अजय सिंह चौहान || मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के नीमच जिले में स्थित मनासा रोड पर नीमच शहर से लगभग 18 की.मी. दूर स्थित भादवा माता का एक ऐसा मंदिर है जो ‘भादवामाता धाम‘ के नाम से प्रसिद्ध है। इसके अलाव यह मंदिर मालवा की वैष्णो देवी के नाम से भी जाना जाता है।
यहां आने वाले श्रद्धालुओं का ऐसा विश्वास है कि भादवामाता के आशीर्वाद से लकवा, नेत्रहीनता और कोढ़ ग्रस्त कई रोगियों को लाभ होते देखा और सुना है। महामाया भादवामाता मंदिर के प्रांगण में एक ऐसी अति प्राचीन और चमत्कारी बावड़ी भी है जिसके बारे में मान्यता है कि इस बावड़ी के कारण माता का यह मंदिर आरोग्य तीर्थ के रुप में प्राचीनकाल से प्रसिद्ध है।
भादवामाता मूल रूप से भील जनजाति की कुल देवी के रूप में भी पूजी जाती है। इसीलिए यहां आयोजित होने वाले मेले में आने वाली तमाम आदिवासी जनजातियों के लोगों को यहां मेला परिसर में अपने पारंपरिक पहनावे में नाच-गा कर माता के भजनों पर थिरकते और लोकनृत्य करते हुए देखा जा सकता है। इसके अलावा यहां उनको पारंपरिक, स्वादिष्ट और सात्विक भोजन दाल-बाटी बनाते और उसका स्वाद लेते हुए भी देखा जा सकता है।
इन आदिवासियों का मानना है कि दाल-बाटी माता भादवा का बहुत प्रिय भोजन है इसलिए वे माता को इसका विशेष भोग लगाते हैं।
यहां चैत्र और अश्विन माह की नवरात्रि में एक भव्य, आकर्षक और विशाल मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें भाग लेने और माता के दर्शनों के लिए इस क्षेत्र की तमाम आदिवासी जनजातियों के लोग ही नहीं बल्कि देश के कई हिस्सों से श्रद्धालु यहां आते हैं। इस अवसर पर कई भक्त तो अपने घरों से यहां तक नंगे पैर मां के दरबार में हाजिरी लगाने आते हैं।
नवरात्र के विशेष अवसर पर यहां के लिए राज्य सरकार द्वारा मां भादवा के धाम में आने वाले भक्तों के लिए विशेष रूप से बसें चलाई जाती हैं। इस मेले की खासियत यह होती है कि इसमें मालवा क्षेत्र की आदिवासी संस्कृति और परंपराओं को नजदीक से जानने का अवसर मिलता है। इसीलिए यहां देशी और विदेशी पर्यटकों की संख्या भी अच्छी खासी देखने को मिल जाती है।
भादवामाता का मंदिर संगमरमर के पत्थर से बना हुआ एक भव्य आकर्षक और अति सुंदर मंदिर है। इस मंदिर में महामाया भादवामाता एक अति सुंदर चांदी के सिंहासन पर विराजमाना हैं। कहते हैं कि माता की यह मूर्ति एक दिव्य और चमत्कारी मूर्ति है। माता की मूर्ति के सामने ही चमत्कारिक ज्योति हमेशा जलती रहती है। मंदिर के गर्भगृह में माता के आसन के साथ ही नवदुर्गाओं यानी नवशक्तियों की नौ प्रतिमाऐं भी विराजित हैं।
इस मंदिर के मुख्य आकर्षण के रूप में यहां अन्य प्रतिमाओं में भगवान श्री गणेश की एक अति प्राचीन प्रतिमा तथा भगवान विष्णु की काले पत्थर से निर्मित एक पौराणिक काल की प्रतिमा भी है। ये मूर्तियां कितनी पुरानी हैं इस बारे में कोई निश्चित प्रमाण नहीं है लेकिन माना जाता है कि ये मूर्तियां भी ऐतिहासिक महत्व की हैं।
माना जाता है कि प्राचिनकाल में यहां माता के मंदिर में पशु बलि की प्रथा भी थी और श्रद्धालुओं की मन्नतें या मुरादें पुरी होने पर यहां आकर वे श्रद्धालु बलि प्रथा के तौर पर बकरे या मुर्गे की बलि देते थे। अब यह प्रथा पुरी तरह समाप्त कर दी गई है।
श्रद्धालुओं की मन्नतें या मुरादें पुरी होने पर अब वे यहां पशुओं की बलि नहीं देते बल्कि बलि के तौर पर अब वे लोग यहां उन बकरों और मुर्गों को मंदिर में पूजा-पाठ के बाद माता के चरणों में छोड़ जाते हैं इसीलिए ये पशु यहां माता के मंदिर में इधर-उधर घुमते-फिरते दिखाई देते हैं। कई श्रद्धालुओं को यहां यह देख कर आश्चर्य होता है कि जब भादवामाता की आरती का समय होता है, तब यहां कुछ मुर्गे और बकरे आदि भी उस आरती में शामिल होने के लिए आ जाते हैं।
भादवामाता का यह मंदिर मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में नीमच जिले में मनासा रोड पर नीमच शहर से 18 की.मी. दूर स्थित है। राजस्थान के कोटा से इस मंदिर की दूरी लगभग 180 किलोमीटर, भीलवाड़ा से 120 किलोमीटर, मंदसौर से लगभग 70 किलोमीटर और उदयपुर से लगभग 135 किलोमीटर है।
ट्रेन से जाने वाले यात्रियों के लिए चित्तोड़गढ़-रतलाम से मंदसौर और नीमच के लिए ट्रेनों की अच्छी सुविधा है। नीमच रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी मात्र 24 किलोमीटर है।
सड़क मार्ग से जाने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग 59 नीमच को कई पड़ौसी शहरों और राज्यों से जोड़ता है। भादवामाता मंदिर के लिए बसें भी आसानी से मिल जाती हैं। कई राज्यों के प्रमुख शहरों से यहां के लिए नियमित बसों की व्यवस्था है।