अजय सिंह चौहान || सनातन के धर्मग्रंथों में भगवान विष्णु और माता शक्ति के अनेकों अवतारों का जिक्र तो कई स्थानों पर मिलता है। लेकिन भगवान महादेव के अवतारों का उल्लेख बहुत ही कम पढ़ने या सूनने को मिलता है। और भगवान महादेव के जिन अवतारों के विषय में हमें कभी-कभार पढ़ने या सूनने को मिलता है उसमें वैसे तो भैरव के आठ अवतारों को बताया गया है लेकिन उनमें भैरवनाथ और बटुक भैरव की मान्यता सबसे ज्यादा बताई जाती है। इसलिए आज हम आप लोगों को भगवान भोलेनाथ के उस भीषण अवतार, यानी भैरव नाथ से जुड़े कुछ पौराणिक और धार्मिक साक्ष्यों से अवगत करवाएंगे जिन्हें उनके भक्त अपने प्रमुख रक्षक के रूप में मानते हैं।
सबसे पहले तो बता दें कि शिव महापुराण में वर्णित ब्रह्मजी और भगवान विष्णु के बीच हुए संवाद में भैरव की उत्पत्ति से जुड़ा उल्लेख प्रमुखता से मिलता है। इसके अलावा विभिन्न धार्मिक गं्रथों के आधार पर माना जाता है कि भगवान भैरवनाथ या काल भैरव के जन्म या उनकी उत्पत्ति के रहस्य को भी भगवान शिव के अपमान से जुड़ा हुआ है।
भैरवनाथ से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार काल भैरव का अवतार मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी के प्रदोषकाल में हुआ था। शिव पुराण के अनुसार, अंधकासुर नामक दैत्य के संहार के कारण भगवान् शिव के रक्त से भैरव की उत्पत्ति हुई थी। एक अन्य कथा और पौराणिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार एक बार ब्रम्हाजी ने भगवान शंकर के विरुद्ध कोई ऐसी बात कह दी थी जिसके कारण शिवजी को क्रोध आ गया और उसी क्रोध के परिणामस्वरूप उनके त्रिनेत्र से भैरव का जन्म हुआ।
भैरव ने क्रोधित होकर ब्रम्हाजी का पांचवा शीश काट दिया। लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि भैरव को ब्रम्ह हत्या का पाप लगा। और कहा जाता है कि भैरव रूपी भगवान शिव का वह अवतार ब्रम्हा हत्या के दोष का निवारण ढूंढते-ढूंढते जब विष्णुजी के पास गया तो विष्णु जी ने उन्हें पृथ्वी पर जाने का सुझाव दिया और साथ ही यह भी कहा कि जहां कालाग्नि या सृष्टि का नाश करने वाली अग्नि मिले वहां जाकर अपने दोष का निवारण करें।
विष्णु जी के सुझाव पर सहमत होकर भैरव जी ब्रम्हाजी का कटा हुआ शीश लिए धरती पर विचरण करने लगे। विचरण करते-करते वे अवंतिका नगरी यानी जिसे उज्जैन के नाम से जाना जाता है वहां क्षिप्रा नदी के घाट पर पहुंच गए। उज्जैन में आज जिस स्थान पर काल भैरव का मंदिर है उसके बारे में कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहां उन्हें ब्रम्ह हत्या के पास से मुक्ति भी मिली और शांति भी मिली।
इसके अलावा हमारे धर्म ग्रंथों में भगवान शिव के जिन दो रूपों का वर्णन मिलता है उनमें से एक स्वरूप को जगत के रक्षक के रूप में जाना जाता है। जबकि दूसरा स्वरूप ठीक उसके विपरीत माना जाता है। इस दूसरे स्वरूप के अनुसार वे कालभैरव के रूप में दुष्टों का नाश करते हैं। और उनका यह काल भैरव रूप अति विकराल और भयंकर माना जाता है।
भगवान भैरव भय को नष्ट करने वाले देवता के रूप में जाने जाते हैं। भैरव के आठ रूप माने जाते हैं और मान्यता है कि भैरव के किसी भी रूप की साधना या पूजा की जा सकती है। भैरव को पूरे परिवार का रक्षक माना जाता है। कुत्ते को भैरव जी के वाहन के रूप में माना जाता है। और ज्योतिषशास्त्र के अनुसार भैरव जी को प्रसन्न करने के लिए कुत्तों को भोजन अवश्य खिलाना चाहिए।
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भैरव नाथ के नाम से अभिप्राय है मनुष्य को भय अथवा डर से मुक्ति प्रदान करनेे लावा। इसी प्रकार से भैरव नाथ के नाम से एक और अर्थ जुड़ा है, जिसका अर्थ भारी या भीषण से है। ऐसा भी माना जाता है की भैरवनाथ के नाम के तीन शब्दों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्तियां समाहित है और इसीलिए भैरव एक प्रकार की पदवी भी मानी जाती है।
धर्मग्रंथों में भैरव को भगवान शिव के अन्य अनुयायियों जैसे भूत, प्रेत और पिशाच का अधिपति भी माना जाता है। यह भी माना जाता है कि भैरव नाथ की उत्पत्ति भगवान शिव के रुधिर अर्थात रक्त से हुई थी और बाद में यही रक्त दो भागो में बंट गया, जो पहला बटुक भैरव के नाम से प्रसिद्ध हुआ और दूसरा रूप काल भैरव के नाम से जाना जाने लगा।
भैरव को मानने वाले दो संप्रदायों में बंटे हुए हैं। इसमें से पहला काल भैरव और दूसरा बटुक भैरव है। इसमें काल भैरव काशी और उज्जैनी के द्वारपाल हैं। इसमें उज्जैनी में स्थित काल भैरव की प्रतिमा को जाग्रत प्रतीमा माना जाता है जो आज भी मदीरापान करती है।
इनके अतिरिक्त कुमाऊ मंडल में नैनीताल के निकट घोड़ाखाल नामक क्षेत्र में बटुक भैरव जी का जो मंदिर है उसे आज गोलू देवता के नाम से भी जाना जाता हैं। बटुक भैरव को भगवान शिव का बाल रूप माना जाता है। बटुक भैरव को आनंद भैरव के नाम से भी जाना जाते है। यहां उनके सौम्य स्वरूप की आरधना करना अत्यन्त ही सफल और फलदायी माना जाता है।
मान्यताओं के अनुसार श्री काल भैरव को रात्रि के देवता या जाग्रत देवता के रूप में माना जाता है। और शायद इसीलिए उनकी पूजा क्षेत्रपाल के रूप में भी की जाती है। इसके अलावा भैरव की पूजा कुल देवता के रूप में भी होती है।
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भैरव के आठों स्वरूपों में काल भैरव को परमपूज्य माना गया है। भगवान शिव ने भैरव का नामकरण करते हुए स्पष्ट किया कि आपसे काल भी डरेगा। और इसी कारण से मृत्युलोक में आपको ‘काल भैरव’ के नाम से जाना जायेगा।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भैरव राहु ग्रह या छाया ग्रह के देवता माने जाते हैं। और इसीलिए वे लोग जो राहु से मनोवांछित लाभ पाने के इच्छुक होते हैं वे भैरव की उपासना करते हैं और उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। इसलिए ज्योतिष शास्त्र में भी भैरव नाथ की मान्यता कम नहीं है। भैरव को तांत्रिक और योगियों का इष्ट देव भी माना जाता है। तंत्र और मंत्र साधक कई प्रकार की सिद्धियां प्राप्त करने के लिए भैरव की उपासनाएं करते हैं।
धर्म के ज्ञाताओं की राय है कि देश भर में काल भैरव के तीन प्रमुख तीथ स्थान हैं, जिनमें से उज्जैन के काल भैरव को प्रथम माना जाता है। इसके बाद काशी के काल भैरव और गया में श्री भैरव स्थान के काल भैरव को माना जाता है। लेकिन इन तीनों में और संपूर्ण देश के भैरव तीर्थों में उज्जैन के श्री काल भैरव को प्रथम माना जाता है।
उज्जैन में स्थित काल भैरव मंदिर का जिक्र स्कन्द पुराण के अवन्ति खंड में भी मिलता है। उज्जैनी में स्थित काल भैरव की यह प्रतिमा जाग्रत प्रतीमा मानी जाती है। और इस प्रतिमा को जाग्रत इसलिए माना जाता है क्योंकि यह आज भी साक्षात मदीरापान करती है। हालांकि, इस प्रतिमा के मदीरापान करने का कारण क्या है और क्यों मदीरापान करवाया इस विषय में कुछ खास प्रमाण मौजूद नहीं है। लेकिन, कुछ जानकार लोग इसे एक षडयंत्र मानते हैं। उनके अनुसार सनातन में किसी भी देवी या देवता को मदीरापान करवाना वर्जित है।
हिन्दू धर्म में भैरव का वर्णन अधिकतर विशाल आकार और काले रंग वाले शारीरक रूप-रंग में किया और दर्शाया जाता है। इनके एक हाथ में भयानक दंड या तलावार धारण किए हुए और दूसरे हाथ में कटा हुआ शीश दर्शाया जाता है। माना जाता है कि भैरव काले कुत्ते की सवारी करते थे इसलिए उनके साथ काले कुत्ते को भी दिखाया जाता है। दक्षिण भारत में भैरव को ‘शास्ता’ के नाम से और महाराष्ट्र में ‘खंडोबा’ के नाम से जाना जाता है।
वैसे तो भैरव के सभी मंदिरों में हर दिन श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है, लेकिन प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष माह की अष्टमी पर काल भैरव की उपासना विशेष रूप से लाभकारी मानी जाती है। इसके अलावा रविवार, मंगलवार, अष्टमी और चतुर्दशी को भी भैरव की आराधना करने का खास महत्व है। ऐसा माना जाता है भैरव को प्रसन्न करना बहुत आसान होता है और वह अपने भक्तों की आराधना से बहुत जल्दी संतुष्ट और प्रसन्न भी हो जाते हैं।
भैरव की पूजा-अर्चना में नारियल, काले तिल, सिंदूर, सरसो का तेल और फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा काल भैरव की 8 परिक्रमा करने वाला व्यक्ति अपने जीवन में किए गए सभी पापों से मुक्त हो जाता है।