एक बार कुछ बुजुर्ग दोस्तों की एक टीम किसी पार्क में बैठी अपने अच्छे-बुरे अनुभवों को बांटते हुए बस यूं ही समय गुजार रही थी। उस वार्तालाप के दौरान उन्हीं में से किसी एक बुजुर्ग ने रोटी को लेकर एक बहुत ही आचंभित करने वाला ज्ञानवर्धक अनुभव भी शेयर कर दिया और अन्य मित्रों से पूछा, – ‘क्या तुममें से कोई जानता है कि रोटी कितने प्रकार की होती है?’
इस सवाल के जवाब में उनमें से किसी ने कहा कि ये कैसा सवाल है? रोटियां तो हम बचपन से ही खाते आ रहे हैं। कोई रोटी मोटी होती है, कोई पतली, कोई जली हुई तो कोई कच्ची। ये बात सुनकर वहां बैठे सभी बुजर्ग हंस पड़े।
तब उन बुजर्ग महाशय ने, जिन्होंने रोटी को लेकर सवाल पूछा था उन्होंने अपना अनुभव शेयर करने के लिए कहा कि यह सच है कि कोई रोटी पतली, कोई जली हुई तो कोई कच्ची होती हैं। लेकिन, ये रोटियों के प्रकार हैं। उनके गुण नहीं। क्योंकि कोई रोटी यदि जली हुई ही क्यों न हो उसका बनाने वाले की भावना यदि साफ न हो तो उसको खाने वाले का कभी मन नहीं भरेगा।
तब उन बुजुर्ग महाशय ने रोटी को लेकर बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि – ‘कर्म और भावनाओं के आधार पर रोटी चार प्रकार की होती है। जिसमें से पहली और सबसे स्वादिष्ट रोटी मां की ममता और वात्सल्य से भरी हुई होती है। क्योंकि, मां के हाथ से बनी रोटी से पेट तो भर जाता है, पर मन कभी नहीं भरती।’
दूसरा दोस्त बोला हां यह तो एक दम सही बात है, लेकिन, विवाह के बाद मां के हाथ की रोटी कम ही मिलती है।’
इसके बाद उन महाशय ने दूसरी रोटी के बारे में कहा कि- ‘दूसरी रोटी पत्नी के हाथ से बनी होती है जिसमें अपनापन और समर्पण भाव होता है जिससे पेट और मन दोनों भर जाते हैं।’
इसके बाद उनमें से किसी ने आश्चर्य भरे स्वर में कहा, – ‘ऐसा तो हमने कभी सोचा ही नहीं।’
‘फिर तीसरी रोटी किस प्रकार की होती है?’ एक अन्य मित्र ने सवाल किया।
उन महाशय ने अपने अनुभव के आधार तीसरी रोटी के गुण भी बताये। जिसमें उन्होंने कहा कि- ‘तीसरी रोटी वह है जो बहू के हाथ से बनी होती है। क्योंकि बहू के हाथ से बनी रोटी में कर्तव्य का भाव होता है। ऐसी रोटी कुछ-कुछ स्वाद भी देती है और पेट भी भर देती है, और वृद्धाश्रम की परेशानियों से भी बचाने में भी सहायता करती है।’
रोटी को लेकर उन महाशय के अनुभवों को सूनने के बाद थोड़ी देर के लिए तो वहां चुप्पी छा गई। लेकिन, कुछ देर बाद उनमें से किसी अन्य ने गुणों के आधार पर उस चैथी रोटी के बारे में भी पूछ लिया।
‘…और ये चैथी रोटी कौन सी होती है?’
जवाब मिला- ‘चैथी रोटी नौकरानी के हाथ से बनी होती है। जिससे न तो इन्सान का पेट भरता है और न ही मन तृप्त होता है, और न ही उसमें स्वाद की तो कोई गारंटी ही होती है।’
उन महाशय ने अपने अनुभव के आधार पर जो उत्तर दिया उसे सुनकर वहां बैठे सभी मित्र सोचने पर विवश हो गये कि आखिर हममें से ऐसा कौन-कौन किस्मत वाला हो सकता है जो इस प्रकार की रोटियां खाने को मिलती होंगी।
एक ही रोटी के चार अलग-अलग गुणों और स्वाद को जान कर वहां बैठे सभी बुजुर्ग मित्रों के मन में एक ही प्रश्न उठने लगा- ‘तो फिर हमें क्या करना चाहिये।’
उसके बाद तो उन बुजुर्ग महाशय ने साधारण सा जवाब दिया कि सबसे पहले तो अपनी अगली पीढ़ियों की इस बात की शिक्षा दी जानी चाहिए कि- ‘हमेशा मां की इज्जत करो, पत्नी को सबसे अच्छा दोस्त बना कर जीवन जिओ, बहू को अपनी बेटी समझो और छोटी-मोटी गलतियों को नजरन्दाज करते जाओ। क्योंकि यदि बहू खुश रहेगी तो बेटा भी आपका ध्यान रखेगा।’
उस व्यक्ति ने आगे कहा कि- ’यदि हालात चैथी रोटी तक ले ही आये तो ईश्वर का शुक्रिया करो कि उसने हमें जिन्दा रखा हुआ है, अब स्वाद पर ध्यान मत दो जीने के लिए केवल इतना ही खाओ ताकि आराम से बुढ़ापा कट जाये, और सोचो कि वाकई, हम कितने खुशकिस्मत हैं।’
साभार – सोशल मीडिया से