डॉ. स्वप्निल यादव || भारत में सिखों का इतिहास स्वर्णिम और अमिट है, जब भारत पर संकट आया यह कौम सिर पर पगड़ी बांधकर हाथ में तलवार लेकर देश की रक्षा के लिए निकल पडी। सिखों का बलिदान की कहानियों के बिना भारत की आज़ादी का इतिहास लिखा ही नहीं जा सकता। गुरु गोबिंद सिंह की पवित्र वाणी एवं रचनाओं का संग्रह है दसम ग्रंथ।
गुरु गोबिंद सिंह ने अपने जीवनकाल में अनेक रचनाएँ की जिनकी छोटी छोटी पोथियाँ बना दीं। उनके देह त्यागने के बाद उनकी धर्म पत्नी माता सुन्दरी की आज्ञा से भाई मणी सिंह खालसा और अन्य खालसा भाइयों ने गुरु गोबिंद सिंह जी की सारी रचनाओ को इकट्ठा किया और एक जिल्द में चढ़ा दिया जिसे आज दसम ग्रन्थ कहा जाता है। सीधे शब्दों में कहा जाये तो गुरु गोबिंद सिंह जी ने रचना की और खालसे ने सम्पादना की। दसम ग्रन्थ का सत्कार सारी सिख कौम करती है।
दसम ग्रन्थ में गुरु गोबिंद सिंह जी की निम्लिखित वाणी दर्ज हैं: जाप साहिब, अकाल उसतति, बचित्र नाटक, चंडी चरित्र उक्ति बिलास, चंडी चरित्र भाग दूसरा, चंडी की वार, ज्ञान परबोध, चौबीस अवतार, ब्रह्मा अवतार, रूद्र अवतार, शब्द हजारे, 33 सवैये, सवैये, शास्त्र नाम माला, अथ पख्यान चरित्र लिख्यते, ज़फरनामा और हिकायतें।दसम ग्रंथ की वानियाँ जैसे की जाप साहिब, तव परसाद सवैये और चोपाई साहिब सिखों के रोजाना सजदा, नितनेम, का हिस्सा है और यह वानियाँ खंडे बाटे की पहोल, जिस को आम भाषा में अमृत छकना कहते हैं, को बनाते वक्त पढ़ी जाती हैं। तखत हजूर साहिब, तखत पटना साहिब और निहंग सिंह के गुरुद्वारों में दसम ग्रन्थ का गुरु ग्रन्थ साहिब के साथ परकाश होता हैं और रोज़ हुकाम्नामे भी लिया जाता है।
जफरनामा भारत के इतिहास की लिखित रचनाओं में से एक है। जफरनामा एक पत्र है। जो कि फ़ारसी भाषा में लिखा गया है। जफरनामा फ़ारसी भाषा में प्रयोग किया गया शब्द है क्योंकि जिस समय यह पत्र लिखा गया उस समय फ़ारसी भाषा को मुग़ल शासन की शासकीय भाषा का दर्जा प्राप्त था। जिस कारण दशम गुरु भी इस भाषा के जानकार थे तथा औरंगजेब द्वारा आसानी से समझी जा सकने वाली भाषा का प्रयोग करना चाहते थे। जफरनामा 111 पदों (शेरों) का समूह है।
जफरनामा को हिन्दी में विजय पत्र के नाम से जाना जाता है। उन्होंने विजय की यह चिट्ठी मुगल शासक औरंगजेब को वर्ष 1705 में भाई दया सिंह के द्वारा भेजी थी। इस पत्र में औरंगजेब को क़ुरान के आदेश तथा उसके द्वारा किए गए पापों की याद दिलवाई गई थी।
जफरनामा शब्द हिन्दी भाषी क्षेत्रों में तब प्रचलित हुआ जब दशम सिख गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुग़ल शासक औरंगजेब को फारसी भाषा में एक पत्र लिखा जिसे जफरनामा के नाम से जाना जाता है। जफरनामा का हिन्दी में मतलब होता है विजय पत्र (इंग्लिश: विक्ट्री लेटर)। जफरनामा शब्द विजय पत्र के नाम से ही प्रचलित है तथा भारत के इतिहास के एक अति महत्वपूर्ण क्षण को अपने अंदर संग्रहित किए हुए है।
सरदार महेन्द्र सिंह ने जफरनामा का पंजाबी में अनुवाद किया।
1 – शस्त्रधारी ईश्वर की वंदना –
बनामे खुदावंद तेगो तबर, खुदावंद तीरों सिनानो सिपर।
खुदावंद मर्दाने जंग आजमा, ख़ुदावंदे अस्पाने पा दर हवा।
उस ईश्वर की वंदना करता हूँ, जो तलवार, छुरा, बाण, बरछा और ढाल का स्वामी है। और जो युद्ध में प्रवीण वीर पुरुषों का स्वामी है। जिनके पास पवन वेग से दौड़ने वाले घोड़े हैं।
2 – औरंगजेब के कुकर्म –
तो खाके पिदर रा बकिरादारे जिश्त, खूने बिरादर बिदादी सिरिश्त।
वजा खानए खाम करदी बिना, बराए दरे दौलते खेश रा।
तूने अपने बाप की मिट्टी को अपने भाइयों के खून से गूँधा, और उस खून से सनी मिटटी से अपने राज्य की नींव रखी और अपना आलीशान महल तैयार किया।
3 – अल्लाह के नाम पर छल –
न दीगर गिरायम बनामे खुदात, कि दीदम खुदाओ व् कलामे खुदात।
ब सौगंदे तो एतबारे न मांद, मिरा जुज ब शमशीर कारे न मांद।
तेरे खुदा के नाम पर मैं धोखा नहीं खाऊंगा, क्योंकि तेरा खुदा और उसका कलाम झूठे हैं। मुझे उनपर यकीन नहीं है । इसलिए सिवा तलवार के प्रयोग से कोई उपाय नहीं रहा।
4 – छोटे बच्चों की हत्या –
चि शुद शिगाले ब मकरो रिया, हमीं कुश्त दो बच्चये शेर रा।
चिहा शुद कि चूँ बच्च गां कुश्त चार, कि बाकी बिमादंद पेचीदा मार।
यदि सियार शेर के बच्चों को अकेला पाकर धोखे से मार डाले तो क्या हुआ। अभी बदला लेने वाला उसका पिता कुंडली मारे विषधर की तरह बाकी है। जो तुझ से पूरा बदला चुका लेगा।
5 – मुसलमानों पर विश्वास नहीं –
मरा एतबारे बरीं हल्फ नेस्त, कि एजद गवाहस्तो यजदां यकेस्त।
न कतरा मरा एतबारे बरूस्त, कि बख्शी ओ दीवां हम कज्ब गोस्त।
कसे कोले कुरआं कुनद ऐतबार, हमा रोजे आखिर शवद खारो जार।
अगर सद ब कुरआं बिखुर्दी कसम, मारा एतबारे न यक जर्रे दम।
मुझे इस बात पर यकीन नहीं कि तेरा खुदा एक है। तेरी किताब (कुरान) और उसका लाने वाला सभी झूठे हैं। जो भी कुरान पर विश्वास करेगा, वह आखिर में दुखी और अपमानित होगा। अगर कोई कुरान कि सौ बार भी कसम खाए, तो उस पर यकीन नहीं करना चाहिए।
6 – दुष्टों का अंजाम –
कुजा शाह इस्कंदर ओ शेरशाह, कि यक हम न मांदस्त जिन्दा बजाह।
कुजा शाह तैमूर ओ बाबर कुजास्त, हुमायूं कुजस्त शाह अकबर कुजास्त।
सिकंदर कहाँ है, और शेरशाह कहाँ है, सब जिन्दा नहीं रहे। कोई भी अमर नहीं हैं, तैमूर, बाबर, हुमायूँ और अकबर कहाँ गए। सब का एकसा अंजाम हुआ।
7 – गुरूजी की प्रतिज्ञा –
कि हरगिज अजां चार दीवार शूम, निशानी न मानद बरीं पाक बूम।
चूं शेरे जियां जिन्दा मानद हमें, जी तो इन्ताकामे सीतानद हमें।
चूँ कार अज हमां हीलते दर गुजश्त, हलालस्त बुर्दन ब शमशीर दस्त।
हम तेरे शासन की दीवारों की नींव इस पवित्र देश से उखाड़ देंगे। मेरे शेर जब तक जिन्दा रहेंगे, बदला लेते रहेंगे। जब हरेक उपाय निष्फल हो जाएँ तो हाथों में तलवार उठाना ही धर्म है।
8 – ईश्वर सत्य के साथ है –
इके यार बाशद चि दुश्मन कुनद, अगर दुश्मनी रा बसद तन कुनद।
उदू दुश्मनी गर हजार आवरद, न यक मूए ऊरा न जरा आवरद।
यदि ईश्वर मित्र हो, तो दुश्मन क्या क़र सकेगा, चाहे वह सौ शरीर धारण क़र ले। यदि हजारों शत्रु हों, तो भी वह बल बांका नहीं क़र सकते है। सदा ही धर्म की विजय होती है।
जफरनामा एक ऐसा दस्तावेज़ है जिसे भारतीय इतिहास की बेजोड़ कृति कहा जा सकता है, और गुरु गोविंद सिंह का नाम अमर है, जिन्होंने भारत के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
Dr. Swapanil Yadav
Assistant Professor and Head, Department of Biotechnology
Gandhi Faiz-e-Aam College, Shahjahanpur-242001
Uttar Pradesh