– हिमालयन ग्लेशियरों के लगातार पिघलने से गहराने वाला है भयंकर जल संकट
– भारत के राजनीतिक गलियारों में किसी को भी नहीं है इस बात की जानकारी
– भारत के राजनेता और शहरी आबादी के पढ़े-लिखे लोग दिखा रहे हैं सबसे अधिक लापरवाही
अजय सिंह चौहान || पिछले कुछ वर्षों से उत्तर भारत के कई क्षेत्रों का जल संकट लगातार गहराता जा रहा है। विश्वास न हो तो यूनेस्को की ताजा रिपोर्ट को ही देख लें। यूनेस्को की इस ताजा रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2025 तक भारत के कई हिस्सों में जल संकट बहुत अधिक बढ़ जाएगा जो कि हम पिछले कुछ वर्षों से देख ही रहे हैं। इसके पीछे का प्रमुख कारण भी साफ बताया गया है कि बड़े शहरों में अत्यधिक भूजल का दोहन हो रहा है जबकि भारत के इन्हीं तमाम बड़े शहरों में जलसंरक्षण को लेकर किसी भी स्तर की जागरूक है ही नहीं। समस्या तो यह है कि अब तक की सभी सरकारें भी इस संकट से एकदम अनजान हैं।
यूनेस्को की इस ताजा रिपोर्ट में साफ साफ बताया जा रहा है कि जल संकट की श्रेणी में उत्तर भारत के सबसे अधिक और सबसे बड़े क्षेत्रों में से उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्य आते हैं, जबकि महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, और तमिलनाडु ड्राई जोन की श्रेणी में आ सकते हैं।
यह भी सच है कि, हर एक राजनीति पार्टी और राजनेता इस जल संकट के पीछे ग्लोबल वार्मिंग को ही जिम्मेदार बताकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं, लेकिन इसका हल क्या होना चाहिए इस विषय पर करते कुछ भी नहीं हैं। सरकारें बिना सोचे समझे बता देतीं हैं कि हिमालय का बर्फीला क्षेत्र लगातार कम होता जा रहा है और हिमालयन ग्लेशियरों के लगातार पिघलने के कारण गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र व सिंधु जैसी हिमालयी नदियों का प्रवाह धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। इस प्रकार के बयानों से सरकारें अपना पल्ला झाड़ लेती हैं और आम जनता भी अपने आप को और समय के साथ भग्य को कोसने लग जाती हैं, जबकि सरकारों के लिए इसके पीछे का सच जानना तो दूर, वे इसको सुधारने की भी सोच नहीं रहीं हैं, आज भी नहीं।
उधर, यूनेस्को द्वारा जारी इस ड्राफ्ट यानी ‘अर्ली वाॅर्निंग सिस्टम’ के अनुसार भारत का लगभग 41.82 फीसदी हिस्सा सूखाग्रस्त हो भी चूका है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले दो दशकों से वर्षा में जो गिरावट दर्ज की जा रही है उसी को आधार मान कर इसे तैयार किया गया है। हालांकि, इस बात की जानकारी देश के हर एक नागरीक को अच्छी तरह से है लेकिन, सरकारों को अभी तक इस बात की किसी ने खबर या रिपोर्ट लिखित में नहीं दी है कि देश में जल संकट गहराता जा रहा है। इसे हम देश का दुर्भाग्य कहें या आम जनता की गलती। लेकिन, यह सच है कि इसमें हमारी सरकारों और सरकारी पैसों से चलने वाले ‘एनजीओ उद्योग’ का कोई दोष नहीं है।
अब अगर हम ‘अर्ली वाॅर्निंग सिस्टम’ की रिपोर्ट को आधार माने तो इसके अनुसार वैसे तो करीब करीब सम्पूर्ण भारत में खेती-किसानी के लिए भूमिगत जल का ही इस्तेमाल करना पड़ रहा है, लेकिन खासकर उत्तर भारत में यह स्थिती अब और भी अधिक भयानक होती जा रही है। यानी अगले मात्र दो से तीन वर्षों के बाद यह स्थिति क्या होने वाली है इस बात का अब किसी को अंदाजा नहीं होना चाहिए। लेकिन, क्योंकि, नीतियों के निर्माता और उन नीतियों को पास करने वाले और उन्हें आम जनता पर थोपने वाले नेता और नौकरशाह हमेशा एयर कंडिशन की हवा और मिनरल वाटर का ही इस्तमाल करते हैं इसलिए उन्हें भविष्य में भी इसमें कोई परेशानी न तो होने वाली है और न ही दिखने वाली है।
वैज्ञानिक यह बात कह चुके हैं कि कृषि के लिए पिछले कई दशकों से लगातार भूमिगत जल का ही इस्तेमाल होता आ रहा है इसलिए वर्तमान समय में भूमिगत जल बहुत नीचे तक जा चुका है। बारिश का जितना भी पानी जमीन के अंदर जाता है उसका करीब 80 प्रतिशत हिस्सा सिंचाई और पीने के लिए निकाल लिया जाता है। जबकि कई बड़े शहरों में तो भूमिगत जल का करीब 95 से 100 प्रतिशत हिस्सा दोहन कर लिया जाता है। ऐसे में कहा जा सकता है कि बड़े शहरों में यह स्थिति पिछले कई वर्षों से भयंकर रूप लेती जा रही है। लेकिन, भारीभरकम सैलरी लेने वाले भारतीय नौकरशाहों और राजनेताओं को इसकी कोई जानकारी ही नहीं थी और न ही संभवतः आज भी हो पाई है।
वर्ष 2021-22 में आई “कैग” यानी CAG की रिपोर्ट में भी यही बताया गया है की उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और काफी हद तक उत्तर प्रदेश में 100 फीसदी भूमिगत जल का दोहन हो रहा है। जिसके चलते पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सहित करीब 13 राज्यों में पानी का भयंकर संकट पैदा होने की आशंका की जा रही है। और यह आशंका अगले 10 या 15 वर्षों के बाद की नहीं बल्कि मात्र अगले दो से तीन वर्षों में ही देखने को मिलेगी, यानी यूनेस्को की इस ताजा रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2025 तक।
इस विषय में अगर हम ‘सेंटर फाॅर साइंस एंड एनवायरमेंट’ की रिपोर्ट को भी आधार माने तो इसके मुताबिक देश के करीब 25 बड़े शहर और कई छोटे छोटे शहर, कस्बे और अनगिनत गाँव आदि की आबादी वर्ष 2030 तक ‘डे जीरो’ की कगार पर पहुंच जायेगी। ‘डे-जीरो’ यानी किसी विशेष स्थान पर पानी का शून्य या समाप्त होना। ऐसे स्थानों पर पानी की आपूर्ति के लिए पूरी तरह से अन्य साधनों पर ही आश्रित होना पड़ता है। जैसे कि उदाहणर के तौर पर हम पिछले कुछ वर्षों से कुछ बड़े शहरों में देखते आ रहे हैं कि किस प्रकार से टैंकरों और लंबी-लंबी और मोटी-मोटी पाइप लाइनों के माध्यम से पीने का पानी पहुंचाया जा रहा है। इसे आप एक प्रकार का ‘जल माफिया’ या फिर ‘जल उद्योग’ भी मान सकते हैं।
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ऐसे शहरों में हमारे सामने आज कई उदाहरण हैं जैसे कि – कानपुर, गुरुग्राम, फरीदाबाद, दिल्ली, मेरठ, जयपुर, बंगलूरू, कोयंबटूर, कोच्ची, मदुरै, चेन्नई, सोलापुर, हैदराबाद, विजयवाड़ा, मुंबई, जमशेदपुर धनबाद, अमरावती, विशाखापत्तनम, आसनसोल और आगरा, इंदौर, उज्जैन आदि जैसे कई बड़े शहर भयंकर जल संकट से गुजर रहे हैं, लेकिन, क्योंकि यहां लंबी-लंबी और मोटी-मोटी पाइप लाइनों और टैंकरों के द्वारा पानी पहुंचाया जा रहा है इसलिए आम लोगों को इस बात का आभाष ही नहीं हो पाता कि जल संकट जैसी भी कुछ समस्या है। हालांकि, गर्मी के मौसम में यह समस्या दिखती जरूर है लेकिन, दो से तीन महीनों के बाद जैसे ही वर्षा ऋतु का अगमन होता है लोग फिर से भूल जाते हैं और समस्या जस की तस अगले वर्ष के लिए छूट जाती है।
समग्र जल प्रबंधन सूचकांक की ताजा रिपोर्ट के अनुसार देश के 21 से भी अधिक प्रमुख शहरों में लगभग 10 करोड़ से अधिक आबादी भीषण जल संकट की समस्या से जूझ रही है। जहां एक ओर वर्ष 1994 में जल की यह उपलब्धता प्रति व्यक्ति 6 हजार घन मीटर हुआ करती थी वही अब वर्ष 2025 तक घटकर 1600 घन मीटर रह जाने का अनुमान लगाया गया है। यानी जैसे-जैसे आबादी बढ़ती जा रही है जल संकट और गहरा होता जा रहा है।
यानी, सीधे सीधे कहें तो अगले मात्र चार से पांच वर्षों के भीतर ही देश की आधी से अधिक आबादी को हमारे महान नेता तड़पते हुए स्प्टम् मरता देखना चाहते हैं लेकिन आश्चर्य है की इसके उपाय के तौर पर कोई साधारण सा उपाय भी खोजना नहीं चाहते। ऐसे में सवाल उठता है कि यदि हमारी आशंकाएं सच होने लगता हैं तो यह सोचना मुश्किल होगा की इंसान तो फिर भी किसी तरह मारकाट कर के जी लेगा लेकिन पशु और पक्षियों की जिंदगी किस प्रकार से बच पाएगी।