व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ के अनुसार शल्यशास्त्र के ज्ञाता आदि अंत पारंगत विद्वान धन्वन्तरि कहलाते हैं। भागवत पुराण के 8वें अध्याय के 8वें भाग के 34 व 35वें श्लोक में भगवान विष्णु के अंशांश से धन्वंतरि की उत्पत्ति मानी गयी है।
सं वै भगवत साक्षाद् विष्णो रंशांश संभवः।
धन्वन्तरिरिति ख्यात आयुर्वेद दृगिज्य भाक् ।।
पुराणों के अनुसार एक समय अमृत-प्राप्ति हेतु देवासुरों ने जब समुद्र मंथन किया तब उसमें से दिव्य कांतियुक्त, अलङ्करणों से सुसज्जित, सर्वाङ्गसुन्दर, तेजस्वी, हाथ में अमृतपूर्ण कलश लिये एक अलौकिक पुरुष प्रकट हुए। वे ही आयुर्वेद के प्रवर्तक व यज्ञभोक्ता भगवान धन्वंतरि के नाम से विख्यात हुए।
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को इनका आविर्भाव हुआ था। इनकी जयंती आरोग्य देवता के रूप में प्रतिवर्ष इसी तिथि पर मनायी जाती है। श्रीमद्भागवत में इनके लिये “स्मृतिमात्र आर्तिनाशनः” विशेषण का प्रयोग हुआ है। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में इनकी भी गणना हुई है। गरुड़पुराण में अष्टाङ्ग-हृदय का पूरा संग्रह है। सागर मंथन के अवसर पर भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे। उन्होंने देवादि के जीवन के लिये आयुर्वेद शास्त्र का उपदेश महर्षि विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत को दिया।
देवादीनां रक्षणाय ह्यधर्महरणाय च।
दुष्टानां च वधार्थाय ह्यवतारं करोति च।।
यथा धन्वन्तरि वंशे जातः क्षीरोदमन्थने।
देवादीनां जीवनाय ह्यायु र्वेदभुवाच ह।।
विश्वामित्रसुतायैव सुश्रुताय महात्मने।।
धन्वंतरि ने प्रकट होकर विष्णु भगवान के दर्शन किये। विष्णु भगवान ने कहा कि तुम जल से उत्पन्न हो इसलिये तुम्हारा नाम ‘अब्ज’ होगा। धन्वंतरि ने कहा कि भगवान! मुझे इस लोक में स्थान प्रदान करें एवं मेरे यज्ञभाग की व्यवस्था करें।
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भगवान ने कहा कि तुम्हारा अविर्भाव देवताओं के बाद हुआ है। देवताओं के निमित महार्षियों ने यज्ञ-आहुतियां का विधान किया है। अतः इस जन्म में तुम यज्ञभाग के अधिकारी नहीं हो सकते, परंतु अगले जन्म में मातृ-गर्भ में ही तुम्हें अणिर्माद संपूर्ण सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जायेंगी व तुम देवत्व को प्राप्त हो जाओगे।
तुम काशीराज के वंश में उत्पन्न हो अष्टाङ्ग आयुर्वेद शास्त्र का प्रचार करोगे। यह कह कर भगवान विष्णु अंतरध्यान हो गये। बाद में भगवान धन्वंतरि इन्द्र के अनुरोध पर देवताओं के चिकित्सिक के रूप में अमरावती में रहने लगे।
अगले जन्म में पूर्ण वचनानुसार काशीराज दिवोदास धन्वंतरि हुए। लोककल्याणार्थ ‘धन्वंतरि संहिता’ ग्रंथ की रचना की। आचार्य धन्वंतरि ने विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत को सौ मुनि पुत्रों सहित अष्टांग आयुर्वेद की शिक्षा दी।
प्रयोजन- समस्त दैहिक, दैविक व भौतिक रोगों व शाप ताप से मुक्ति पाने के लिये निरोगी व दीर्घायु पाने के लिए इस दिव्य मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ऊँ देव चिकित्सक भगवान धन्वंतरि देवाय नमः।
3, 5, 10 माला रुद्राक्ष की माला से जाप करें। जाप के बाद माला आशीर्वाद स्वरूप गले में पहनें।
– घनश्याम दत्त भारद्वाज