अजय सिंह चौहान || सराहन हिमाचल प्रदेश का एक बहुत ही प्राचीन धार्मिक स्थल के साथ-साथ सुदर और आकर्षक पर्यटन स्थल है जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। वनस्पतियों और जीवों की विभिन्न किस्मों की गंध के साथ हरा-भरा वातावरण यहां आने वाले मेहमानों को सबसे अधिक आकर्षित करता है। पिछले कुछ वर्षों से यहां आने वाले तीर्थयात्रियों और पर्यटकों की संख्या में धीरे-धीरे बढ़ोतरी होती जा रही है। हालांकि यहां होने वाली हिमपात और बारिश के कारण भले ही कुछ कठिनाइयां हो सकती हैं लेकिन, भीमाकाली मन्दिर में साल के किसी भी मौसम में जाया जा सकता है। भारत के अन्य भागों की तरह ही चैत्र और आश्विन नवरात्रों में सराहन के इस भीमाकाली मंदिर में भी देवी पूजा बडी धूमधाम से की जाती है।
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से करीब 180 किलोमीटर दूर, दूर्गम पहाड़ियों के बीच, सराहन नामक एक छोटे से शहर में व्यास नदी के किनारे पर स्थित भीमाकाली का यह मन्दिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। भीमाकाली देवी इस क्षेत्र के परंपरागत राजवंश की कुलदेवी के रूप में भी पूजी जाती है और इस बात का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है।
महाभारत काल से जुड़ी अन्य पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अलावा, भगवान कृष्ण से संबंधित और उस समय के यादवों के शासन काल से भी भीमाकाली के इस मंदिर के पौराणिक और ऐतिहासिक साक्ष्य इस मंदिर में आज भी पाये जाते हैं।
भीमाकाली के इस वर्तमान मंदिर संरचना की वास्तुकला और नक्काशी, पहाड़ी शैली का एक शानदार उदाहरण है। हर साल यहां बड़े स्तर पर काली पूजा की जाती है जिसमें लाखों लोग भाग लेते हैं। पर्वतों की तलहटी में अत्यन्त सुन्दर ढंग से सुसज्जित सराहन को किन्नौर का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। समुद्र तल से 2150 मीटर की ऊंचाई पर बसा यह शहर, धर्म, अध्यात्म और प्राकृति सौंदर्य के लिहाज से विशेष माना जाता है।
मंदिर से मात्र 7 किलोमीटर दूर सतलुज नदी बहती है। जबकि नदी के दाहिनी ओर बर्फ से ढंके श्रीखण्ड पर्वत को साक्षात देखा जा सकता है। माना जाता है कि यह पर्वत देवी लक्ष्मी के माता-पिता का निवास स्थान है। और इस पर्वत के ठीक सामने भीमाकाली मन्दिर अपनी अद्वितीय छटा के साथ खड़ा है। भीमाकाली का यह पवित्र मन्दिर और यहां का संपूर्ण क्षेत्र लगभग सभी ओर से सेबों के बागों से घिरा हुआ है।
आज का सराहन या जिसका पौराणिक नाम शोणितपुर भी हुआ करता था, यही शहर ऐतिहासिक बुशहर देश की राजधानी हुआ करता था और इसकी सीमाओं में पूरा किन्नर देश आता था। पुराणों में बताया गया है कि संपूर्ण कैलाश पर्वत क्षेत्र को ही किन्नर देश कहा जाता था।
इसके अलावा यह भी मान्यता है कि, भगवान शिव ने स्वयं को भीमाकाली शक्तिपीठ मंदिर स्थल पर कुछ समय के लिए खुद को किरत के रूप में छिपाया था। इसके अलावा पुराणों में यह भी लिखा है कि भगवान शिव के परम भक्त बनसुर और राक्षस राजा बाली के सौ पुत्रों में से सबसे बड़े और विष्णु भक्त प्रहलाद के महान पोते ने भी यहां शासन किया था।
इस शक्तिपीठ मंदिर से जुड़ी मुख्य पौराणिक कथा के अनुसार देवी सती जब अपने पिता दक्ष के यज्ञ में सती हो गई थीं तो भगवान शिव उनके मृत शरीर को अपने कंधे पर उठा कर ब्रहमांड का चक्कर लगाने लगे थे। जबकि भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के उस मृत शरीर के टुकड़े कर दिए, और जहां-जहां भी उनके शरीर के वे अंग गीरे थे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना होती गई। और यह स्थल भी उनमें से एक है। इस स्थान पर यानी शोणितपुर या आज के इस सराहन में भी उनका एक अंग कान के रूप में गिरा था और उसके बाद यहां भी शक्तिपीठ बन गया। हालांकि कुछ लोग इस मंदिर को शक्तिपीठ नहीं बल्कि एक सिद्ध पीठ ही मानते हैं।
पुराणों में यह भी वर्णन है कि कालांतर में इस देवी ने भीमकाय रूप धारण करके राक्षसों का वध किया था जिसके बाद से उनको भीमाकाली नाम दिया गया। मान्यता है कि आदि शक्ति तो एक ही है लेकिन वे अनेक प्रयोजनों से भिन्न-भिन्न रूपों और नामों में प्रकट होती हैं जिसका एक रूप भीमाकाली भी है।
इसके अलावा मत्स्य पुराण में भी भीमाकाली नाम की एक देवी का उल्लेख आता है। इस शक्तिपीठ मंदिर को शैव्वी हिंदुओं के महत्वपूर्ण शक्ति पीठों में से एक माना जाता है।
भीमाकाली के इस मंदिर को लेकर सबसे बड़ा इतिहास यह भी जुड़ा है कि यह शक्तिपीठ मंदिर मानव बलि की एक लंबी परंपरा का भी साक्षी रहा है। जिसके अनुसार बताया जाता है कि किसी खास अनुष्ठान या समारोह के पूरा होने के बाद जिस व्यक्ति की बलि दी जाती थी उसके कटे हुए सिर को सतलुज नदी में फेंका जाता था और बाकी शरीर को मंदिर के प्रांगण में ही अच्छी तरह से दबा दिया जाता था। जबकि 16 वीं और 17 वीं शताब्दियों के आते-आते उस समय के कुछ समाज सुधारकों और नई पीढ़ी के विरोध के चलते इस प्रथा को समाप्त कर दिया गया।
शोणितपुर या सराहन का उल्लेख कई प्रवित्र धर्मगं्रथों में भी मिलता है। बताया जाता है कि, भगवान शिव यहां ध्यान-साधना करते थे इसलिए इसको पौराणिक ग्रंथों में शोनितपुर नगरी या शायन्त नगरी भी कहा जाता है। जबकि आज यह सारण या सराहन के नाम से जाना जाता है। महाभारत के अनुसार, पांडवों ने भी देवी भीमाकाली के इस पवित्र मंदिर तक पैदल चल कर दर्शन किए थे। इसलिए माता के कई परम भक्त पूरे साल इस मंदिर में आते रहते हैं।
भीमाकाली के इस शक्तिपीठ मंदिर की यात्रा पर जाने के लिए वैसे तो पूरे साल भर का मौसम ही अच्छा है। क्योंकि हर मौसम में यहां की प्राकृतिक सुन्दरता के नजारे देखने लायक होते हैं। इसीलिए यह शक्तिपीठ मंदिर और यहां का संपूर्ण क्षेत्र तीर्थ यात्रा के साथ-साथ पर्यटन के लिए भी देश-विदेश से आने वाले सैलानियों के लिए उत्तम माना जाता है।
लेकिन अगर आप लोग भी परिवार के बच्चों और बुजुर्गों के साथ यहां आकर, धार्मिक यात्रा के साथ-साथ पर्यटन का भी आनंद लेना चाहते हैं तो उसके लिए यहां का सबसे अच्छा मौसम गर्मियों का ही माना जाता है। जबकि बारिशों के मौसम में परिवार के साथ यहां जाने पर परेशानी बढ़ सकती है। क्योंकि पहाड़ी इलाकों में बारिश का मौसम कब भीषण रूप ले लेगा कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में पहाड़ों के धसकने से रास्ते भी बंद हो जाते हैं। इसलिए कोशिश करें कि बारिश के मौसम में यहां ना जायें।
लेकिन, गर्मियों के समय में यानी, मार्च से नवंबर के बीच का समय यहां जाने के लिए बहुत ही अच्छा समय कहा जा सकता है। इन दिनों में यहां का तापमान 15 से 20 डिग्री तक का होता है। और यह मौसम और इसका, तापमान परिवार के साथ यहां जाने के लिए बहुत ही सुखद और अच्छा समय होता है। हालांकि, इन दिनों में भी यहां खासकर सुबह और शाम के समय हल्के गरम कपड़ों की जरूरत होती है।
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जबकि सर्दियों के मौसम में यहां 0 डिग्री से लेकर 5 डिग्री तक या इससे भी कम का सर्द मौसम हो जाता है। यहां होने वाली बर्फबारी का आनंद भी आप आनंद ले सकते हैं। लेकिन, ऐसे में यहां जाने के पहले कई सारे गरम कपड़े भी साथ लेकर जाना पड़ता है, जिससे कि, आपका जरूरी सामान जरूरत से ज्यादा हो सकता है।
तो, यदि आप सराहन के लिए यात्रा की योजना बना रहे हैं तो यहां जाने के लिए हवाई मार्ग और रेलवे के माध्यम से शिमला तक ही पहुंचा जा सकता है। इसके बाद सड़क के रास्ते ही यहां तक जाना पड़ेगा। हालांकि, यहां जाने वाले रास्ते दुर्गम पहाड़ियों से भरे हुए हैं। मगर हिमाचल प्रदेश अपनी साफ-सुथरी सड़कों के लिए जाना जाता है इसलिए यहां के पहाड़ी रास्तों में कोई खास समस्या नहीं होती।
भीमाकाली शक्तिपीठ मंदिर तक पहुंचने के लिए हिमाचल में रोडवेज बसों की बहुत ही अच्छी व्यवस्था देखने को मिलती है। लेकिन, आप चाहें तो टैक्सी की सेवा भी ली जा सकती है। हिमाचल के अन्य हिस्सों से भी यहां बहुत आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह स्थान शिमला से 180 किमी, चंढीगढ़ से 275 किलोमीटर और दिल्ली से लगभग 550 किलोमीटर दूर है।
शिमला जैसे पर्यटन स्थल से भी लगभग 180 किलोमीटर दूर होने के कारण, सराहन तक आम पर्यटक बहुत ही कम पहुंच पाते हैं। लेकिन, भीमाकाली के भक्तों के लिए यह दूरी कोई मायने नहीं रखती। इसीलिए यहां आने वाले लोगों में तीर्थयात्रियों की संख्या ज्यादा देखी जाती है। और शायद इसी कारण से यह पवित्र स्थान और खुबसूरत पर्यटक स्थल आज भी एक बहुत बड़े स्तर पर व्यवसायीकरण से बचा हुआ है। आम शहरी भीड़भाड से दूर यह पवित्र मंदिर और यहां का पर्यटन स्थल स्वच्छता और एकांत प्रेमियों के लिए सबसे उत्तम माना जा सकता है।
भीमाकाली शक्तिपीठ मंदिर के लिए आने वाले पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के लिए ठहरने और खाने-पीने की लगभग सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं। मन्दिर परिसर में बने साफ-सुथरे कमरों के अलावा सरकारी होटल श्रीखण्ड में भी उपयुक्त दामों पर ठहरने की व्यवस्था है। इसके अलावा सराहन में रहने ठहरने के लिए बजट के अनुसार, कई छोटे-बड़े निजी होटलों के अलावा, स्थानीय लोगों के घर भी उपलब्ध रहते हैं। नवरात्रों के विशेष अवसरों पर यहां पर्यटकों की भारी भीड़ के चलते, किसी भी असुविधा से बचने के लिए स्थानिय प्रशासन द्वारा निजी और सार्वजनिक दोनों ही क्षेत्रों में अग्रिम बुकिंग की सिफारिश की जाती है।