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प्रसन्नता का पैमाना अपनी ही जड़ों में खोजने की आवश्यकता | Happynes in India

admin 19 May 2024
Hppynes in India
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भारत सहित पूरी दुनिया की वर्तमान स्थिति की यदि समीक्षा की जाये तो स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है कि अधिकांश लोग पाश्चात्य संस्कृति एवं शहरी जीवनशैली में ही प्रसन्नता का पैमाना ढूंढ़ने में लगे हुए हैं जबकि वास्तविकता तो यह है कि पाश्चात्य जीवनशैली एवं सभ्यता-संस्कृति में स्वयं ही प्रसन्नता का पैमाना ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलता है। पाश्चात्य जगत के तमाम लोग आज भारत आकर शांति प्राप्त करने की साधना में लगे हैं। इस प्रकार स्पष्ट रूप से देखने में आ रहा है कि जब पाश्चात्य जगत के लोग स्वयं प्रसन्नता का पैमाना ढूंढ़ने भारत आ रहे हैं तो भारतीयों को अपनी ही जड़ों यानी अपनी जीवनशैली एवं सभ्यता-संस्कृति में प्रसन्नता का पैमाना ढूंढ़ना चाहिए, कहीं और भटकने के बजाय यदि हम अपने में ही संतुष्ट एवं प्रसन्न रहना सीख लें तो किसी भी तरह की दुख-तकलीफ नहीं रह जायेगी और हमारी प्रसन्नता देखकर दुनिया को भी हमसे प्रसन्न होेने का पैमाना सीखने के लिए विवश होना पड़ेगा।

चूंकि, हमारी संस्कृति में धर्म एवं अध्यात्म को बहुत व्यापक रूप से महत्व दिया गया है। यहां की संस्कृति में माना जाता है कि कण-कण में ईश्वर का वास है। जब कण-कण में ईश्वर का वास है तो इस दृष्टि से पूरी सृष्टि ही अपनी है और पूरी सृष्टि को ही अपना मानकर जीवन यापन करना है। वैसे भी, हमारी संस्कृति में कहा गया है कि ईश्वर जिस स्थिति में रखे, उसी में प्रसन्न रहना चाहिए क्योंकि ईश्वर की इच्छा के बिना कुछ भी संभव नहीं है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा था कि मनुष्य का अधिकार सिर्फ कर्म पर है, फल तो ईश्वरीय कृपा से मिलता है, इसलिए मनुष्य को फल की इच्छा किये बिना ही अनवरत अपने कर्म करते रहना चाहिए। पाश्चात्य जगत जहां वर्तमान में मौज-मस्ती के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देता है वहीं भारतीय संस्कृति में अतीत से सीख लेते हुए वर्तमान को ठीक से जीते हुए भविष्य को भी अच्छा बनाने की प्रेरणा देती है।

भारतीय संस्कृति स्पष्ट रूप से सीख देती है कि यदि कोई वर्तमान में परेशान है तो यह उसके पूर्व जन्मों का प्रारब्ध भी हो सकता है, इसलिए वर्तमान में यदि अच्छे कर्म किये जायेंगे तो इससे न केवल पूर्व जन्मों का प्रारब्ध कटेगा बल्कि अगले जन्म के लिए भी पुण्य का संचय होगा। इसका अर्थ यही हुआ कि भारतीय जीवनशैली में भूत, वर्तमान एवं भविष्य तीनों की बात कही गई है। क्या इस तरह की सीख अन्य कहीं और देखने को मिलती है व्यक्ति जब जीवन में कभी बहुत निराश होता है तो वह ऊपर वाले को याद करता है और निश्चित रूप से कोई अदृश्य शक्ति उसे सहारा देती है जिससे उसका जीवन सरल एवं सुखमय बनता चला जाता है। भारतीय संस्कृति में परिवार को सबसे बड़ी पूंजी माना गया है। जब किसी को किसी प्रकार का कष्ट होता है तो पूरे परिवार के साथ खड़ा होने से उसका दुख हल्का हो जाता है। इस प्रकार भारतीय संस्कृति में इस प्रकार की ऐसी अनगिनत बातें कही गई हैं जिससे व्यक्ति बार-बार जीवन जीने के लिए उठ खड़ा होता है। वास्तव में देखा जाये तो प्रसन्नता का पैमाना तो यही है।

– जगदम्बा सिंह

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