भगवान शिव के प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों मंदिरों में चैथे स्थान पर पूजे जाने वाला ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Omkareshwar Jyotirling) मंदिर मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है। यह मंदिर नर्मदा नदी के किनारे मन्धाता या शिवपुरी नामक ओम के आकार में बने प्राकृतिक टापू पर है। पुराणों में इस टापू को ओमकार पर्वत पर कहा गया है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Omkareshwar Jyotirling) की एक सबसे अनोखी बात यह है कि यह दो ज्योतिस्वरूप शिवलिंगों में विभक्त है, यानी दो अलग-अलग ज्योतिर्लिंगों में स्थापित है इसलिए इनके मंदिर भी अलग-अलग हैं। इनके नाम हैं ओमकारेश्वर और ममलेश्वर (Mamleshwar Jyotirling) हैं। इन दोनों मंदिरों में दर्शन करने पर ही एक ज्योतिर्लिंग की यात्रा पूरी मानी जाती है। इसमें से एक श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा के उत्तरी तट के टापू पर है जबकि श्री ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर नर्मदा के दक्षिणी तट पर टापू से बाहर स्थित है।
नर्मदा के दक्षिणी तट पर स्थित श्री ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग (Mamleshwar Jyotirling) को पुराणों में अमलेश्वर या विमलेश्वर के नाम से जाना जाता है। नियमों और मान्यताओं के अनुसार पहले ओंकारेश्वर (Omkareshwar Jyotirling) का दर्शन करके लौटते समय अमलेश्वर-दर्शन किया जाना चाहिए, लेकिन यात्री चाहे तो सुविधा के अनुसार पहले अमलेश्वर का दर्शन कर सकते हैं और तब नर्मदा पार करके ओमकारेश्वर जा सकते हैं।
इसमें से नर्मदा नदी के टापू पर स्थित भगवान ओमकारेश्वर को स्वयभू ज्योतिर्लिंग माना जाता है। ओमकारेश्वर के नाम के नाम के विषय में भी माना जाता है कि ओम के आकार वाले पर्वत पर होने के कारण इसे ओमकारेश्वर (Omkareshwar Jyotirling) नाम दिया गया। धर्मग्रंथों में बताया गया है कि ओमकारेश्वर और अमलेश्वर ज्योतिस्वरूप शिवलिंगों में 68 तीर्थों के देवी-देवता परिवार सहित निवास करते हैं।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Omkareshwar Jyotirling) के दर्शनों के लिए आने वाले सर्वसाधारण भक्तों और श्रद्धालजुओं को इस बात की जानकारी नहीं होने के अभाव में किसी एक ही मंदिर में दर्शन करके लौट जाते हैं जिसकी वजह से उनकी इस ज्योतिर्लिंग की यात्रा अधूरी ही रह जाती है।
शिवपुराण में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसके अलावा श्री ओंकारेश्वर (Omkareshwar Jyotirling) और श्री ममलेश्वर (Mamleshwar Jyotirling) के दर्शन से पहले नर्मदा-स्नान के पावन फल का वर्णन भी विस्तार से किया गया है।
यहां दो ज्योतिस्वरूप शिवलिंग ओमकारेश्वर (Omkareshwar Jyotirling) और ममलेश्वर शिवलिंगों (Mamleshwar Jyotirling) को लेकर मान्यता है कि एक बार नारद मुनि विंध्य पर्वत पर पहुँच गये। विंध्य पर्वत ने बड़े आदर-सम्मान के साथ नारद जी का स्वागत किया और कहा कि मैं सर्वगुण सम्पन्न हूं, मेरे पास हर प्रकार की सम्पदा है, किसी प्रकार की कोई कमी नहीं है।
विंध्य पर्वत के अहंकार को देखकर नारद जी ने उसके अहंकार का नाश करने की सोची। नारद जी ने विंध्य पर्वत को बताया कि तुम्हारे पास सब कुछ है, लेकिन मेरू पर्वत तुमसे बहुत ऊँचा है और उसके शिखर देवताओं के लोकों तक पहुंचे हैं। लेकिन, मुझे लगता है कि तुम्हारे शिखर वहां तक कभी नहीं पहुंच पाएंगे। नारद जी की बात सुनकर विन्ध्याचल को अपनी गलती का एहसास हुआ।
विंध्य पर्वत ने उसी समय निर्णय किया कि अब मैं वह भगवान शिव की आराधना और तपस्या करूंगा। इसके बाद उसने नर्मदा नदी के किनारे जहां आज ममलेश्वर शिवलिंग (Mamleshwar Jyotirling) स्थापित है उस स्थान पर मिट्टी का शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की कठोर तपस्या शुरू कर दी। कई वर्षों की कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव उसकी तपस्या से प्रसन्न और विंध्य पर्वत को साक्षात दर्शन दिया।
भगवान शिव ने विंध्य पर्वत से वर मांगने के लिए कहा। जिसके बाद विन्ध्याचल पर्वत ने कहा कि भगवन यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो कृपया मुझे कार्य की सिद्धि करने वाली अभीष्ट बुद्धि प्रदान करें और शिवलिंग के रूप में सदा-सदा के लिए यहां विराजमान हो जायें।
विन्ध्यपर्वत की याचना को पूरा करते हुए भगवान शिव ने वरदान दे दिया। उसी समय देवतागण तथा कुछ ऋषिगण भी वहाँ आ गये। देवताओं और ऋषियों के विशेष अनुरोध पर वहाँ स्थित ज्योतिर्लिंग दो स्वरूपों में विभक्त हो गया। जिसमें से एक प्रणव लिंग ओंकारेश्वर (Omkareshwar Jyotirling) और दूसरा पार्थिव लिंग ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग (Mamleshwar Jyotirling) के नाम से प्रसिद्ध हुए।
यदि पौराणिक और पारंपरिक तरीके से ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (Omkareshwar Jyotirling) की यात्रा की जाये तो यह यात्रा मूलतः तीन दिन की मानी जाती है और तो इन तीन दिनों की यात्रा में यहाँ के सभी तीर्थ आ जाते हैं।
नर्मदा के दक्षिणी तट पर जो बस्ती है उसे विष्णुपुरी के नाम से जाना जाता है। जबकि ओमकारेश्वर (Omkareshwar Jyotirling) नगरी का मूल और पौराणिक नाम ‘मान्धाता‘ ही है। पुराणों के अनुसार सूर्यवंशी राजा मान्धाता ने यहाँ नर्मदा किनारे इस ओम पर्वत पर घोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और शिवजी के प्रकट होने पर उनसे यहीं ओमकार पर्वत पर निवास करने का वरदान माँग लिया। इसीलिए उस महान राजा मान्धाता के नाम पर ही इस पर्वत का नाम मान्धाता पर्वत हो गया और यह प्रसिद्ध तीर्थ नगरी ओमकार-मान्धाता के रूप में पुकारी जाने लगी।
– अजय सिंह चौहान