अजय सिंह चौहान | अधिकांश लोग तो मात्र यही जानते होंगे कि उत्तराखंड में स्थित बद्रीनाथ धाम, गंगोत्री धाम, यमुनोत्री धाम और केदारनाथ धाम ही चार धाम हैं। लेकिन, सच तो यह है कि उत्तराखंड के इन चारों धामों में से केवल भगवान बद्रीनाथ का मंदिर ही एक धाम है। जबकि बद्रीनाथ धाम के अलावा यहां के बाकी धामों में से गंगोत्री धाम और यमुनोत्री धाम वे चार धाम नहीं हैं बल्कि उत्तराखंड राज्य द्वारा विकसित किये गया धार्मिक पर्यटन है और इसे यहां ‘छोटा चार धाम’ का नाम दिया गया है।
यानी, हिन्दू धर्म के अनुसार उत्तराखण्ड में केवल चार प्रमुख धामों में से एक धाम, यानी भगवान बद्रीनाथ जी का मंदिर ही एक प्रमुख धाम है। जबकि केदारनाथ मंदिर, भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में पांचवे स्थान पर माना जाने वाला ज्योतिर्लिंगों मंदिर है।
और क्योंकि, भगवान विष्णु का बद्रीनाथ धाम और भगवान शिव का केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर पूर्ण रूप से हिंदू धर्म के लिए तीर्थ के रूप में माना जाता है, इसलिए राज्य स्तर पर इन धामों के साथ-साथ यमुनोत्री और गंगोत्री को भी स्थानीय प्रशासन ने धामों की श्रेणी में रख दिया, ताकि तीर्थ के साथ-साथ पर्यटन का भी विकास हो सके, और, वे श्रद्धालु जो देश के कोने-कोने से आते हैं, वे, जब यहां के बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर के दर्शनों के लिए आयें तो यहां के अन्य धार्मिक स्थलों का भी लाभ उठा सके।
और क्योंकि हिंदू धर्म के लिए गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों का महत्व हमारे लिए बहुत अधिक माना जाता है, इसलिए भी यहां तक आने वाले वे अधिकतर श्रद्धालु, जो अपने जीवन में कम से कम एक बार ही सही, मगर किसी न किसी तरह से यहां तक आ पाते हैं, वे भी इसका लाभ ले सके।
वहीं दूसरी तरफ, कुछ ऐसे भी श्रद्धालु भी होते हैं जो आर्थिक रूप से इन यात्राओं को आसानी से कर पाते हैं और तीर्थ यात्राओं के साथ-साथ पहाड़ी इलाकों की पर्यटन यात्रा को भी महत्व देते हैं, वे लोग इन बाकी दो धामों पर, यानी यमुनोत्री और गंगोत्री धामों पर जाकर वहां दर्शन करने के साथ-साथ प्रकृतिक के बीच भी कुछ समय बिता सकते हैं।
इसलिए ऐसे ही तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए यमुनोत्री और गंगोत्री को भी एक प्रकार से स्थानी स्तर पर धामों की श्रेत्री में रख कर उनका प्रचार किया गया।
इसी कारण से सरकारी स्तर पर यमुनोत्री और गंगोत्री को भी एक प्रकार से छोटे धामों की श्रेणी रख दिया और उन्हें विकसित किया गया। ताकि श्रद्धालुओं की अधिक से अधिक संख्या वहां तक पहुंच सके और सरकार को भी इसमें कुछ लाभ मिल सके।
दरअसल पिछले कुछ वर्षों तक भी गंगोत्री और यमुनोत्री तक जाने-आने के रास्ते एक दम न के बराबर थे। वहां तक जाने-आने वाले श्रद्धालुओं के लिए किसी भी प्रकार की कोई सुविधाएं नहीं होती थीं। जिसके कारण कई बार तो यात्री रास्ता ही भटक जाते थे और वे वहां के दूर्गम और खतरनाक पहाड़ी रास्तों और मौसम का शिकार हो जाते थे।
यही कारण था कि यमुनोत्री और गंगोत्री को भी एक प्रकार से चार धामों की यात्रा के तर्ज पर विकसित किया गया। हालांकि, पिछले 30 से 35 वर्षों तक भी, वहां आज के मुकाबले करीब-करीब 5 से 7 प्रतिशत तक ही सुविधाएं होती थीं। ऐसे में अगर कोई श्रद्धालु इन यात्राओं के लिए जाते थे तो वे अपने ही दम पर और अपनी सुविधाओं और अनुभवों के ही आधार पर जा पाते थे।
इसी कारण से सरकारी स्तर पर यमुनोत्री और गंगोत्री को भी एक प्रकार से छोटे धामों की श्रेणी रख दिया और उन्हें विकसित किया गया। ताकि श्रद्धालुओं की अधिक से अधिक संख्या वहां तक पहुंच सके और सरकार को भी इसमें कुछ लाभ मिल सके।
अब अगर हम, बद्रीनाथ और केदारथ की बात करें तो ये दोनों ही स्थान हिन्दू धर्म के उन चार प्रमुख धामों में आते हैं। इसलिए बद्रीनाथ धाम के दर्शन करना अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा रही बात केदारनाथ की तो यह भगवान शिव के 12 ज्योतीर्लिंगों में से एक है इसलिए इस ज्योतीर्लिंग के दर्शनों का महत्व भी कम नहीं है।
बल्कि इसके लिए यहां पूरी तरह से आप के लिए समय, इच्छाशक्ति, आर्थिक स्थित और शारीरिक क्षमता पर निर्भर करता है कि आप यहां की उस कठीन तीर्थ यात्रा के लिए तैयार हैं या नहीं।
हालांकि, आज कल के समय में ये यात्रा आर्थिक रूप से संपन्न लोगों के लिए तीर्थ यात्रा कम और पर्यटन का साधन ज्यादा बन चुकी है। जबकि, सच तो ये है कि आज भी यह यात्रा इतनी महंगी पड़ती है कि, देश भर से अधिकतर श्रद्धालु और तीर्थ यात्री ऐसे हैं जो बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ जी की इस यात्रा को करना तो चाहते हैं, लेकिन यहां तक आने में आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होते हैं।
जबकि, अगर कोई, इन सबसे प्रमुख चार धामों में से बाकी के तीन धाम यानी, द्वारिकाधीश धाम, जगन्नाथ धाम और रामेश्वरम धाम में से किसी भी एक धाम या फिर दो धामों की यात्रा पर जाना चाहता है तो वह व्यक्ति भले ही देश के किसी भी दूर-दराज के हिस्से में रहता हो, कम से कम 2 से 3 हजार रुपयों में आज भी यात्रा कर सकता है। लेकिन, वही व्यक्ति अगर बद्रीनाथ धाम की यात्रा के लिए आता है तो उसे कम से कम चार से पांच हजार रुपये का खर्च तो करना ही पड़ता है।
अगर देश के दूर-दराज के क्षेत्र से आने वाला कोई तीर्थ यात्री उत्तराखण्ड में आकर यहां के अन्य कोई भी तीन धामों की यात्रा का मन बना ले तो उसके लिए यहां का हर धाम कम से कम चार से पांच हजार रुपये तक खर्चीला हो सकता है और समय भी आवश्यकता से अधिक ही लगता है।
इसके अलावा स्थानीय मौसम सहीत खतरनाक पहाड़ियों में यात्रा करने पर कई प्रकार की परेशानियों जैसे थकान, बीमार होने का डर, अपने सामान को संभालने की समस्या और स्थानिय मौसम सहीत और कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
यही कारण है कि उत्तराखण्ड की इस छोटा चार धाम यात्रा में शामिल होने वाले आर्थिक रूप से कमजोर तीर्थ यात्रियों के लिए यहां के हर धाम की यात्रा करना संभव नहीं है। जबकि जो आर्थिक रूप से संपन्न लोग होते हैं वे यहां आकर घोड़े की सवारी का सहारा लेकर या फिर हेलीकाॅप्टर की सेवा का लाभ लेकर बड़े ही आराम से और बिना किसी बाधा के इस यात्रा को कम कम से कम समय में और बिना किसी रूकावट या परेशानी के कर पाने में सक्षम होते हैं बल्कि उनके लि यहां की यात्रा तीर्थ यात्रा कम ओर एक पर्यटन अधिक हो जाता है।