राजनीति में तो वैसे बहुत पहले से यह खेल चल रहा है कि आम जनता को मुफ्त में कुछ वायदा कर या देकर चुनावी वैतरणी को पार किया जा सकता है और ऐसा हिन्दुस्तान की राजनीति में कई बार देखने को मिला भी है।
हालांकि, हिन्दुस्तान में मुफ्त की राजनीति का खेल कोई नया नहीं है, किन्तु राजनीति में जबसे आम आदमी पार्टी का प्रवेश हुआ है तब से राजनीति में मुफ्तखोरी का खेल और अधिक बढ़ गया है। जो दल मुफ्तखोरी के मामले को राजनीति में आगे नहीं बढ़ाना चाहते हैं, मजबूरी में उन्हें भी ऐसा करना पड़ता है।
वैसे, देखा जाये तो राजधानी दिल्ली में इसके साइड इफेक्ट अब दिखने शुरू हो गये हैं। दिल्ली में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के समय जितनी बसें थीं, उनमें निरंतर कमी होती जा रही है। बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में कोई भी बड़ा कार्य आम आदमी पार्टी के शासनकाल में नहीं हो पाया है।
कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि मुफ्तखोरी की राजनीति में तात्कालिक लाभ तो मिल जाता है किन्तु उसके दीर्घकालिक परिणाम अच्छे नहीं आते हैं। सभी दलों को इस पर विचार करने की आवश्यकता है।
– आशीष गुप्ता, वेस्ट विनोद नगर (दिल्ली)