राजधानी दिल्ली में नगर निगम चुनाव संपन्न हुए जिसमें आम आदमी पार्टी भाजपा पर भारी पड़ी और उसकी जीत के बाद तमाम तरह की बातें होने लगीं किंतु भारतीय जनता पार्टी ने भी शानदार प्रदर्शन करते हुए 104 सीटें प्राप्त कीं। नगर निगम की सत्ता में लगातार 15 वर्षों तक रहने के बावजूद 104 सीटें प्राप्त करना भाजपा के लिए अच्छा ही कहा जा सकता है। दिल्ली नगर निगम चुनाव परिणामों को देखकर एक बात निश्चित रूप से कही जा सकती है कि दिल्ली की जनता भाजपा के विरोध में नहीं थी। पार्टी की तरफ से यदि थोड़ा और बेहतर मैनेजमेंट हुआ होता तो संभवतः परिणाम और भी बेहतर हो सकते थे।
राजनीति एवं समाज सेवा की यदि वर्तमान दौर की बात की जाये तो देखने में आ रहा है कि अनुभव एवं जोश का बेहतर तालमेल नहीं बन पा रहा है। अनुभव से मेरा आशय इस बात से है कि पार्टी में जो पुराने कार्यकर्ता हैं जिन्होंने पार्टी एवं संगठन को एक लंबा समय दिया है, वे हमेशा पार्टी के लिए किसी न किसी रूप में उपयोगी बने रहते हैं? उनकी सेवाओं का लाभ लेने में यदि पार्टी कामयाब हो जाये तो हमेशा सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं। दूसरी तरफ जो नये कार्यकर्ता आ रहे हैं, उनमें जोश एवं उत्साह कुछ ज्यादा ही होता है। पुराने एवं नये कार्यकर्ता यानी अनुभव एवं जोश का सुव्यवस्थित रूप से समन्वय हो जाये तो पार्टी की गतिविधियों एवं अन्य कार्यक्रमों में चार चांद लग जायेंगे और समय की मांग भी यही है।
चूंकि, आज का दौर सोशल मीडिया का है। सोशल मीडिया का प्रयोग ठीक से सभी लोग नहीं कर पाते हैं। विशेषकर, इस मामले में पुराने यानी अनुभवी कार्यकर्ता पीछे रह जाते हैं। गली-मोहल्ले, घर-घर जाकर पुराने कार्यकर्ता कार्य तो करते हैं किन्तु सोशल मीडिया में वे अपना प्रचार-प्रसार नहीं कर पाते हैं। वैसे भी हर कार्य की एक उम्र होती है। सोशल मीडिया में पारंगत होना पुराने कार्यकर्ताओं के लिए पत्थर पर घास उगाने के समान है, किन्तु काम तो उसी प्रकार आज भी वे करते हैं जैसे पहले से करते रहे हैं।
पुराने कार्यकर्ता कितना काम कर रहे हैं, यह पता लगाने का काम पार्टी एवं पार्टी की तीसरी आंख का है। किसी कार्यकर्ता को यदि यह बताने की जरूरत पड़े कि वह काम कर रहा है तो इसे किसी भी रूप में अच्छा नहीं कहा जा सकता है और यह भी सही नहीं है कि जो सोशल मीडया में चल रहा है, वही सही है। श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी अकसर कहा करते थे कि ‘श्रेष्ठ कार्यकर्ता वही है, जिसका कार्य तो दिखे, किन्तु वह नहीं दिखे’ यानी कार्यकर्ता के कार्य को जर्रा-जर्रा चिल्ला कर बोले। कार्यकर्ता को स्वयं अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने की जरूरत न पड़े। ऐसी व्यवस्था बने, इसकी जिम्मेदारी सर्वदृष्टि से शीर्ष नेतृत्व की है। पाखंड, फरेब, ड्रामेबाजी और दिखावा ज्यादा दिन नहीं चल सकता। इसकी अपनी एक सीमा होती है।
पी.आर. कंपनियां किसी के व्यक्तित्व को कुछ दिनों के लिए तो निखार सकती हैं किंतु लंबे समय तक टिके रहने के लिए कार्यकर्ता की कार्यप्रणाली, उसका व्यवहार एवं आचरण ही कार्य करेगा इसलिए दिखावा करने के बजाय कार्यकर्ता को जमीन से जुड़कर कार्य करने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में अनुभवी कार्यकर्ताओं की सेवा लेकर पार्टी के नये कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित कर पार्टी की रीति-नीति से परिपूर्ण कर सकती है।
एक पुरानी कहावत है कि जोश में होश नहीं खोना चाहिए। आजकल नये कार्यकर्ताओं में अमूमन इस तरह की प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। कई बार देखने को मिलता है कि अति जोश एवं उत्साह में नये कार्यकर्ता पुराने कार्यकर्ताओं को अपमानित करने से भी नहीं चूकते हैं। अपमानित करने का सिलसिला तो कभी-कभी यहां तक पहुंच जाता है कि अनुभवी कार्यकर्ताओं के सम्मान एवं स्वाभिमान को काफी ठेस पहुंचती है। ऐसी स्थिति में अनुभवी कार्यकर्ता नये कार्यकर्ताओं से जलील होने के बजाय चुपचाप घर बैठ जाते हैं। हालांकि, विचारधारा से बहुत गहराई से जुड़े होने के कारण पुराने कार्यकर्ता कार्य करना बंद नहीं करते हैं। अपनी क्षमता के अनुरूप बिना किसी आदेश के वे अपने काम में लगे रहते हैं। वैसे भी पुराने कार्यकर्ता जिस समय पार्टी से जुड़े थे, वे यह सोचकर नहीं जुड़े थे कि पार्टी सत्ता में आयेगी और वे सत्ता के स्वाद का आनंद लेंगे क्योंकि उनका जुड़ाव सत्ता के लिए नहीं बल्कि विचारधारा के प्रचार-प्रसार को लेकर था।
पार्टी एवं संगठन के लिए सबसे अच्छी स्थिति यही होती है कि अनुभवी कार्यकर्ताओं का साथ भी बना रहे और नये कार्यकर्ता भी जुड़ते रहें यानी दोनों तरह के कार्यकर्ताओं का संतुलन बना रहे। एक बात यहां लिखना यह भी महत्वपूर्ण है कि अनुभवी कार्यकर्ता जलील होने के बावजूद तमाम तरह की गतिविधियों से भले ही विमुख हो जाते हैं किन्तु वे पार्टी छोड़ कर कहीं और नहीं जाते हैं और न ही पार्टी को किसी भी रूप में नुकसान पहुंचाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि जिस पार्टी एवं संगठन को उन्होंने वर्षों तक अथक परिश्रम से सींचा है, उसको किसी भी तरह नुकसान नहीं पहुंचा सकते हैं। यह बात पार्टी भी अच्छी तरह जानती-समझती है। संभवतः इसी बात का लाभ पार्टी को मिल जाता है। दिल्ली नगर निगम चुनावों की दृष्टि से यदि इस बात का मूल्यांकन किया जाये तो कहा जा सकता है कि नगर निगम चुनावों में हार के कारणों में शायद एक कारण यह भी रहा हो।
चुनाव तो सदैव आते-जाते रहते हैं। आगामी चुनावों में इस दृष्टि से किसी प्रकार का कोई नुकसान न हो, इस बात का ध्यान विशेष रूप से रखना होगा। पार्टी जमीन पर मजबूती से खड़ी रहे इसके लिए अनुभवी कार्यकर्ताओं की मदद से नये कार्यकर्ताओं को पार्टी एवं संगठन की रीति-नीति से अवगत कराना होगा, पूर्ण रूप से प्रशिक्षित करना होगा, धैर्यवान एवं संस्कारित बनाना होगा और इसके साथ ही अनुभवी कार्यकर्ताओं के प्रति उनके मन में यह भाव पैदा करना होगा कि वे नींव के पत्थर के रूप में कार्य कर चुके हैं इसलिए अनुभवी कार्यकर्ताओं की भावनाओं की कद्र और सम्मान करें। अधिकांश अनुभवी कार्यकर्ताओं की ऐसी स्थिति है कि उनके मन-मस्तिष्क में किसी लोभ-लालच के बजाय मान-सम्मान पाने की ही इच्छा अधिक रहती है और उन्हें सम्मान देने में कोई हर्ज भी नहीं है।
अपने समाज में एक कहावत प्रचलित है कि ‘पैसा सब कुछ भले ही न हो, किंतु बहुत कुछ है।’ इसी प्रकार अनुभवी कार्यकर्ता भी पार्टी के लिए सब कुछ भले ही न हों, किंतु बहुत कुछ हैं। अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि अनुभव एवं जोश का समन्वय किसी भी रूप में बरकरार रखा जाये। इस संदर्भ में गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। पार्टी को जमीन से जोड़े रखने के लिए सबसे बड़ा अस्त्र एवं मंत्र भी यही है।
– हिमानी जैन