उज्जैन में स्थित राजा भर्तृहरि की गुफा के संबंध में माना जाता है कि आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले उज्जैन के राजा भर्तृहरि (Bhartrihari Cave in Ujjain) ने गुरु गोरखनाथ जी के संपर्क में आने के बाद वैराग्य धारण कर लिया था और तपस्या के लिए चले गए थे। जिसके बाद राजा भर्तृहरि ने इसी गुफा में लगभग 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। कहा जाता है कि राजा भर्तृहरि द्वारा बारह वर्षों की अपनी इस कठीन तपस्या को पूर्ण करने के बाद भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन भी दिए थे।
राजा से योगी बने भर्तृहरि की इतनी कठोर तपस्या से देवराज इंद्र को भी डर लगने लगा था कि कहीं ऐसा न हो कि तपस्या के बल पर भगवान शंकर से वरदान मांगकर भर्तृहरि स्वर्ग पर आक्रमण कर दे। यही सोचकर इंद्र ने गुफा में बैठकर तपस्या कर रहे भर्तृहरि पर एक विशाल पत्थर गिरा दिया। लेकिन भर्तृहरि ने उस पत्थर को एक हाथ से रोक लिया और उसी तरह तपस्या में बैठे रहे।
इसी प्रकार कई वर्षों तक उस विशाल पत्थर को हाथ के सहारे उठाए रखने से उस पत्थर पर भर्तृहरि के हाथ के पंजे का निशान बन गया था जो आज भी देखा जा सकता है। वह निशान आज भी भर्तृहरि की गुफा में राजा की प्रतिमा के ऊपर वाले पत्थर पर दिखाई देता है। हाथ के पंजे का यह निशान आकार में एक आम इंसान के हाथ से काफी बड़ा है, जिसको देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजा भर्तृहरि कद और काठी से कितने बलशाली और विशालकाय शरीर वाले व्यक्ति रहे होंगे।
कोई भी आम पर्यटक या श्रद्धालु भर्तृहरि की इस गुफा के अंदर अकेला जाने से बचता है। गुफा के भीतर रोशनी के लिए बिजली के बल्ब लगे हुए हैं फिर भी इसके अंदर की रोशनी बहुत कम है। इसलिए गुफा में प्रवेश करने पर अधिकतर पर्यटकों और श्रद्धालुओं के चेहरे पर डर देखा जा सकता है। हालांकि गुफा के अंदर स्थित शिवलिंग के पास कोई न कोई साधु या महात्मा बैठे हुए होते हैं। लेकिन अधिकतर श्रद्धालु उन्हीं साधुओं और सन्यासियों को देखकर डर जाते हैं और जल्द से जल्द वहां से बाहर आना चाहते हैं।
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राजा भर्तृहरि की यह गुफा ‘नाथ‘ संप्रदाय के साधुओं के अधिकार में है। और ‘नाथ‘ संप्रदाय के साधुओं या साधकों को योगी, अवधूत, सिद्ध और औघड़ आदि के नामों से भी जाना जाता है। और इस संप्रदाय के साधुओं की वेशभूषा को देखकर ही अक्सर यहां बाहर से आने वाले और विशेषकर उन शहरों या कस्बों से आने वाले लोग डरते हैं जो नाथ संप्रदाय के विषय में कुछ भी ज्ञान नहीं रखते हैं।
प्राकृतिक रूप से बनी हजारों साल पुरानी इस राजा भर्तृहरि की गुफा (Bhartrihari Cave in Ujjain) के अंदर जाने का रास्ता काफी छोटा है। हालांकि यह गुफा देखने में मानव निर्मित लगती है। लेकिन जानकारों का मानना है कि पहले यह प्राकृतिक गुफा थी जिसे बाद में आवश्यकता के अनुसार आकार दिया गया होगा।
भर्तृहरि की गुफा में प्रवेश करते ही आगे जाने पर कुछ घुमावदार सीड़ियां हैं जो नीचे की तरफ ले जाती हैं। गुफा के अंदर की ऊंचाई लगभग 8 फुट है इसलिए अंदर जाते समय काफी सावधानी रखनी होती है। सीढ़ियां खत्म होते ही गुफा में एक बरामदे के आकार की खाली जगह मिलती है। इसके अलावा इसमें छोटे-छोटे कमरेनुमा स्थान भी बने हुए हैं।
राजा भर्तृहरि की इस गुफा (Bhartrihari Cave in Ujjain) की छत बड़े-बड़े पत्थरों के सहारे टिकी हुई है। जमीन के नीचे बनी होने के कारण इस गुफा में आम श्रद्धालुओं और पर्यटकों को जल्दी ही आक्सीजन की कमी महसूस होने लगती है और दम घुटने जैसा महसूस होने लगता है। इसके अलावा इसके अंदर हल्का-हल्का धुआं भी हमेशा ही बना रहता है और एक अजीब-सी गंध भी आती रहती है जो वहां जल रही धुनी से निकलती है। इसके अंदर अक्सर कुछ जोगियों और बाबाओं को धुनी लगाकर बैठे देखा जा सकता है।
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राजा भर्तृहरि की इस गुफा (Bhartrihari Cave in Ujjain) के अंतिम छोर पर राजा भर्तृहरि की एक प्रतिमा है और उस प्रतिमा के पास ही गौर से देखने पर एक और गुफा का रास्ता भी दिखाई देता है। जिसके विषय में बताया जाता है कि इसी गुफा के रास्ते से राजा भर्तृहरि चारों धामों की यात्रा किया करते थे। यह बात कहां तक सच है शायद कोई नहीं जानता। लेकिन, कई सालों से यह रास्ता बंद है। गुफा में भर्तृहरि की प्रतिमा के सामने एक धुनी भी है, जिसकी राख हमेशा गर्म ही रहती है, क्योंकि यहां कोई न कोई तपस्वी तप करता हुआ दिख जाता है।
यहाँ राजा भर्तृहरि की इसी गुफा से लगी हुई एक और गुफा है जिसको गोपीचन्द की गुफा कहा जाता है। यह मुख्य गुफा से थोड़ी छोटी है और इसके बारे में कहा जाता है कि अनुसार राजा भर्तृहरि का ही एक लोक प्रचलित नाम बाबा गोपीचन्द भरथरी भी था। गुफा के पास ही में राजा भर्तृहरि का मन्दिर भी बना हुआ है।
यह गुफा ‘नाथ‘ संप्रदाय के साधुओं के अधिकार में है, इसलिए यहां नाथ संप्रदाय के कई साधुओं और महात्माओं को विचरण करते देखा जा सकता है। राजा भर्तहरि की कई यादों और उनके इतिहास को संजोए यह गुफा आज भी कई प्रकार के ऐतिहासिक और पौराणिक रहस्य बयां करती है।
राजा भर्तृहरि की इस गुफा (Bhartrihari Cave in Ujjain) के क्षेत्र में जैनकालीन कुछ मूर्तियां और अन्य ऐतिहासिक महत्व के सामान और इमारतों के अवशेष जैसे खंबे और मूर्तियों को देखा जा सकता है और इसके आधार पर माना जा सकता है कि संभवतः यहां पहले कभी जैन-विहार भी रहा होगा। कुछ मूर्तियों पर तो जैन धर्म के चिह्न भी अंकित हैं।
बताया जाता है कि राजा भर्तृहरि का अन्तिम समय राजस्थान के अलवर क्षेत्र में बीता था और अलवर जिले के जंगल में आज भी उनकी समाधि बनी हुई है। उस समाधि पर स्थानीय लोगों की मदद से एक अखण्ड दीपक जलता रहता है। स्थानीय लोग उस अखण्ड ज्योति को भर्तृहरि की ज्योति के नाम से जानते हैं। इसी तरह काशी के निकट चुनारगढ़ नामक पहाड़ी-स्थान को भी राजा भर्तृहरि से जोड़कर देखा जाता है। और बताया जाता है कि इस टीले पर भी एक ऐसी गुफा है, जहां की एक गुप्त सुरंग से उज्जैन तक आने-जाने का रास्ता बना हुआ है।
शिप्रा नदी के किनारे स्थित इस गुफा (Bhartrihari Cave in Ujjain) के आस-पास शहरी आबादी नहीं है। राजा भर्तृहरि की यह गुफा उज्जैन शहर से एकदम नजदीक और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर दूर एक छोटी-सी पहाड़ी पर स्थित है। गुफा के दर्शनों के लिए किसी भी तरह का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। गुफा भ्रमण करने का समय सुबह 9 बजे से शाम को 5 बजे तक का है। कुछ विशेष अवसरों या अधिक भीड़ होने के दौरान इस गुफा में आम पर्यटकों और श्रद्धालुओं को जाने से रोक दिया जाता है।
– अजय सिंह चौहान