अजय सिंह चौहान || यह बात तो सभी जानते हैं और कहते भी हैं कि बाबा अमरनाथ जी की यात्रा हिन्दू धर्म में सबसे कठीन यात्रा है। लेकिन फिर भी यहां जाने के लिए सभी श्रद्धालु लालायित रहते हैं। तो आज हम यह जानेंगे कि आखिर ऐसा क्यों है कि अगर यह यात्रा सबसे कठीन यात्रा है फिर भी इसमें शामिल होने के लिए देशभर से हिन्दू श्रद्धालु यहां आते हैं और अपने आप को भाग्यशाली समझते हैं। वे सभी यात्री जो इसमें पहले कभी शामिल हो चुके होते हैं या जो जाना चाहते हैं वे यहां के बारे में हर बात जानना चाहते हैं कि आखिर इस यात्रा में ऐसा क्या है जो यह यात्रा इतनी कठीन कहलाती है।
वैसे तो मैंने इस यात्रा से संबंधित बहुत सारी अलग-अलग जानकारियां दी हैं, लेकिन, आज मैं आपको इस यात्रा के रास्ते में आने वाली मात्र उस एक सबसे ज्यादा कठीन और बड़ी परेशानियों में से एक को लेकर अपने अनभवों को बता रहा हूं और जो सबसे ज्यादा चर्चा में रहती है और यादगार भी होती है। इससे पहले मैं आप लोगों को यह भी बता दंू कि अगर आप इस यात्रा में पहले कभी भी गये हो और पहलगांव वाले रास्ते से नहीं गये हो तो फिर इस यात्रा का वह खास और यादगार अनुभव आप लोगों को नहीं मिला है जो इस रास्ते में मिलता है।
बाबा अमरनाथ जी की इस यात्रा के दौरान जो बेसकैंप बनाये जाते हैं उनमें से सबसे पहला कैंप पहलगांव में बनता है और हर साल पहलगांव का यह यात्री बेस केंप छह किलोमीटर दूर नुनवन नामक एक मैदानी इलाके में लिद्दर नदी के किनारे पर बसाया जाता है। जम्मू से आने वाले सभी अमरनाथ यात्री यहां से यात्रा शुरू करने से पहले पहलगांव के इसी बेसकैंप में अपनी पहली रात बिताते हैं और दूसरे दिन सुबह-सुबह यहां से 16 किलोमीटर दूर चंदनबाड़ी नाम के एक गांव में पहुंचते हैं।
कश्मीर की वादियों में निवास करने वाले बाबा अमरनाथ जी की गुफा तक जाने के मार्ग में प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है। इस यात्रा के रास्ते में बहने वाली लिद्दर और आरू नाम की नदियां इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देतीं हैं।
बाबा अमरनाथ जी यात्रा के दौरान चंदनबाड़ी में इसी नदी पर लोहे का एक छोटा-सा पुल बना हुआ है जिसको पार करने के बाद ही श्री अमरनाथ जी की पैदल यात्रा की असली शुरूआत होती है। जैसे-जैसे यात्री चंदनबाड़ी से पैदल यात्रा में आगे बढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे उनके साथ लिद्दर नदी उल्टी दिशा में बहती हुई पहलगांव की तरफ को बहती जाती है। कहीं-कहीं तो इस नदी का शौर इतना तेज होता है कि यात्री आपस में बात भी करते हैं तो सुनाई नहीं देता, जबकि कुछ जगहों पर तो यही नदी एक दम शांत नजर आती है।
अमरनाथ जी यात्रा के दौरान यात्री जैसे-जैसे इस पैदल मार्ग में चंदनबाड़ी से लगभग 3 किलोमीटर ही आगे को पहुंचते हैं उनके सामने एक विशाल पवर्त की चढ़ाई आ जाती है। अमरनाथ यात्रा के इस संपूर्ण रास्ते में यह एक ऐसी चढ़ाई है जो यात्रा के पहले ही दिन और पहले ही पहर में परीक्षा के रूप में सामने आती है। दरअसल, इस चढ़ाई को पिस्सू टाॅप या पिस्सू घाटी के नाम से जाना जाता है।
पिस्सू घाटी की इस चढ़ाई को अमरनाथ यात्रा के परंपरागत मार्ग यानी पहलगांव वाले इस मार्ग की सबसे कठीन, सबसे खतरनाक और सबसे यादगार चढ़ाई कहा जाता है। इस यात्रा मार्ग में आने वाली यह चढ़ाई यात्रा के पहले ही दिन और पहले ही पहर में हर यात्री के दम-खम की परीक्षा ले लेती है। वैसे तो इस रास्ते में इस तरह की और भी कई चढ़ाईयां भरी हुई हैं लेकिन, उन सब में से यह एकमात्र ऐसी चढ़ाई है जिसमें चढ़ाई करते समय अगर किसी भी यात्री से जरा-सी चुक हो जाय तो उस यात्री के पीछे जो अन्य यात्री चढ़ाई कर रहे होते हैं उनको किसी बड़ी दुर्घटना का सामना करना पड़ सकता है।
दरअसल इस चढ़ाई को पिस्सू टाॅप या पिस्सू घाटी के नाम से जाना जाता है। यह घाटी समुद्रतल से 11,120 फीट की ऊंचाई पर है। मान्यताओं के अनुसार इस घाटी को पिस्सू घाटी इस लिए कहा जाता है क्योंकि, यहां देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान युद्ध हुआ था, जिसमें देवताओं ने उन सभी राक्षसों को यहां मार-मार कर और पीस-पीस कर एक पिस्सू कीड़े की तरह का बना दिया था। मान्यता है कि तभी से यह घाटी पिस्सू घाटी के नाम से जानी जाती है। और शायद इसीलिए अमरनाथ जी की इस यात्रा में पिस्सू घाटी ही सबसे अधिक जोखिम भरा रास्ता भी कहा गया है।
अगर हम बात करें पिस्सू घाटी की इस चढ़ाई के बारे में तो जितने खूबसुरत यहां के प्राकृतिक दृश्य हैं उससे कहीं ज्यादा हैरान कर देने वाली इस पर्वत की खड़ी चढ़ाई है। दरअसल यह खतरनाक इसलिए है क्योंकि इस पहाड़ पर चढ़ने के लिए जो रास्ता है वह पूरी रह से प्राकृतिक रास्ता है। यहां किसी भी प्रकार से कोई सीढ़ियां बनी हुई नहीं है और ना ही किसी प्रकार का कोई ऐसा सहारा है जिसको पकड़ कर यात्री आगे को बढ़ सके। यह एक दम कच्चा रास्ता है। इसमें ना तो कटरा में स्थित वैष्णव देवी की पहाड़ी जैसा कोई निश्चित रास्ता बना हुआ है और ना ही कोई ऐसी सुविधाएं हैं कि सभी को एक ही लाईन से चलना है या सभी को यहां चढ़ाई करते वक्त नियमों का पालन करना है।
यह एक दम खड़ी चढ़ाई वाला विशाल और खतरनाक पहाड़ है और इस पर चढ़ने वाला रास्ता भी एक दम खुला हुआ है। यानी जिसको जिधर से जगह मिल जाये या जिसको जैसा आसानी से चढ़ने का रास्ता मिल जाय वह उधर से ही इसपर चढ़ना शुरू कर देता है। इसमें कहीं-कहीं तो छोटे-छोटे झरनों का पानी भी है जो कीचढ़ और फिसलन कर देता है। कहीं-कहीं सूखी मिट्टी भी है, कहीं बड़े-बड़े पत्थर भी हैं। कहीं-कहीं झाड़ियां हैं, बड़े-बड़े पैड़ भी हैं।
बाबा अमरनाथ जी यात्रा के दौरान पिस्सू टाॅप के इसी रास्ते से पालकी वाले भी अपनी सवारियों को ले जाते हैं और इसी रास्ते से घोड़े और खच्चर वाले भी आते-जाते रहते हैं। इसमें आगे बढ़ते हुए और चढ़ाई करते हुए यात्रियों से अगर चरा सी चूक हो जाती है, या उनके पैर फिसल जाते हैं तो वे किसी गहरी खाई में तो नहीं गिरते लेकिन, उनकी उस गलती के कारण कई छोटे-बड़े पत्थर लूड़कते हुए पिछे से आ रहे अन्य यात्रियों को घायल कर सकते हैं। इस पिस्सू टाॅप पर चढ़ाई करते वक्त कई यात्री तो जब पीछे मुड़ कर देखते हैं तो उन्हें लगता है कि न जाने हम कहां जा रहे हैं और अभी और कितना ऊपर चढ़ना पड़ेगा।
इसमें अक्सर कई सारे छोटे-बड़े हादसे होते देखे जा सकते हैं, जिनमें सबसे अधिक तो घोड़े या खच्चर वाली वो सवारियां होती हैं। इसके अलावा कई बार पैदल यात्रियों की गलतियों के कारण भी पत्थरों के फिसलने या लूढ़कने से पीछे आ रहे बाकी यात्रियों को भी घायल होते देखा जा सकता है।
यहां सबसे अधिक हादसे उन्हीं यात्रियों के साथ होते देखे जाते हैं जो इस चढ़ाई में चढ़ते वक्त जल्दी थक जाते हैं और बार-बार अपनी थकान मिटाने के लिए या सुस्ताने के लिए बीच में रूकते रहते हैं और आराम-आराम से इस चढ़ाई को पार करने की कोशिश करते हैं।
पिस्सू टाॅप या पिस्सू घाटी की इस चढ़ाई के खत्म होते ही, यात्री जैसे ही इसके ऊपर पहुंचते हैं वे वहां पहुंच कर और वहां का खूबसूरत नजारा देखकर दंग रह जाते हैं। लेकिन, जब वे पीछे मूड़कर उस चढ़ाई को देखते हैं जिसको वे लोग चढ़ कर आये होते हैं तो वे डर जाते हैं और आश्चर्यचकित होते हुए उस चढ़ाई में आने वाले बाकी के यात्रियों को देखते रहते हैं।
यहां आने वाले यात्रियों में से अधिकतर लोग इस घाटी पर चढ़ाई करते-करते बुरी तरह से थक जाते हैं। जबकि अधिकतर नौजवान और युवा यात्री इसको आराम से पार कर जाते हैं। दरअसल, यह घाटी उतनी खतरनाक और इतनी कठीन नहीं है जैसे कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए समझी जाती है। लेकिन, फिर भी खासकर अधिक उम्र के लोगों के लिए और खासकर महिलाओं के लिए यह अधिक कठीन चढ़ाई मानी जाती है। लेकिन अगर कोई भी व्यक्ति पैदल चलने का अनुभवी नहीं होता है या आलसी होता है खासकर उन्हीं को यहां सबसे अधिक कठिनाईयों हो सकती हैं।
इस घाटी की इतनी ऊंचाई पर पहुंच कर जब लगभग हर यात्री थ कर चूर हो चुका होता है तो उसे भूख भी उतनी ही अधिक लग चुकी होती है। ऐसे में भगवान शिव की कृपा और स्वयंसेवी संस्थाओं के द्वारा उन सभी यात्रियों के लिए वहां एक विशाल भण्डारे का प्रबंध किया हुआ होता है। कुछ यात्री तो वहां अपनी थकान मिटाने के लिए सुस्त पड़े हुए होते हैं और कुछ धीरे-धीरे उस भण्डारे में पहुंच कर उन तरह-तरह के पकवानों का आनंद लेने लग जाते हैं। कुछ देर यहां आराम करने और कुछ हल्का-फुल्का खाने के बाद सभी यात्री यहां से तुरंत आगे की यात्रा शुरू कर देते हैं और शाम होने से पहले तक शेषनाग झील के बैसकैंप पर पहुंचने की कोशिश करते हैं।