अजय सिंह चौहान || उज्जैन के श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के पास बने “महाकाल महालोक” से सप्तऋषियों की मूर्तियों के हवा में उड़ने और उखाड़ने की खबर तो एकाएक सोशल मीडिया में छा गई, लेकिन इसके बाद भी एक ऐसी ही अनहोनी हो गई जो सोशल मीडिया और टीवी चैनलों से एकदम गायब है। लेकिन ये भी सच है कि यही हरकत यदि किसी अन्य धर्म के धार्मिक स्थल के साथ हो जाती तो अब बवाल मच चुका होता।
दरअसल, खबर ये है कि श्री महाकालेश्वर मंदिर परिसर जो की एक अति सुरक्षित स्थान है वहां से एक छोटा लेकिन अति प्राचीनकाल का पशुपतिनाथ मंदिर ही गायब हो गया है और किसी को इस बात की भनक तक नहीं लगी और न ही कोई इस विषय पर बात करने को तेयार है। यह मंदिर किसी साधारण सी गली का या फिर कोई कम महत्त्व का मंदिर नहीं बल्कि एक विशेष महत्त्व का मंदिर था।
खबरों की माने तो प्राचीन पशुपतिनाथ मंदिर को किसने तोड़ा, रातों-रात उसका मलबा कहां गायब हो गया, इन सवालों के जबाव देने वाला वहां कोई नहीं है। बताया जा रहा है कि बुधवार की शाम तक तो महाकाल मंदिर परिसर में स्थित जूना महाकाल मंदिर के सामने और नंदी प्रतिमा के पीछे का यह अति प्राचीन मंदिर मौजूद था, लेकिन गुरुवार सुबह वहां से गायब मिला यानी इसे हटा दिया गया है।
हैरानी तो इस बात की है कि इस प्राचीन पशुपतिनाथ मंदिर में भगवान भोलेनाथ के अलावा माता पार्वती, भगवान श्रीगणेश और नंदी की भी प्राचीन प्रतिमाएं विराजित थीं। लेकिन दुर्भाग्य है कि अब वहाँ न तो वह पशुपतिनाथ मंदिर है और ना ही भगवान शिव के परिवार की अन्य कोई प्रतिमाएं, हालाँकि भगवान् पशुपतिनाथ का शिवलिंग अब भी वहाँ मौजूद है।
अगर घटनास्थल से प्राप्त कुछ खबरों और स्थानीय लोगों के अनुसार कोरिडोर रूपी विकास की आधुनिकता और राजनीतिक विधर्मियों की मिलीभगत ने रातों रात उस मंदिर को तोड़कर उसका मलबा तक भी वहां से इसलिए हटा दिया ताकि किसी को इस बात का पता ही न चल सके की यहाँ कोई प्राचीन और महत्वपूर्ण मंदिर भी था।
स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रतिदिन की तरह जब मंदिर में पूजा पाठ करने वाले नियमित रूप से यहां पहुंचे तो मंदिर को वहाँ न देखकर वे आश्चर्यचकित रह गए, क्योंकि मंदिर के नाम पर वहाँ सिर्फ एक चबूतरा ही बचा हुआ था। जबकि उस मंदिर में भगवान् शिव का सपूर्ण परिवार विराजित हुआ करता था। हालाँकि उस मंदिर के क्षतिग्रस्त चबूतरे पर अब सिर्फ भोलेनाथ जा शिवलिंग ही शेष बचा है। हैरानी तो इस बात की है कि मुगलकाल में मंदिर तोड़ने के बाद जो लोग उसका मलबा वहीं छोड़ दिया करते थे वहीं वर्तमान अतताइयों ने तो उसके मलबे को भी हज़म कर लिया। क्योंकि वहां मंदिर तोड़ने के कोई भी अवशेष या साबुत ही नहीं छोड़े हैं। सभी को रातों रात हटा दिया गया। मंदिर के प्राचीन पिलर, नक्काशीदार अन्य पत्थर, छत, अन्य मूर्तियां आदि कोई भी सामग्री वहां देखने को नहीं छोड़ी।
एक खबर के अनुसार, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर परिसर में स्थित प्राचीन श्री पशुपतिनाथ का मंदिर तोड़े जाने को लेकर मंदिर के प्रशासक संदीप सोनी से बात करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने फोन नहीं उठाया। और जब उन्हें मैसेज किया गया तब भी उन्होंने इस विषय पर ना तो कोई उत्तर दिया और न ही कोई टिप्पणी की। इसके बाद तो यह एकदम स्पष्ट हो जाता है कि मंदिर तोड़ने का मामला महाकाल मंदिर समिति की जानकारी में है, लेकिन इसे किसी बड़े दबाव के कारण बताया नहीं जा रहा है।
उधर स्थानीय लोगों में इस बात को लेकर बेहद गुस्सा और आक्रोश है कि हिन्दू धर्मस्थलों के साथ ही इस प्रकार का प्रयोग क्यों किया जा रहा है। बजरंग दल के जिला संयोजक अंकित चौबे ने इसे बेहद निंदनीय कार्य बताया है। उन्होंने कहा है कि एक तरफ प्राचीन मंदिरों के सामने बेरीगेट लगाकर श्रदालुओं को जानबूझकर दर्शन नहीं करने दिया जा रहा है तो दूसरी और महाकाल लोक के लिए सभी रास्ते खोलकर वहां विशेष गार्डों की व्यवस्था कर रखी है, इससे तो यही साबित होता है कि मंदिर प्रशासन धीरे-धीरे हमारे धर्म के खिलाफ काम कर रहा है। सरकारों ने जल्द ही अगर इस प्रकार की व्यवस्था को नहीं रोका तो इसका अंजाम बहुत विपरीत देखने को मिल सकता है क्योंकि हर एक अति का अंत बहुत बुरा होता है और इसका भी वही हर्ष होने वाला है।
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