अजय सिंह चौहान || ऋषि-मुनियों में श्रेष्ठ माने जाने वाले महर्षि कश्यप द्वारा संपूर्ण सृष्टि की सृजना में दिए गए महायोगदान की यशोगाथा हमारे वेदों, पुराणों, स्मृतियों, उपनिषदों एवं अन्य अनेक धार्मिक साहित्यों में भरी पड़ी है, जिसके कारण उन्हें ‘सृष्टि के सृजक’ की उपाधि से विभूषित किया जाता है। उनके बारे में कहा जाता है कि महर्षि कश्यप पिघले हुए सोने के समान तेजवान थे। उनकी जटाएं अग्नि की ज्वालाओं के जैसी थीं।
सुर और असुरों के मूल पुरूष मुनिराज कश्यप के जन्म के विषय में श्रीनरसिंह पुराण में बताया गया है कि मरीचि ऋषि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे और मरीचि ऋषि तथा उनकी पत्नी सम्भूति ने ही महर्षि कश्यप को जन्म दिया था। श्री विष्णु पुराण में कहा गया है कि महर्षि कश्यप सप्तऋषियों में इसीलिए प्रमुख माने गए हैं क्योंकि उन्होंने अपने श्रेष्ठ गुणों, प्रताप एवं तप के बल पर देवों के समान इस सृष्टि के अनेकों रहस्यों को समझ लिया था।
महर्षि कश्यप द्वारा इस सृष्टि के सृजन में दिए गए अपने महायोगदानों से हमारे सनातन साहित्य के वेद, पुराण, स्मृतियां, उपनिषद और ऐसे अन्य अनेकों धार्मिक साहित्य भरे पड़े हैं, जिसके कारण उन्हें ‘सृष्टि का सृजक’ भी माना जाता है। महर्षि कश्यप एक अत्यंत ही तेजवान ऋषि थे, इसीलिए वे ऋषि-मुनियों, सुर-असुर सभी के लिए मूल पुरूष माने जाते थे। संपूर्ण जीवनकाल तक महर्षि कश्यप मुनि निरन्तर धर्मोपदेश करते रहे, जिसके कारण देवताओं ने उन्हें ‘महर्षि’ जैसी श्रेष्ठतम उपाधि दी थी।
ऋषि कश्यप एक अत्यंत नीतिप्रिय मुनिराज थे इसलिए वे स्वयं भी धर्म और नीति के अनुसार ही चलते थे और दूसरों को भी इसी नीति का पालन करने का उपदेश देते थे। महर्षि कश्यप ने अपने जीवनकाल में कभी भी धर्म या अधर्म का पक्ष नहीं लिया। उन्होंने ‘कश्यप-संहिता’ की रचना करके तीनों लोकों में अमरता हासिल की। इसके अलावा महर्षि कश्यप ने भविष्य के समाज को एक नई दिशा देने के लिए ‘स्मृति-ग्रन्थ’ जैसे महान ग्रन्थ की रचना की थी।
माना जाता है कि मुनिराज कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर था, जहां वे परमपिता ब्रह्म के ध्यान में मग्न रहते थे। देश-विदेश के अनेकों इतिहासकारों, पुरातत्ववेत्ताओं, पौराणिक तथा वैदिक साहित्यिक एवं ऐतिहासिक दस्तावेजों से यह सिद्ध होता है कि ‘केस्पियन सागर’ एवं भारत के शीर्ष प्रदेश कश्मीर का नामकरण भी महर्षि कश्यप के नाम पर ही हुआ था। और उस समय महर्षि कश्यप ने ही सर्वप्रथम कश्मीर में शासन भी किया था।
श्रीनरसिंह पुराण के पांचवें अध्याय में महर्षि कश्यप के जीवन से जुड़ी एक विस्तृत जानकारी के अनुसार महर्षि कश्यप की पत्नियों से ही मानस पुत्रों का जन्म हुआ था। उसी के बाद से इस सृष्टि का सृजन हुआ और उसी के परिणामस्वरूप महर्षि कश्यप ‘सृष्टि के सृजक’ या ‘सृष्टि के सृजनकर्ता’ कहलाए।
श्रीनरसिंह पुराण में कश्यप ऋषि के जीवन से जुड़े उल्लेखों से पता चलता है कि उनकी कुल 17 पत्नियां थी और उनमें से 13 पत्नियां राजा दक्ष की कन्याएं थी। श्रीनरसिंह पुराण के अनुसार जिन 13 दक्ष कन्याओं का विवाह कश्यप ऋषि से हुआ था उनके नाम- 1. अदिति, 2. दिति, 3. दनु, 4. अरिष्टा, 5. सुरसा, 6. खसा, 7. सुरभि, 8. विनता, 9. ताम्रा, 10. क्रोधवशा, 11. इरा, 12. कद्रू और 13. मुनि थे।
कश्यम ऋषि की इन सभी 13 पत्नियों ने अपने-अपने गुण, स्वभाव, आचरण, कर्म एवं नाम के अनुसार अपनी-अपनी संतानों को जन्म दिया। इसीलिए महर्षि कश्यप को सृष्टि का सृजनकर्ता’ कहा जाता है।
जिनमें से अदिति नामक ऋषि कश्यप की पत्नी ने 12 पुत्रों को जन्म दिया जिनको अदिति पुत्र या आदित्य कहा गया है। जिनमें सबसे प्रमुख और सर्वव्यापक देवाधिदेव भगवान विष्णु का त्रिविक्रम नामक वह अवतार भी शामिल है जिसे हम बौने ब्राह्मण के रूप में वामन अवतार के नाम से जानते हैं। भगवान विष्णु के त्रिविक्रम नामक इसी अवतार को मानव रूप में सबसे पहला अवतार माना गया है। इस अवतार को दक्षिण भारत में उपेन्द्र के नाम से भी जाना जाता है।
वेदों में जहां अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है, वहीं सूर्य को भी आदित्य कहा गया है। लेकिन यहां इसका यह मतलब नहीं कि आदित्य ही सूर्य है या सूर्य ही आदित्य है। हालांकि आदित्यों को सौर-देवताओं में शामिल किया गया है और उन्हें सौर मंडल का कार्य सौंपा गया है।
जहां अदिति नामक पत्नी ने महर्षि कश्यप की संतानों के रूप में देवों को अपने गर्भ से जन्म दिया था वहीं उनके गर्भ से असूरों के रूप में हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री का भी जन्म हुआ था। जिसमें से हिरण्यकश्यप का भगवान नरसिंह और हिरण्याक्ष भगवान वाराह के हाथों वध किया गया था।
इसी प्रकार महर्षि कश्यप को उनकी दनु नामक पत्नी के गर्भ से 61 पुत्रों की प्राप्ति हुई थी जिनमें हयग्रीव, एकचक्र, महाबाहु और महाबल जैसे कुछ नाम प्रमुख हैं। जबकि पत्नी अरिष्टा के गर्भ से गन्धर्व गणों का जन्म हुआ।
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सुरभि नामक पत्नी ने जहां गाय, भैंस तथा अन्य दो खुर वाले पशुओं का जन्म दिया वहीं विनता नामक पत्नी के गर्भ से दो विख्यात पुत्रों का जन्म हुआ जिनमें गरूड़ और अरूण हैं। इनमें से गरूड़ तो भगवान विष्णु के वाहन हो गये जबकि अरूण सूर्यदेव के सारथि बन गये। क्रोधवशा नामक पत्नी ने बाघ जैसे हिंसक जीवों को पैदा किया।
कद्रू नामक पत्नी के गर्भ से नाग वशं की उत्पत्ति हुई जिनकी संख्या 8 बताई जाती है। उन 8 नागों के नाम अनंत नाग यानी शेष नाग, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक थे। इसी तरह कश्मीर में आज भी उन नागों के नाम पर स्थानों के नाम हैं- जिनमें अनंतनाग, कमरू, कोकरनाग, वेरीनाग, नारानाग, कौसरनाग आदि। इसमें से अनंतनाग को नागवंशियों की राजधानी माना गया था। मान्यता है कि इन्हीं 8 नागों से नागवंश की स्थापना हुई थी। इसीलिए विभिन्न पुराणों में कश्मीर को नागों का देश भी कहा गया है।
इसी प्रकार के अन्य अनेकों उदाहरणों और साक्ष्यों के माध्यम से यह कहा जा सकता है कि महर्षि कश्यप द्वारा इस सृष्टि के सृजन में दिए गए उनके महायोगदानों के साक्ष्यों से हमारे सनातन साहित्य के विभिन्न वेद, पुराण, स्मृतियां, उपनिषद और ऐसे अन्य अनेकों धार्मिक साहित्य भरे पड़े हैं, जिसके कारण उन्हें ‘सृष्टि का सृजक’ माना जाता है।
महर्षि कश्यप एक अत्यंत ही तेजवान ऋषि थे, इसीलिए तो वे ऋषि-मुनियों में श्रेष्ठ माने जाते थे। सुर हो या असुर दोनों ही के लिए वे मूल पुरूष माने जाते हैं। प्रकृति तथा सृष्टि के नियमों के अनुसार ही उन्होंने सभी के साथ धर्म और नीति का पालन करते हुए अपना संतुलन बनाए रखा। अपने संपूर्ण जीवनकाल तक महर्षि कश्यप निरन्तर धर्मोपदेश करते रहे, जिसके कारण देवताओं ने उन्हें ‘महर्षि’ जैसी श्रेष्ठतम उपाधि दी थी।