Skip to content
27 June 2025
  • Facebook
  • Twitter
  • Youtube
  • Instagram

DHARMWANI.COM

Religion, History & Social Concern in Hindi

Categories

  • Uncategorized
  • अध्यात्म
  • अपराध
  • अवसरवाद
  • आधुनिक इतिहास
  • इतिहास
  • ऐतिहासिक नगर
  • कला-संस्कृति
  • कृषि जगत
  • टेक्नोलॉजी
  • टेलीविज़न
  • तीर्थ यात्रा
  • देश
  • धर्म
  • धर्मस्थल
  • नारी जगत
  • पर्यटन
  • पर्यावरण
  • प्रिंट मीडिया
  • फिल्म जगत
  • भाषा-साहित्य
  • भ्रष्टाचार
  • मन की बात
  • मीडिया
  • राजनीति
  • राजनीतिक दल
  • राजनीतिक व्यक्तित्व
  • लाइफस्टाइल
  • वंशवाद
  • विज्ञान-तकनीकी
  • विदेश
  • विदेश
  • विशेष
  • विश्व-इतिहास
  • शिक्षा-जगत
  • श्रद्धा-भक्ति
  • षड़यंत्र
  • समाचार
  • सम्प्रदायवाद
  • सोशल मीडिया
  • स्वास्थ्य
  • हमारे प्रहरी
  • हिन्दू राष्ट्र
Primary Menu
  • समाचार
    • देश
    • विदेश
  • राजनीति
    • राजनीतिक दल
    • नेताजी
    • अवसरवाद
    • वंशवाद
    • सम्प्रदायवाद
  • विविध
    • कला-संस्कृति
    • भाषा-साहित्य
    • पर्यटन
    • कृषि जगत
    • टेक्नोलॉजी
    • नारी जगत
    • पर्यावरण
    • मन की बात
    • लाइफस्टाइल
    • शिक्षा-जगत
    • स्वास्थ्य
  • इतिहास
    • विश्व-इतिहास
    • प्राचीन नगर
    • ऐतिहासिक व्यक्तित्व
  • मीडिया
    • सोशल मीडिया
    • टेलीविज़न
    • प्रिंट मीडिया
    • फिल्म जगत
  • धर्म
    • अध्यात्म
    • तीर्थ यात्रा
    • धर्मस्थल
    • श्रद्धा-भक्ति
  • विशेष
  • लेख भेजें
  • dharmwani.com
    • About us
    • Disclamar
    • Terms & Conditions
    • Contact us
Live
  • तीर्थ यात्रा
  • धर्मस्थल
  • पर्यटन

उज्जैन के महत्व को समझने के लिए एक बार अवश्य पधारें | Importance of Ujjain in Hinduism

admin 28 February 2021
Kshipra River bank in Ujjain
Spread the love

अजय सिंह चौहान  || उज्जैन देवों के देव भगवान महाकाल की धरती कहलाती है। हर साल यहां देशभर से लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। आप में से अधिकतर लोग भी उज्जैन से परिचित होंगे और गये भी होंगे। उज्जैन कोई बहुत बड़ा या व्यावसायिक शहर नहीं है बल्कि एक प्राचीन और पौराणिक महत्व का तीर्थ स्थान है। इसलिए यहां लगभग हर गली और चैराहे पर कोई न कोई मंदिर देखने को मिल ही जाता है।

उज्जैन के धार्मिक महत्व को लेकर यहां एक प्रचलित है कहावत है कि, “अगर आप उज्जैन में एक बोरी भर कर चावल लेकर लायेंगे और यहां के हर एक सिद्ध और प्रसिद्ध मंदिर में एक-एक दाना भी चढ़ायेंगे तो तब भी दाने कम पड़ जायेंगे, लेकिन, मंदिर स्थल खत्म नहीं होंगे”। इसके अलावा उज्जैन न सिर्फ धार्मिक नगरी है बल्कि यहं के अनेकों ऐतिहासिक स्थानों और पर्यटन स्थानों के लिहाज से भी उत्तम है।

उज्जैन दर्शन में आप यहां के कुछ सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख ऐतिहासिक, धार्मिक सांस्कृतिक महत्व के स्थानों के दर्शन कर सकते हैं जिनमें भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक भगवान महाकालेशवर का ज्योतिर्लिंंग मंदिर, मां भवानी का श्री हरसिद्धि शक्तिपीठ मंदिर, भगवान काल भैरव का मंदिर, चिंतामन गणेश मंदिर, महर्षि सांदीपनि का विश्व प्रसिद्ध आश्रम, खगौलिय महत्व की जंतर-मंतर वैद्यशाला, अद्भूत और आश्चर्य चकीत कर देने वाला ऐतिहासिक 52 कुंड, पवित्र क्षिप्रा नदी का रामघाट, भगवान मंगलनाथ का विश्व प्रसिद्ध मंदिर, देवी गढ़कालिका के दर्शन और इतिहास पुरुष सम्राट विक्रमादित्य के जीवन से जुड़े कुछ ऐतिहासिक तथ्य और प्रमाण। ये सभी स्थान यहां उज्जैन शहर में लगभग 20 से 25 किलोमीटर के दायरे में ही हैं।

जहां एक ओर उज्जैन का धार्मिक महत्व और इतिहास अनादिकाल से प्रारंभ होता है वहीं इसका राजनैतिक इतिहास भी युगों पुराना है। यहां के चक्रवर्ती सम्राट राजा विक्रमादित्य द्वारा दिया गया विक्रम संवत आज हमारे धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए कितना महत्वपूर्ण है यह कहना संभव नहीं है। उज्जैन के गढ़ क्षेत्र में हुई खुदाई में पाषाणकाल से लेकर प्रारंभिक लोहयुगीन कई सामान प्रचुर मात्रा प्राप्त हुए हैं।

हमारे विभिन्न पुराणों महाभारत जैसे ग्रंथ में भी स्पष्ट उल्लेख आता है कि श्री कृष्ण व बलराम ने यहां इसी उज्जैन तीर्थ क्षेत्र में महर्षि सांदीपनी जी के आश्रम में विद्या प्राप्त की थी। इसके अलावा श्री कृष्ण की एक पत्नी मित्रवृन्दा भी उज्जैन की ही राजकुमारी थी। जबकि विन्द एवं अनुविन्द नामक मित्रवृन्दा के दो भाई महाभारत के युद्ध में कौरवों की और से युद्ध करते हुए मारे गये थे। इसके बाद चक्रवर्ती सम्राट राजा विक्रमादित्य से लेकर आजतक कई अनगिनत राजा और महाराज ऐसे हुए हैं जिन्होंने ना सिर्फ उज्जैन पर बल्कि इस संपूर्ण धरती पर राज किया है।

उज्जैन के ही इतिहासकार और महाकवि कालिदास राजा विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में से एक थे। कालिदास ने जहां एक ओर उज्जैन के इतिहास को संसार के सामने रखा था वहीं उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से उज्जैन का अत्यंत ही सुंदर वर्णन भी किया।

इस संपूर्ण मालवा क्षेत्र के प्रति महाकवि कालिदास की गहरी आस्था उनके हर प्रकार के साहित्य में और विशेष तौर पर ‘मेघदूत‘ में तो उज्जयिनी के गौरवशाली एवं प्राचीन महत्व को उन्होंने सरल शब्दों एवं भाषा में इस संसार के सामने रखा। उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से भगवान महाकाल संध्याकालीन आरती के साथ-साथ उज्जैन की पवित्र क्षिप्रा नदी के पौराणिक महत्व को भी भली भांति परिचित करवाया।

कालिदास के ‘मेघदूत’ में जिस उज्जयिनी यानी उज्जैन के वैभव का वर्णन किया गया है वह वैभव आज भले ही विलुप्त हो गया या इतिहास बन कर रह गया हो परंतु आज भी संपूर्ण संसार में उज्जयिनी का वही धार्मिक-पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व विद्यमान है। उज्जयिनी में आयोजित होने वाला प्रति बारह वर्षों में सिंहस्थ महापर्व यहां का सबसे प्रसिद्ध पर्व है।

उज्जैन को अतीत में अवंतिका, उज्जयिनी, विशाला, प्रतिकल्पा, कुमुदवती, स्वर्णशृंगा और अमरावती जैसे कुछ विशेष नामों से भी पौराणिक और साहित्यिक गं्रथों में स्थान दिया गया है। उज्जयिनी न सिर्फ भारत की पौराणिक और धार्मिक महत्व की सात प्रसिद्ध पुरियों या नगरियों में प्रमुख स्थान रखती है बल्कि यहां साक्षात देवीय शक्तियों का आज भी वास है। इसी तरह उज्जैन का पौराणिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अनगिनत विषयों और व्यक्तियों से संबंधित माना जाता है।

इतने महान और गौरवशाली अतीत वाले भारतवर्ष की सबसे पवित्र और पावन माने जाने वाली उज्जैन नगरी को 13वीं शताब्दी के आते-आते विदेशी आक्रांताओं और लुटेरों की बुरी नजर लग चुकी थी।

क्योंकि उधर दिल्ली पर दास एवं खिलजी सुल्तानों के द्वारा भीषण आक्रमणों के चलते ना सिर्फ परमार वंश का लगभग पतन हो गया था, बल्कि, वर्ष 1235 के अंतिम दिनों में दिल्ली का शमशुद्दीन इल्तमिश इस मालवा क्षेत्र में यानी उज्जैन के करीब विदिशा तक भी पहुंच चुका था। विदिशा पर भीषण हमला करके उसने यहां भी अपना राज कायम कर लिया और फिर यहां से वह सीधे उज्जैन की ओर अपनी सेना लेकर आया।

उज्जैन पहुंच कर उस क्रूर शासक शमशुद्दीन इल्तमिश ने न केवल उज्जैन में लुटपाट मचाई बल्कि यहां के सभी प्राचीन मंदिरों और पवित्र तथा धार्मिक स्थानों के हजारों और लाखों वषों के वैभव और यहां की शांति को भी नष्ट कर दिया। यहां के अनेकों ऐसे धार्मिक और पवित्र स्थान थे जो अपवित्र हो चुके थे।

हालांकि, वर्ष 1736 के आते-आते उज्जैन सिंधिया वंश के हाथों में आ गया जो वर्ष 1880 तक भी रहा। इस दौरान यहां एक बार फिर से धर्म और अध्यात्म और संस्कृति की बहार लौटी और उज्जैन का विकास भी होता रहा। महाकालेश्वर मंदिर सहीत इस संपूर्ण मालवा क्षेत्र के कई मंदिरों का जीर्णोद्धार भी हुआ। लेकिन, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

मराठा राज के दौरान यहां रौनक तो आ गई लेकिन, यह दिखावा मात्र ही थी। क्योंकि वर्ष 1235 से वर्ष 1736 तक उज्जैन अपने धर्म, अध्यात्म, पौराणिक मान्यताओं, पराक्रम, संस्कृति और मान्यताओं सहीत ओर भी बहुत कुछ खो चुका था। हालांकि आज भी उज्जैन अपने उस अतीत को ताजा रखने की कोशिश कर रहा है। लेकिन, उसके लिए आवश्यकता है यहां राजनैतिक तौर पर कुछ धार्मिक अध्यात्मिक, साहित्यिक और व्यक्तिगत सहयोग की।

About The Author

admin

See author's posts

3,660

Related

Continue Reading

Previous: भीमाकाली शक्तिपीठ मंदिर – कैसे जायें, कहां ठहरें और कितना खर्च होगा?
Next: नारकंडा- धरती का दूसरा स्वर्ग और हिमाचल का गुलमर्ग | Narkanda- Second heaven on Earth

Related Stories

Mahakal Corridor Ujjain
  • इतिहास
  • तीर्थ यात्रा
  • विशेष

उज्जैन का पौराणिक ‘रूद्र सरोवर’ आज किस दशा में है

admin 26 February 2025
shankracharya ji
  • अध्यात्म
  • धर्मस्थल
  • विशेष
  • श्रद्धा-भक्ति

शंकराचार्य जी चार धाम शीतकालीन यात्रा में होंगे सम्मिलित

admin 3 December 2024
JOGULAMBA SHAKTIPEETH TEMPLE
  • तीर्थ यात्रा
  • धर्मस्थल
  • विशेष

जोगुलम्बा शक्तिपीठ मंदिर: कब जायें, कैसे जायें, कहां ठहरें?

admin 25 November 2024

Trending News

वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास Natural Calamities 1

वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास

28 May 2025
मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है? 2

मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?

27 May 2025
आसान है इस षडयंत्र को समझना Teasing to Girl 3

आसान है इस षडयंत्र को समझना

27 May 2025
नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह Nave Word Medal 4

नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह

26 May 2025
युद्धो और युद्धाभ्यासों से पर्यावरण को कितना खतरा है? war-and-environment-in-hindi 5

युद्धो और युद्धाभ्यासों से पर्यावरण को कितना खतरा है?

23 May 2025

Total Visitor

078183
Total views : 142537

Recent Posts

  • वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास
  • मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?
  • आसान है इस षडयंत्र को समझना
  • नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह
  • युद्धो और युद्धाभ्यासों से पर्यावरण को कितना खतरा है?

  • Facebook
  • Twitter
  • Youtube
  • Instagram

Copyright ©  2019 dharmwani. All rights reserved