अजय सिंह चौहान || ताज नगरी आगरा से लगभग 70 किलोमीटर दूर, पूर्व दिशा में जाने पर बाह नामक स्थान मिलता है जो उत्तर प्रदेश के आगरा जिले की पूर्वी और आखिरी तहसील है। बाह नाम के इस स्थान से भी लगभग दस किलोमीटर उत्तर दिशा में जाने पर यमुना नदी के किनारे भगवान शिव का एक अति प्राचीन और प्रसिद्ध धाम मिलता है जिसे पौराणिक काल से ही बटेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है।
भगवान बटेश्वर के इस धाम को सभी तीर्थों का भांजा माना जाता है। माना यह भी जाता है कि यहां आज भी वह वटवृक्ष मौजूद है जिसके नीचे भगवान शिव ने विश्राम किया था इसलिए इस स्थान पर भगवान शिव को समर्पित बटेश्वर महादेव का मंदिर स्थापित किया गया है।
यहीं पर यमुना नदी के किनारे बटेश्वर धाम में 101 (एक सौ एक) मन्दिर हैं जिनको सैंकड़ों साल पहले यहां के राजा भदावर ने स्थापित करवाया था। उन्हीं मंदिरों में से एक है भगवान बटेश्वरनाथ का यह मंदिर। यहां पर हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष दूज के अवसर पर एक बहुत बड़ा मेला आयोजित किया जाता है जिसमें स्थानीय लोगों की भीड़ लगी रहती है।
हर साल लगने वाले प्रसिद्ध बटेश्वर मेले में आने वाले श्रद्धालु सबसे पहले भगवान बटेश्वरनाथ के मंदिर में मत्था टेकते हैं। उसके बाद ही उस मेले का आनंद लेते हैं। लेकिन, जो लोग यहां पहली बार आते हैं वे यहां आकर मंदिर परिसम में लटकती हुई सैकड़ों और हजारों की मात्रा में मौजूद घंटियों और घंटों को देखकर और उनकी कहानियां सुनकर और उनके दानकर्ताओं के बारे में जानकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं।
मंदिर के महंत के अनुसार यह एक स्थान प्राचीन और पौराणिक तीर्थों में से एक है और भगवान बटेश्वर का यह शिवलिंग स्वयंभू शिवलिंग है इसलिए यहां जो भी भक्त आता है अपनी मन्नत पुरी होने के बाद अपनी इच्छा के अनुसार एक घंटी या घण्टा जरूर चढ़ाते हैं।
बटेश्वरनाथ का यह मंदिर बिहड़ के उन जंगलों और घाटियों के एक दम नजदीक है जहां किसी समय में देश के सबसे कुख्यात डाकू और बागी हुआ करते थे और इसीलिए वे डाकू और बागी लोग भी यहां मत्था टेकने के लिए आया करते थे। कई डाकुओं और बागियों ने बटेश्वरनाथ के इसी मंदिर में घंटे चढ़ाकर और मन्नतें मान कर डकैत बनने की प्रतिज्ञा का ऐलान भी किया था। मंदिर में घंटा चढ़ाने और प्रतिज्ञा लेने के बाद वे लोग किसी खास गिरोह में शामिल हो जाया करते थे या फिर अपना ही गिरोह बना लेते थे।
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मंदिर के महंत जी का कहना है कि तीन दशक पहले तक बटेश्वरनाथ मंदिर खास कर यहां के डकैतों और बागियों के लिए भी आस्था का एक बहुत बड़ा केंद्र हुआ करता था। इसके अलावा यहां जो भी पुलिस अधिकारियों को भेजा जाता था या आज भी जो पुलिस अधिकारी या फिर यहां के नेता लोग हैं वे इस मंदिर में भेंट के रूप में अपनी इच्छा के अनुसार घंटा या घंटी जरूर चढ़ाने आते हैं। भेंट स्वरूप चढ़ाए गए ये दर्जनों छोटे-बड़े घंटे यहां के डकैतों, पुलिस अधिकारियों और नेताओं की निशानियां मानी जाती हैं जो आज भी इस मंदिर में देखने को मिल जाती हैं।
घाटी के एक प्रसिद्ध डाकू घुनघुन परिहार के बारे में भी कहा जाता है कि उसने भी यहां प्रतिज्ञा के रूप में एक घंटा चढ़ाकर बागी होने का ऐलान किया था। आज भी यहां मंदिर के प्रांगण में वे दर्जनों घंटे मोटी-मोटी जंजीरों में बंधे हैं और इनमें से कई घंटों पर तो बागियों के नाम भी लिखे हैं। इनमें से 421 किलो वजनी पीतल का एक घण्टा सबसे बड़ा और सबसे भारी घण्टा माना जाता है।
डाकू पान सिंह तोमर के बारे में कहा जाता है कि जब भी वह किसी बड़ी डकैती या वारदात में सफल होता था, तो यहां एक बड़ा घंटा जरूर चढ़ाया करता था।
इस क्षेत्र के लोगों का मानना है कि भगवान बटेश्वरनाथ के मंदिर को लेकर कई डाकुओं और बागियों के मन में जो आस्था और विश्वास था उसके आधार पर वे लोग डाकू बनने से पहले या किस भी बड़े डाके या घटना को अंजाम देने से पहले वे लोग बाबा बटेश्वरनाथ जी से अपनी सफलता की कामना करने आते थे और वारदात में सफल होने के बाद भी वे लोग यहां डकैती या फिरौती की रकम का एक हिस्सा घंटे और प्रसाद के रूप में बटेश्वरनाथ मंदिर में चढ़ाया करते थे।