गुजरात और मध्य प्रदेश राज्यों की सीमा के निकट और दक्षिण राजस्थान में स्थित बांसवाड़ा जिले की स्थापना महारावल जगमाल सिंह ने की थी। जबकि कुछ अन्य तथ्य बताते हैं कि बांसवाड़ा की स्थापना वाहिया चरपोटा ने की थी, जो यहां का एक भील राजा था। वाहिया को बांसिया के नाम से भी जाना जाता है इसलिए बांसवाडा के राजा बांसिया के नाम पर ही इसका नाम बांसवाड़ा पड़ा। इसके अलावा कुछ अन्य तथ्य बताते हैं कि इसका यह ‘‘बांसवाड़ा’’ नाम इस क्षेत्र में पाये जाने वाले बांस के जंगलों के आधार पर रखा गया है।
आरावली पर्वत श्रंृखलाओं में बसा बांसवाड़ा अपनी प्राचीनता, सांस्कृतिक धरोहर और विविधता के लिए प्रसिद्ध है। इसका गौरवशाली इतिहास आज भी याद किया जाता है। यह आज भी अपने परंपरागत मुल्यों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके अलावा बांसवाडा से होकर बहने वाली प्रमुख माही नदी के छोटे-बड़े सुंदर प्राकृति द्वीपों या टापुओं के कारण इसे ‘सौ द्वीपों का शहर’ भी कहा जाता है। बाँसवाड़ा में वैसे तो सैकड़ों प्रसिद्ध और पर्यटन स्थान हैं, लेकिन, उनमें सबसे प्रसिद्ध और सबसे पवित्र है ‘‘त्रिपुरा सुंदरी माता का शक्तिपीठ मंदिर’’।
बांसवाड़ा के कुछ प्रमुख पर्यटन स्थलों के नाम और उनकी विशेषता कुछ इस प्रकार से हैंः-
आनंद सागर लेक – बांसवाडा में स्थित आनंद सागर झील एक कृत्रिम झील है जिसे बाई तालाब के नाम से भी जाना जाता है। यह झील बांसवाड़ा जिले के पूर्वी भाग में स्थित है। इस झील का निर्माण महारानी जगमाल सिंह की रानी लंची बाई ने करवाया था। इस झील के आस-पास के क्षेत्र में काफी संख्या में पवित्र ‘कल्पवृक्ष’ पाये जाते हैं। इसलिए यहां पर्यटकों की संख्या अच्छी खासी देखी जाती है।
अंदेश्वर पार्श्वनाथजी – राजस्थान के बांसवाडा में अंदेश्वर पार्श्वनाथजी एक प्रसिद्ध जैन मंदिर है जो कुशलगढ़ तहसील की एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर में 10वीं शताब्दी के कई दुर्लभ शिलालेख देखने को मिलते हैं। इसके अलावा यहां पर दो अन्य दिगंबरा जैन पार्श्वनाथ मंदिर भी हैं। यह मंदिर बांसवाड़ा से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर है। इसके अलावा यहां पहाड़ी पर एक पौराणिक शिव मंदिर भी स्थित है।
रामकुण्ड – बांसवाडा जिले में स्थित रामकुण्ड यहां का एक पवित्र और प्रसिद्ध स्थान है जो तलवाड़ा से करीब 3 किमी की दूरी पर मौजूद है। यह रामकुण्ड एक पहाड़ी के निचले हिस्से में स्थित एक गहरी गुफा में है। इस रामकुण्ड के बारे में मान्यता है कि अपने वनवास के समय भगवान राम इस जगह पर आये थे। इसलिए यह स्थान पर्यटन के साथ-साथ धामिक महत्व भी रखता है। खूबसूरत पहाड़ियों से घिरे इस स्थान का सौन्दर्य हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित करता है।
विठ्ठल देव मंदिर – भगवान श्री कृष्ण को समर्पित विठ्ठल देव का यह मंदिर बांसवाड़ा शहर से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर बोरखेड़ी गांव स्थित है जो करीब 500 वर्ष पुराना है। इस मंदिर की स्थापना गुजरात के राजा ने स्वप्न में आये भगवान विष्णु के आदेश के बाद करवाई थी। यह मंदिर श्रद्धालुओं के साथ पर्यटकों को भी आकर्षित करता है।
डायलाब झील – डायलाब झील बाँसवाड़ा शहर के कुछ प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। डायलाब झील बाँसवाड़ा से जयपुर जाने वाले मार्ग पर पड़ती है। यह झील जितनी अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए जानी जाती है उतनी ही यहां स्थित हनुमान मंदिर लिए भी प्रसिद्ध है। हनुमान जी का यह मंदिर खासतौर पर स्थानीय श्रद्धालुओं को सबसे अधिक आकर्षित करता है इसलिए इस मंदिर के दर्शन करने के लिए हर साल भारी संख्या में श्रृद्धालु आते हैं।
कागदी पिक अप वियर – बांसवाड़ा शहर 3 किलोमीटर दूर स्थित कागदी पिकअप वियर शहर का मुख्य पेयजल स्रोत होने के साथ ही स्थानीय पर्यटन का केन्द्र भी है। मानसून के दौरान यहां की हरियाली मनमोहक होती है। छुट्टटी के दिनों में तो यहां हर समय मेले जैसा नजारा रहता है। यहां स्थित आकर्षक फव्वारों, बगीचों और जल निकायों को देखने के लिए पर्यटक भारी संख्या में यहां आते हैं। यहाँ पर बच्चों के लिए पार्क, झूले और बोटिंग की सुविधा भी है।
मानगढ़ धाम – बांसवाड़ा से 85 किमी की दूरी पर स्थित मानगढ़ धाम को राजस्थान के जलियांवाला बाग के नाम से जाना जाता है। यहां 17 नवम्बर 1913 को गोविन्द गुरू के नेतृत्व में मानगढ़ की पहाड़ी पर एक सभा के दौरान लोग अंग्रेजों से स्वतंत्रता की मांग कर रहे थे, लेकिन, तभी अंग्रेजों ने 1500 से अधिक निहत्थे राष्ट्रभक्त आदिवासियों पर गोलियां बरसा दी और उनकी हत्या कर दी। वर्तमान में इसे एक राष्ट्रीय शहीद स्मारक के रूप में विकसित किया जा रहा है।
पराहेडा – बांसवाड़ा शहर से करीब 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पराहेडा एक प्राचीन शिव मंदिर है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में राजा मांडलिक ने किया था। यह शिव मंदिर एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है जो राजपूत वास्तुकला की विशिष्ट शैली का का उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस मंदिर के आस-पास अन्य कई छोटे-छोटे शिव मंदिर भी हैं।
माही डैम – बांसवाड़ा से करीब 18 किमी की दूरी पर मही नदी पर बना माही डैम संभाग का सबसे बड़ा बाँध है। 3.10 किमी लंबे इस बांध में 6 गेट हैं। माही बजाज सागर परियोजना के तहत इस बांध से कई नहरें बनाई गई है। मानसून के दौरान जब इसके गेटों को खोला जाता हैं तो उसे देखने के लिए यहां आस-पास के कई लोग जमा जो जाते हैं। यही कारण है कि माही बांध पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
श्री राज मंदिर – बांसवाड़ा का श्री राज मंदिर, जिसे सिटी पैलेस के नाम से भी जाना जाता है, विशाल आकार में फैली इस इमारत का निर्माण 16वीं शताब्दी में किया गया था और यह शहर की ओर एक पहाड़ी पर स्थित है। इस राज मंदिर में राजपूत वास्तुकला की विशिष्ट शैली को देखा जा सकता है। पहाड़ी के ऊपर बने इस मंदिर या महल से पूरा शहर नजर आता है। अन्य महलों की भांति यहां सरकार का कब्जा नहीं बल्कि आज भी यह मंदिर शाही परिवार की ही संपत्ति है। वास्तुकला प्रेमियों के लिए यह महल बेहद महत्वपूर्ण है।
तलवाड़ा मंदिर – बांसवाड़ा का तलवाड़ा मंदिर एक प्राचीन गणे मंदिर है जिसे आमलीया गणेश के नाम से भी पहचाना जाता है। इस मंदिर के साथ ही यहां स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, सूर्य मंदिर, सांभरनाथ के जैन मंदिर, भगवान अमलिया गणेश, महा लक्ष्मी मंदिर प्रमुख हैं। अगर आप बांसवाड़ा में जाकर सबसे अधिक धार्मिक, आध्यात्मिक स्थानों की यात्रा करना चाहते हैं तो आपको तलवाड़ा की यात्रा अवश्य करना चाहिए। यहां आकर विभिन्न मंदिरों के दर्शन करने के बाद आपके मन को अदभुद शांति मिलेगी।
मदारेश्वर मंदिर – बांसवाड़ा शहर से उत्तर-पूर्व की ओर स्थित भगवान शिव का मदारेश्वर मंदिर एक बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है, जहां भारी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। यह मंदिर पहाड़ी के अंदर बनी प्राकृतिक गुफा में है। इस मंदिर का प्राकृतिक स्वरूप पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। शिवरात्रि के दौरान यहां इस क्षेत्र का सबसे बड़ा मेला आयोजित किया जाता है।
कल्पवृक्ष – बांसवाड़ा शहर से रतलाम मार्ग पर स्थित कल्पवृक्ष एक दुर्लभ वृक्ष है जिसका अपना धार्मिक महत्व है। पौराणिक महत्व के अनुसार, समुद्र मंथन से उत्पन्न कल्पवृक्ष को चैदह रत्नों में से एक माना गया है। पीपल एवं वट वृक्ष की तरह विशाल आकार वाला यह वृक्ष लोगों की मनोकामनाओं को पूरा करता है। इस कल्पवृक्ष की विशेषता ये है कि यह वृक्ष यहां जोडे़ यानी नर-मादा के रूप में स्थित है। इसलिए इन्हें राजा-रानी के रूप में पूजा जाता है। पहचान के तौर पर इनमें से नर वृक्ष का तना पतला है और रानी यानि मादा का तना मोटा है।
सवाईमाता मंदिर – बांसवाड़ा शहर से 3 किमी की दूरी पर अरावली पर्वत श्रृंखलाअें में से एक पर्वत पर स्थित सवाईमाता मंदिर है जहां 400 सीढ़ियाँ चढ़कर मंदिर तक पहुंचना होता है। यहां का संपूर्ण वातावरण प्राकृतिक सौन्दर्य के भरपुर है। पर्यटकों को यहां आने के बाद एक अद्भुद शांत वातावरण देखने को मिलता है। नवरात्रि के अवसर पर सवाईमाता मंदिर में भारी मात्रा में श्रृद्धालु आते हैं। मंदिर के प्रांगण से शहर का नजारा बेहद खूबसूरत दिखता है।
छींछ मंदिर – बांसवाड़ा जिले के एक छींछ नामक एक छोटे से गांव में 12वीं शताब्दी में निर्मित भगवान ब्रह्मा जी का बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है। बताया जाता है कि यहां मंदिर में ब्रह्माजी के बाएं तरफ विष्णु की एक बहुत ही दुर्लभ प्रतिमा भी स्थापित है। यह मंदिर एक तालाब के किनारे स्थित है जो पर्यटकों को अपनी तरफ बेहद आकर्षित करता है।
– दिनेश चौहान, इंदौर