग महिला की हत्या कर दी गई। लाठी-डंडे और धारदार चाकू से हुई हत्या के जुर्म में सोन सोम मंडावी नामक व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया। 8 जुलाई को दुमका (झारखंड) के सरईया हाट थाना क्षेत्र के खैर बनी गांव में बीमारी की वजह से एक व्यक्ति की मौत हो जाने पर उसके परिजनों ने इसके लिए एक महिला को जिम्मेदार माना और डायन होने के संदेह में उस पर कुल्हाड़ी से हमला करके उसे मार डाला। 14 जून को राजस्थान के सूरतगढ़ में एक बाबा ने एक दिव्यांग बच्चे को ठीक करने के लिए उसकी गर्दन से नीचे का सारा हिस्सा दस घंटे तक मिट्टी में दबाये रखा। इस घटना का जब वीडियो वायरल हुआ तो पुलिस ने उस बच्चे को छुड़ाया।
इस प्रकार की घटनाओं का जिक्र किया जाये तो इसकी एक लंबी लिस्ट है। 25 जून को राजस्थान के डूंगरपुर के चितरी थाना इलाके में एक 21 वर्षीय महिला को एक तांत्रिक ने दुष्ट आत्मा से छुटकारा दिलाने के लिए टोना-टोटका के बहाने श्मशान घाट में अकेले बुलाकर उसका बलात्कार कर डाला। 9 जुलाई को मध्य प्रदेश के रतलाम में अंधविश्वास के चलते एक पिता ने अपने बीमार 7 वर्षीय मासूम बेटे के इलाज के नाम पर उसके शरीर में कई स्थानों पर गर्म करके लाल की हुई लोहे की की सुइयां चुभो दी जिससे उसने दम तोड़ दिया।
इस प्रकार यदि देखा जाये तो बीमारियों, आर्थिक तंगी एवं अन्य समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए लोग किसी न किसी रूप में अंधविश्वास की चपेट में आ जाते हैं। तमाम लोग ऐसे भी मिल जायेंगे, जिनके घर में कोई बीमार होता है तो पहले डाॅक्टर के पास जाने के बजाय झाड़-फंूक के चक्कर में पड़ जाते हैं। आज के वैज्ञानिक एवं आधुनिक युग में जब मानव चांद पर जाकर बस्तियां बसाने की इच्छा रखता है तो इस प्रकार की घटनाओं को मात्र कलंक के रूप में मान कर उससे बचने एवं समाज को बचाने की अति आवश्यकता है। इससे मुक्ति के लिए व्यापक स्तर पर जन जागरण की अति आवश्यकता है। द
– जगदम्बा सिंह